हज़रत हाफ़िज़ शाह मुहम्मद अली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत हाफ़िज़ शाह मुहम्मद अली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत शाह हाफ़िज़ मुहम्मद अली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

आप आलम गीर सानी बादशाह के पीरो मुर्शिद हैं, आप बड़े मुकद्द्स बुज़रुग, शरीअत के पाबंद और बेहतरीन नसीहत करने वाले दिल में अल्लाह पाक की मुहब्बत का दर्द रखने वाले थे, आप ने सारी ज़िन्दगी दीने इस्लाम की खिदमत में गुज़ारी, काफी दिनों तक आप गुजरात में तबलीग़े इस्लाम रुश्दो हिदायत में मसरूफ रहे, आप ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुबारक मोके पर काफी तादाद में खाना तय्यार करा कर फातिहा! दिलवाते और दुरवेशों फकीरों को खिलाते थे, ये देख कर वहां के सूबेदार ने आप के साथ ज़ुल्मो ज़ियादती की क्यों के खाने में गाए का गोश्त इस्तेमाल होता था, इसलिए काफिर ने गाए काटने पर पाबंदी लगा दी,

हज़रत हाफ़िज़ शाह मुहम्मद अली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने दोस्तों साथियों के साथ सूबा गुजरात छोड़ कर दिल्ली तशरीफ़ ले आए, उसी दौरान उस सूबेदार ने दिल्ली के बादशाह से ये झूटी शिकायत की के ये फ़कीर मक्कार और जादू गर है, ये वहां लोगों को बहकाएगा, लिहाज़ा इसको गिरफ्तार कर के कैद कर दो, बादशाह फ़रखसेर ने आप को मआ साथियों के किले की मस्जिद में कैद कर दिया, उस दौरान एक बुज़रुग ने बादशाह के ख्वाब में तशरीफ़ लाए और कहा अगर तूने इस फ़कीर को रिहा न किया तो तेरे ऊपर अल्लाह का गज़ब नाज़िल होगा, बादशाह ने बेदार होते ही आप की रिहाई का हुक्म दिया, और आप से माफ़ी मांगी, और आप को इख़्तियार दिया के आप जहाँ चाहें रहें, चुनांचे आप ने अपने साथियों के साथ जामा मस्जिद में सुकूनत इख़्तियार फ़रमाई और वहीँ से दीनी खिदमात में मशग़ूलो मसरूफ हो गए।

वफ़ात

आप रहमतुल्लाह अलैह ने बादशाह फ़रखसेर के दौरे हुकूमत 19/ रमज़ानुल मुबारक 1131/ हिजरी मुताबिक 1718/ ईसवी को वफ़ात पाई।

मज़ार मुबारक

आप हज़रत हाफ़िज़ शाह मुहम्मद अली देहलवी रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार शरीफ दिल्ली 6/ में इमली की पहाड़ी पर एक बुर्ज वाली मस्जिद में है, बुर्ज आप ही की कब्र शरीफ पर बना हुआ है, इस वजह से वो मस्जिद एक बुर्ज वाली मशहूर है,

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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