विलादत शरीफ
हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप की पैदाइश से पहले आप की वालिदा माजिदा ने ख्वाब में देखा था के एक बड़ा सितारा जो खूब रोशन था आस्मांन से उतर कर उनके सिरहाने आ गया है, आप की पैदाइश दिल्ली में माहे शव्वाल 1299/ हिजरी बरोज़ पीर को हुई,
तालीमों तरबियत
हिदायत के चमकते हुए सितारे और हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम की बारगाहे आलिया के मकबूल हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप के वालिद गिरामी का नाम हज़रत मौलाना शैख़ अब्दुल कदीर कादरी है, जिन का शुमार दिल्ली के अकाबिर उल्माए किराम में होता था, तमाम ज़िन्दगी कुरआन शरीफ व इल्मे हदीस के दरसो तदरीस में बसर की, 1857/ ईसवी के मुजाहिदीन में से थे, आप के खानदान में इल्मों फ़ज़्ल ऊपर से चला आता है, आप का ननिहाली रिश्ता शैखुल इस्लाम हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह से मिलता है, आप की तालीम का सिलसिला आप के वालिद मुकर्रम की हयात में शुरू हो गया था, कुरआन करीम को हिफ़्ज़ किया, दौराने तालीम आप के वालिद का साया सर से उठ गया, खानदान में और कोई दूसरा न था जो आप की सरपरस्ती करता, अल्लाह पाक की दी हुई काबिलियत और ज़ौक़ो शोक से तालीम हासिल की, आप के दौर के दानिशमंदों का कहना था के जैसी इल्मी तारीख़, सियासी मालूमात हमने हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! में पाई और किसी में नहीं देखि।
बैअतो खिलाफत
हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप के पीर भाई जनाब नबी रज़ा खान की ये तमन्ना थी के हिंदुस्तान के मरकज़ दिल्ली में हमारे पीरो मुर्शिद हज़रत फखरुल आरफीन रहमतुल्लाह अलैह का खलीफा बनना चाहहिए, चुनांचे अल्लाह पाक ने उन की दुआ कबूल फ़रमाई और हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! चाटगाम हाज़िर हुए और हज़रत ने इन को अपनी खिलाफत से सरफ़राज़ फ़रमाया।
करामत
हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के ससुर जनाब मौलाना अब्दुल गनी एक परहेज़गार आदमी थी मगर दुरवेशी से लगाओ नहीं था, इन के दोस्तों ने इन से कहा के आप को अपने दामाद हज़रत मौलाना शाह अब्दुल क़दीर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की कद्र नहीं वो ऐसे मुत्तक़ी व परहेज़गार और सुन्नत की पैरवी करने वाले हैं, और बीसियों फासिको फ़ाजिर आप के मुरीद बन गए और आप की सुह्बते फैज़ से पक्के मुस्लमान हो गए, इस बात को सुन कर मौलाना अब्दुल गनी साहब सोच में तबदीली आई और इनका ऐतिकाद दुरवेशों से अच्छा हो गया।
वफ़ात
आप रहमतुल्लाह अलैह ने 9/ जुमादीयुल उखरा 1378/ हिजरी 1/ दिसम्बर 1958/ ईसवी बरोज़ इतवार फजर की नमाज़ पढ़ते हुई।
मज़ार मुबारक
आप का रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार शरीफ, पूरबी बस्ती हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली 13/ हुमायूँ के मकबरे से मुत्तसिल पच्छिमी दरवाज़े के पास दरगाह हज़रत पत्ते शह रहमतुल्लाह अलैह में मस्जिद के पास मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली