रेहाने मिल्लत हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

रेहाने मिल्लत हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

विलादत बसआदत

चमानिस्ताने रज़ा के गुले सरसबद मुफक्किरे इस्लाम हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान उर्फ़ रहमानी मियां कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश 18/ ज़िल हिज्जा 1325/ हिजरी मुताबिक 1908/ ईसवी को बरोज़ जुमा को मरकज़े अकीदत शहर बरैली शरीफ के मुहल्लाह ख्वाजा क़ुतुब बरैली शरीफ में हुई, दो बेटियों के बाद हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द की आप पहली नरैना औलाद थे, इस लिए आप की विलादत से पूरे खानदान में ख़ुशी की लहार दौड़ गई, खानदान के हर फर्द का चेहरा यासमीनो नसरीन की तरह खिल गया, हर तरफ से मुबारक बादियों की सौगातें आईं, और दुआए तरक्की इल्मो उमर के नग्मे हर तरफ गूंजने लगे, आप के जद्दे अमजद हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम! नीज़ नाना जान हुज़ूर सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को इस विलादत से बेहद मसर्रत हुई।

नाम व नसब

आप का इस्मे गिरामी: “मुहम्मद” है, उर्फ़ पुकारने के लिए “रेहान रज़ा” रखा गया, सिलसिलए नसब इस तरह है: हज़रत मौलाना मुहम्मद रेहान रज़ा खान कादरी बिन, मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द हज़रत मौलाना इब्राहीम रज़ा खान बिन, हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा हामिद रज़ा खान बिन, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान कादरी फ़ाज़ले बरेलवी बिन, मुफ़्ती नकी अली खान बिन मौलाना रज़ा अली खान बिन, हाफ़िज़ काज़िम अली खान रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

तालीमों तरबियत

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान उर्फ़ रहमानी मियां कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने तफूलियत के अय्याम इल्मो हिकमत, मारफत व तरीकत के खुशगवार माहौल में गुज़ारे, बचपन ही से आप इल्मो अदब के दिलदादा थे, आला ज़हानत व फतानत रखते थे, आप की ज़हानत व फतानत, फिरासत व दानाई को देख कर आप के जद्दे अमजद हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने सिर्फ तीन साल की उमर में आप को वसीयत नामा में वली अहिद, सज्जादा नशीन, खानकाहे आलिया रज़विया का मतवल्ली नीज़ “मदरसा मन्ज़रे इस्लाम” का मोहतमिम नामज़द फ़रमाया था, इसी से आप की बुलंद इकबाली और खुदा दाद सलाहीयत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, क्यों के वसीयत करने वाला एक खुदा रसीदह बुज़रुग था, जिस की बुज़ुर्गी की दुनिया मोतरिफ है, इन की निगाहें बसीरत और नज़रे विलायत दूर तक देख रही थी, के ये बच्चा कल मुल्को मिल्लत का आबियार, शरीअतो तरीकत का अलम्बरदार होगा, नीज़ मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! का सच्चा जा नशीन होगा,

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान उर्फ़ रहमानी मियां कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की इब्तिदाई तालीम घर पर हुई, हस्बे हुक्म वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह! लाइलपुर पाकिस्तान! तशरीफ़ ले गए, वहां पर जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम! में दाखिला ले कर मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सरदार अहमद रज़वी लाइलपुरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में तीन साल मुसलसल रहकर मेआरी किताबों का दर्स हासिल किया, फिर वहां से वापसी के बाद दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम! बरैली शरीफ से बाक़ाइदा दस्तार बंदी हुई और सनादे फरागत हासिल की।

असातिज़ाए किराम

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के असातिज़ाए किराम में मुन्दर्जा ज़ैल हज़रात के असमाए गिरामी काबिले ज़िक्र हैं, जिन्हों ने शबो रोज़ मुहब्बतों शफकत के साथ इल्मे दीन पढ़ाया, और मारफत व तरीकत, उलूमो फुनून अता फरमा कर मुस्तनद आलिमे दीन बनाया।

  1. हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह
  2. ताजदारे अहले सुन्नत सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान
  3. मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सरदार अहमद रज़वी लाइलपुरी
  4. मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहिम रज़ा खान जिलानी मियां
  5. इमामुन नोह् हज़रत अल्लामा सय्यद गुलाम जिलानी मियां मेरठी
  6. मुहद्दिसे मन्ज़िरे इस्लाम हज़रत अल्लामा एहसान अली रज़वी सीतामढ़ी
  7. बहरूल उलूम हज़रत मुफ़्ती अफज़ल हुसैन रज़वी मूंगिरि सुम्मा पाकिस्तान
  8. हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती जहांगीर खां आज़मी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

दरसो तदरीस

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने सनादे फरागत हासिल करने के बाद “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ में बा हैसियत मुदर्रिस 12/ साल तक तदरीसी ख़िदमात अंजाम देते रहे, ज़बाने फैज़ तर्जुमान से गोहर फ़शानि करते रहे, इस दौरान हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने दरसे निज़ामी! की मुख्तलिफ किताबें पढ़ाईं, अदब से ज़ियादा दिलचस्पी थी, ये बात भी वाज़ेह रहे के “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” की निज़ामत का बार जब हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के काँधे पर आया तो इन फ़राइज़ की अंजाम दही और समाजी, सियासी उमूर में मुंहमिक लगाओ होने की वजह से काफी अरसा तक दरसो तदरीस से अलैदह रहे, एक तवील मुद्दत के बाद मुदर्रिसीन की कमी की वजह से दोबारा 1382/ हिजरी से 1385/ तक “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में शैखुल हदीस के उहदे पर फ़ाइज़ रहे, बुखारी शरीफ, मुस्लिम शरीफ, और दीगर किताबों का दर्स दिया, “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के तलबा हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! की काबिलियत के मोतरिफ थे, हालांके सिलसिलए दरसो तदरीस काफी दिनों तक मोकूफ था,

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! बेशुमार खूबियों के मालिक थे, आप साहिबे तर्ज़ अदीब और बेहतरीन मज़मून निगार थे, कलम बर्दाश्त मज़मून लिख देते थे, आप के मज़ामीन में सलासत व रवानी, दिल कशी व दिल आवेज़ी और फसाहत व बलाग़त बदर्जाए अतम पाई जाती थी, आप की इदारत में माह नामा “आला हज़रत” ने काफी शुहरत व मकबूलियत हासिल की।

शाने खिताबत

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! वक़्त के बेहतरीन मुकर्रिर और माया नाज़ खतीब थे, कभी भी तकरीर करने से क़ब्ल ज़हन में मज़ामीन की तरतीब नहीं दी, और ना ही तकरीर को लिख कर याद किया, बल्कि फिल बदीह तकरीर फरमाते थे, आप की तकरीर निहायत मुआस्सिर होती थी, जिस वक़्त आप तकरीर फरमाते थे तो ऐसा मालूम होता था के इल्म का दरिया मोजिज़न है, हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! अपनी वाइज़ गोई और तकरीर का इब्तिदाई हाल बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं: “वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद जब मेरी दस्तार बंदी हुई, और मुझे तकरीर के लिए पुकारा गया, तो में उस वक़्त तकरीर नहीं करता था, मगर तकरीर के ऐलान के लिए मेरा ऐलान कर दिया गया, ये ऐलान सुन कर में दंग रह गया, और सब से पहले जद्दे अमजद सरकार सय्यदना आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु के मज़ारे पुर अनवार पर हाज़री दी और अर्ज़ किया, हुज़ूर! अगर आज मेरी तकरीर कामयाब नहीं हुई तो में ज़िन्दगी भर कभी तकरीर नहीं करूंगा, सरकार सय्यदना आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु से इस्तेआनत रूहानी हासिल की, सरकार सय्यदना आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु के रूहानी तसर्रुफ़ से ये तकरीर बहुत कामयाब रही, इस के बाद से मेआरी तकरीरें होती रहीं, जो लोगों के लिए दिल पज़ीर साबित हुईं।

फतवा नवेसी

आप की फ़िक़्ही सलाहियत को देख कर उल्माए किराम व मुफ्तियाए इज़ाम हैरत किया करते थे, आप ने मुख्तलिफ मोज़ों पर फतावा लिखे हैं, सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! के बादे विसाल आप फतावा नवेसी के काम में ज़ियादा मशगूल हो गए थे, “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” का दारुल इफ्ता! आप ही के ज़ेरे निगरानी था, आप का फतवा निहायत ही मुफ़स्सल व मुदल्लल हुआ करता था, विसाल से पहले जो आप ने फतवा तहरीर किया वो निहायत मुफ़स्सल व मुदल्लल है, और आप का आखरी फतवा भी है।

जुलूसे मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दोबारा शुरू करवाया

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! के ना काबिले फरामोश कारनामो में ये कारनामा सब से अज़ीम ज़िन्दाये जावेद है, मुल्के हिंदुस्तान की आज़ादी से पहले जुलूसे मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! का जश्न बरैली शरीफ में निहायत ही तुज़को एहतिशाम यानि शानो शौकत इज़्ज़तो अज़मत के साथ मनाया जाता था, और लोग ख़ुशी के साथ जोक दर जोक जुलूस में शरीक होते थे, लेकिन 1947/ से जुलूसे मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! का जश्न बरैली शरीफ से कल अदम यानि खतम हो गया था, लोग मुसलसल कोशिश के बाद भी ना काम रहे, क्यों के एक तरफ शरपसंद फिरका परस्त अनासिर गुंडागर्दी इस के पीछे तो दूसरी तरफ तौहीने रिसालत के मुजरिमीन की हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुश्मनी इस की पुश्तपनाही कर रही थी, लेकिन आप ने किसी की परवाह किए बगैर 1980/ ईसवी में 12/ रबीउल अव्वल को जुलूस! निकालने का ऐलान कर दिया, ये सुनते ही देओबंदी वहाबी और इस्लाम दुश्मन जमाअतें अपनी पूरी तवानाई इसको रोकने में सर्फ़ करने लगे, पोलिस वाले भी इसे बंद करने की कोशिश करने लगे, के किसी तरह जुलूस! ना निकाला जाए, लेकिन आप ने इरशाद फ़रमाया, हरगिज़ नहीं जुलूस निकलेगा क्यों के आज हमारे प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! का यौमे विलादत (BIRTH, DAY,) है, हम इसी ख़ुशी में जुलूस का इनईकाद करते हैं, और ता क़यामत करते रहेंगे चाहे हमें इस के लिए जेल जाना पड़े,

आखिर कार एडमिनिस्ट्रेशन ने पोलिस हुक्काम को इजाज़त दे दी के वो जुलूस निकालने में मदद करे, चुनांचे 12/ रबीउल अव्वल शरीफ को आप ने जुलूसे मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ियादत फरमाते हुए इस में शिरकत की और कामयाब क़ाइद की हैसियत से पैदल चलकर जुलूस को पाए तकमील तक पहुंचाया, बरैली शरीफ के बाशिंदे हुज़ूर रेहाने मिल्लत! के इस अज़ीम दीनी तारीखी और अज़ीम यादगार कारनामे को कभी फरामोश नहीं कर सकते।

शेरो शायरी

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने मुख्तलिफ अस्नाफ सुखन पर तबआ आज़माई फ़रमाई है, हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! को शायरी वर्से में मिली, ज़बान इन के घर की बांदी है, आप ने हम्द, नअत, मनकबत, ग़ज़ल सब कुछ कहा, हर एक में रंग तग़ज़्ज़ुल झिलमिलाता है, बुलंद ख़याली और नगमगी पढ़ने और सुनने वाले को मसहूर कर देती है, लताफत,सदाकत, गहराई, बुलंद फलसफा और फ़साहतो बलाग़त अशआर की जान हैं आप के चंद अशआर मुलाहिज़ा कीजिए:

गुलिस्ताने रज़ा का फूल हूं “रेहान” कहते हैं
मेरा आगाज़ जन्नत है मेरा अंजाम जन्नत है

नाम ये जिस ने दिया उस को खबर थी शायद
उन का रेहान ज़माने में चमकता होगा

ये रेहान दीनो सुन्नत के महकते हैं जिधर देखो
नवाज़िश है रज़ा की और एहसान है उन के मंज़र का

रेहान सा कोई फूल गुलिस्तां में नहीं है
हर रुख से चमन अहले नज़र देख रहे हैं

सियासी सरगर्मियां

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! 1976/ ईसवी में अवामो ख्वास बिलख़ुसूस उल्माए किराम के इसरार पर मैदाने सियासत में कदम रखा, यहाँ रखकर जो कारहाए नुमाया अंजाम दिया वो अपनी मिसाल आप हैं, आप की कार करदगी, मुआमला फहमी, दूर अंदेशी जोहरे सियासत देख कर जनाब अकबर अली गवर्नर उत्तर प्रदेश ने जनवरी में 1976/ ईसवी में एम, एल, सी, (कानून साज़ कॉन्सिल मेंबर) नीज़ यूपी कांग्रेस आई का नाइब सदर मुन्तख़ब किया, अठारा 18/ साल का तवील लम्बा अरसा मैदाने सियासत में गुज़ारा मगर कहीं भी किसी किस्म का लोच या दामन पर बदनुमाई का दाग ना लगने दिया।

दावती व तब्लीगी अस्फार

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने अरब, अफ्रीका, होलेंड, बर्तानिया, सिरिनाम, अमरीका, मॉरीशस, सीरी लंका, मानचेस्टर, बंगला देश, नेपाल, पाकिस्तान वगेरा, के तब्लीगी दौरे किए, जुनूबी अफ्रीका के दौरे पर रद्दे वहाबियत किया के वहां के लोग दंग रह गए, बड़े बड़े सरमाया दारों ने खरीदने की कोशिश की, लाखों को रुपए का लालच दिया लेकिन वो लोग नाकाम रहे, मुल्के हिंदुस्तान का कोई सूबा ऐसा नहीं जहाँ हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने दौरा ना किया हो, हर जग हर मकाम पर रुश्दो हिदायत की बातें की हैं, और मसलके आला हज़रत की तरवीजो इशाअत का खूब खूब चर्चा किया है।

इजाज़तो खिलाफत

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! बैअतो खिलाफत हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! से रखते थे, 1938/ ईसवी को जद्दे अमजद हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने माज़ून व मिजाज़ फ़रमाया, और 15/ जनवरी 1962/ ईसवी को हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत रेहाने मिल्लत! और जानशीने मुफ्तिए आज़म हिन्द हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को साथ ही साथ खिलाफत व इजाज़त अता फ़रमाई, और ये खिलाफत मिलाद शरीफ की मुबारक महफ़िल में अता हुई, खिलाफत के वक़्त शमशुल उलमा हज़रत अल्लामा काज़ी शमशुद्दीन अहमद रज़वी जाफरी जौनपुरी रदियल्लाहु अन्हु (मुसन्निफ़ कानून शरीअत) भी रौनक अफ़रोज़ थे, और वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द अल्लामा इब्राहीम रज़ा खान बरेलवी से भी इजाज़त हासिल थी।

आप की औलादे अमजाद

हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने सात औलादें छोड़ीं हैं, जिन में पांच लड़के और दो लड़कियां हैं,

  1. मख़्दूमे गिरामी हज़रत मौलाना अल हाज मुहम्मद सुब्हान रज़ा खान कादरी सुब्हानी मियां मद्दा ज़िल्लुहु
  2. मख़्दूमे गिरामी मुहम्मद उस्मान रज़ा खान अंजुम कादरी मद्दा ज़िल्लुहु
  3. मख़्दूमे गिरामी मुहम्मद तौकीर रज़ा खान मद्दा ज़िल्लुहु
  4. मख़्दूमे गिरामी हज़रत मौलाना अल हाज तौसीफ रज़ा खान कादरी मद्दा ज़िल्लुहु
  5. मख़्दूमे गिरामी कारी मुहम्मद तस्लीम रज़ा खान शीराज़ नूरी मद्दा ज़िल्लुहु

अल हम्दुलिल्लाह! सब के सब बकैदे हयात हैं, और सभी हज़रात खिदमते ख़ल्क़, मज़हबे अहले सुन्नत मसलके आला हज़रत की इशाअत व तब्लीग के लिए हमा वक़्त मुस्तअद कमरबस्ता रहते है, और दोनों साहबज़ादियाँ भी हयात हैं, और साहिबे औलाद हैं, इन के लड़कों के नाम ये हैं: सैफ रज़ा, सफ़वान रज़ा, सुफियान रज़ा, हैं।

तारीखे विसाल

आप का विसाल 18/ रमज़ानुल मुबारक 1405/ हिजरी मुताबिक जून 1985/ ईसवी को हुआ, इस्लामिया इंटर कॉलिज ग्राउंड में आप की नमाज़े जनाज़ाह अदा की गई, हुज़ूर साहिबे सज्जादा मारहरा मुक़द्दसा हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी बरकाती रदियल्लाहु अन्हु ने नमाज़ पढाई और आप को सुन्नत के मुताबिक़ कब्रे अनवर के सुपुर्द कर दिया।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुकद्द्स हुज़ूर सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु और हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम मुफ़्ती हामिद राजा खान रहमतुल्लाह अलैह! के माबैन यानि बीच में बना हुआ है, ज़िला बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत

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