बैअतो खिलाफत
आप का असली नाम शेर खां, हैं, मसऊद बुक के नाम से मशहूर हैं, आप सुल्तान फ़िरोज़ शाह के रिश्तेदारों में से हैं, एक ज़माने तक गनियो मालदार रहे और अमीरो जैसी ज़िन्दगी बसर करते थे, अचानक अल्लाह पाक के करम से आप का दिल इस दुनियाए फानी से हट कर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ मुतावज्जेह हो गया, और फकीरों दुरवेशों की मजलिसों में बैठना शुरू कर दिया, सारी दौलत को अल्लाह पाक की राह में खर्च कर दिया और हज़रत ख्वाजा शैख़ इमाम शहाबुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद हो गए,
हज़रत ख्वाजा शैख़ मसऊद बुक देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अक्सर औकात मस्त रहा करते थे, और खुदा की वहदत में मस्त हो कर मस्ताना बातें किया करते, आप से पहले किसी बुज़रुग को ऐसी बातें करता हुआ नहीं देखा, आप की आँखों से आंसूं टपकते रहते थे, और वो इतने गरम होते के अगर कोई अपनी हथेली पर लेता तो गर्मी महसूस करता, आप कई किताबों के मुसन्निफ़ थे, आप की एक किताब “तम्हीदात” के नाम से थी जिस में आप ने क़साइद, अशआर और ग़ज़ल वगेरा की हकीकतों को बयान फ़रमाया है, आप के बाज़ अशआर ऐसे होते थे के जिन को पढ़ने वाला फड़क उठता था।
विसाल
हज़रत ख्वाजा शैख़ मसऊद बुक देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने सुल्तान मुबारक शाह के दौरे हुकूमत में 836/ हिजरी मुताबिक 1443/ ईसवी में हुआ।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ गल्फ किलब लाडो सराए महरोली शरीफ दिल्ली 30/ में था, लेकिन अफ़सोस के अब आप के मज़ार शरीफ का निशान ही बाकी रह गया है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली