सीरतो ख़ासाइल
आप हज़रत सय्यद मुहम्मद बिन महमूद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रज़न्दे अर्जमन्द हैं, और सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुमताज़ खलीफा! हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन ज़र रादी के शागिर्द रशीद थे, हज़रत ख्वाजा सय्यद हुसैन मुजर्रद चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह का मुँह बोला बेटा बनने की सआदत हासिल है, आप निहायत हसीनो जमील थे, जिस की नज़र आप के जमाल पर पड़ती वो कितना ही रंजीदा क्यों न हो खुश हो जाता था,
आप इल्मो फ़ज़्ल, ईसारो कुर्बानी, और ज़ाहिरी व बातनी तहारत में बे मिसाल थे, सारी ज़िन्दगी बगैर शादी के गुज़ार दी, आप के घर का दरवाज़ा ज़रूरत मंदों के लिए हर वक़्त खुला रहता था, जो चाहता घर में आ जाता था, किसी के लिए कोई रोक टोक नहीं थी, ख़्वाह शहरी हो दिहाती या मुसाफिर बेधड़क सीधा आप के घर में चला जाता था, जो इस की ज़रूरत होती आप उसको पूरा फरमाते और इस को खुश कर के वापस करते, ये सब फ़ज़ीलतें आप के अंदर इस लिए थीं के आप ने बचपन से बुढ़ापे तक सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के ज़ेरे सायाए करम में परवरिश पाई थी, हर रोज़ ज़ोहर के बाद आप सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर होते और आप की सुहबत और गुफ्तुगू और असरारो रुमूज़ की बातें सीखते थे, और ये सिलसिला असर के वक़्त तक जारी रहता था।
लिबास
हज़रत ख्वाजा सय्यद हुसैन मुजर्रद (जो कभी भी निकाह ना करे, शादी न करे) चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप का लिबास उमूमन सूफियाना रंग और बहुत अच्छा होता था, आप जो भी कपड़ा पहिनते उस को दोबारा नहीं पहिनते थे, पहले की तरह सब आप के घर पर तशरीफ़ लाते और मुलाकात करते, आप भी सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की हयाते पाक में इन सब की सिफारिश क्या करते थे और इन की मदद फरमाते थे।
ख्वाजा अहमद जहाँ और आप
सुल्तान मुहम्मद तुगलक के अहिद में 732/ हिजरी मुताबिक 1313/ ईसवी में ख्वाजा अहमद जहाँ वज़ीर बनाए गए, उन्होंने ये देखा था के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ख्वाजा सय्यद हुसैन मुजर्रद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! पर बहुत शफकत फरमाते थे, जब वो सुल्तान मुहम्मद तुगलक के साथ खुल्दाबाद शरीफ, रवाना होने लगा तो उसने चाहा के हज़रत ख्वाजा सय्यद हुसैन मुजर्रद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को भी अपने साथ खुल्दाबाद ले जाए लेकिन हज़रत ख्वाजा सय्यद हुसैन मुजर्रद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! इस सफर के लिए आमादा नहीं थे, क्यों के सुल्तान सूफ़ियाए किराम के साथ ज़ियादती करता था, आप ने वज़ीर मज़कूर से फ़रमाया में तुम्हारे साथ दो शर्तों के साथ जाऊँगा, अव्वल ये के में सादात और सूफ़िया का लिबास पहनूँगा, दूसरे ये के हुकूमत का कोई उहदा कबूल नहीं करूंगा क्यों के मुहम्मद तुगलक ये दोनों खूबियां सूफ़ियाए किराम से छीन कर उन्हें दुनियावी उहदे पर लगा देता था, वज़ीर ने आप की ये दोनों शर्तें मंज़ूर करलीं,
वो आखरी वक़्त तक इन शर्तों का पाबंद रहा क्यों के वो आप की बहुत तअज़ीमों तक़रीम करता था।
वफ़ात
हज़रत ख्वाजा सय्यद हुसैन मुजर्रद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आखरी उमर में काफी ज़ियादा फालिज की बिमारी में गिरफ्तार हुए, बिमारी के अय्याम में हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह और एक मर्तबा ख्वाजा अहमद जहाँ वज़ीर, आप रहमतुल्लाह अलैह की मिजाज़ पुरसी को आये, और आप रहमतुल्लाह अलैह ने बादशाह फ़िरोज़ शाह के दौरे हुकूमत में 21/ शाबानुल मुअज़्ज़म 752/ हिजरी मुताबिक 1351/ ईसवी बरोज़ जुमेरात सुबह को वफ़ात पाई।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह के अहाते में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली