आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 9)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के फ़ज़ाइल व कमालात”

हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति सुम्मा पीलीभीती

हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के हम अस्र थे, ज़बर दस्त मुहद्दिस, आलिमें दीन, फकीह, थे आप भी आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की बे इंतहा तआज़ीमों तौकीर अदब फ़रमाया करते थे, हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

मेरे उस्ताद फन्ने हदीस के इमाम “हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह” से एक बार में ने पूछा के आप तो हज़रत अल्लामा शाह फ़ज़्ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद हैं लेकिन में देखता हूँ के आप को जितनी अक़ीदतो मुहब्बत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से है वो किसी से नहीं, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की याद उनका तज़किराह ज़िक्र उन के इल्मों फ़ज़्ल का खुत्बा, आप की ज़िन्दगी के लिए रूह का मकाम रखता है इस की क्या वजह है?

हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति सुम्मा पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के “सब से बड़ी दौलत वो इल्म नहीं है जो में ने मौलाना इसहाक मुहश्शीये बुखारी! से पाया और सब से बड़ी नेमत वो बैअत नहीं है जो मुझे हज़रत अल्लामा शाह फ़ज़्ले रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह! से हासिल हुई, बल्के सब से बड़ी दौलत और सब से बड़ी नेमत वो ईमान है जो मदारे निजात है वो में ने सिर्फ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से पाया और मेरे सीने में पूरी अज़मत के साथ मदीने के बसाने वाले आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ही हैं, इसी लिए उनका चर्चा तज़किराह मेरी रूह में बालीदगी (यानि इज़ाफ़ा, बढ़ोतरी) पैदा करता है और उन के एक एक कलमे को अपने लिए मशअले हिदायत जनता हूँ, में ने अर्ज़ क्या इल्मे हदीस में वो क्या आप के बराबर हैं? “हरगिज़ नहीं” फिर फ़रमाया शहज़ादे साहब! आप कुछ समझे के “हरगिज़ नहीं” का क्या मतलब है सुनो! आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी इस फन में “अमीरुल मोमिनीन फिल हदीस” हैं के में सालो साल से सिर्फ इस फन में शागिर्दी करूँ तो भी उन का पासिंग ना ठहरूं,

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: एक मर्तबा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी पीलीभीत में हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैहके यहाँ तशरीफ़ ले गए, सभी मुतावस्सिलीन मुआतकादीन खुद हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह पैदल पालकी के पीछे पीछे हो लिए, चूंकि पालकी ले जाने वालों की रफ़्तार तेज़ थी, आप ने कोशिश फ़रमाई, यहाँ तक के दौड़ना शुरू कर दिया और इसी पर बस ना किया बल्के नालेंन शरीफ यानि जूतियां बगल में दबा लीं सभी आम हज़रात हैरतो तअज्जुब से पालकी और मौलाना को देख रहे थे, जभी पालकी ले जाने वालों ने कांधा बदलने के लिए पालकी रोकी, चूँकि हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह! तेज़ी से साथ में थे लिहाज़ा पालकी की खिड़की का सामना हो गया, जिस वक़्त आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की नज़र हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह पर पड़ी के नग्गे पाऊं साथ में हैं, पालकी ले जाने वालों को हुक्म दिया पालकी यहीं रख दो और फ़रमाया मौलाना! ये क्या गज़ब कर रहे हैं, उन्होंने फ़रमाया हुज़ूर! आप तशरीफ़ रखें, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता, हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया आप बहुत कमज़ोर हैं और मकान अभी दूर है, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया अच्छा तो आप यहीं से वापस तशरीफ़ ले जाओ, तब में पालकी में बैठूंगा, वरना में पैदल चलूँगा, बिला आखिर मुहद्दिसे सूरति! को वापस होना पड़ा, तब पालकी आगे बढ़ी, चूँकि हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह भी वहां पर बुलाए गए थे, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के पहुंच जाने के बाद उन रईस साहब! ने दोबारा पालकी हज़रत मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह के लिए भेजी, ख़लीफ़ए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी हज़रत मौलाना शाह ज़ियाउद्दीन अहमद मदनी फरमाते हैं के: में जब इमामुल मुहद्दिसीन हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह के पास “मदरसतुल हदीस” पीलीभीत शरीफ में पढ़ता था, तो उनका ये मामूल था के हर जुमेरात को बरेली शरीफ हुज़ूर पुरनूर मुर्शिदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में तशरीफ़ ले जाते थे, और जुमा को लपिलीभीत वापस आ जाते और सय्यद खादिम हुसैन साहब अली पूरी!

इब्ने पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह इस सफर में आप के हमराह (साथ) होते थे, फ़कीर तकरीबन ढाई साल पीलीभीत रहा और ढाई साल तक हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह के हमराह (साथ) हर जुमेरात बरेली शरीफ हाज़िर होता रहा।

हज़रत पीर सय्यद गुलाम अब्बास शाह साहब! (मखड शरीफ पाकिस्तान)

(मखड शरीफ पंजाब, पाकिस्तान) खानदाने कादिरिया के मशहूर सज्जादा नशीन हज़रत पीर सय्यद गुलाम अब्बास शाह हुसैनी जिलानी मखडवि रहमतुल्लाह अलैह भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के तारीफों तौसीफ मद्दाह ख्वानो में थे, सय्यद अय्यूब अली साहब! बयान करते हैं के: एक बर्ताबा एक बुज़रुग (मखड शरीफ) पंजाब के रहने वाले (दिल्ली से अपने एक आदमी के ज़रिए से जिन का इस्मे गिरामी सूफी अहमद दीन साहब! था और लाहौर के बाशिंदे थे) अपनी आमद की खबर देते हैं, (सूफी साहब से ये भी मालूम हुआ के हज़रत सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की औलादे अमजाद में से हैं, और बहुत बड़े मश्हूरो मारूफ आदमी हैं, नामे नामी इस्मे गिरामी “हज़रत पीर गुलाम अब्बास है” हम लोग उन के आस्ताना आलिया पर सफाई वगेरा करते हैं,)

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने अपने एक खादिम को सूफी साहब के साथ में स्टेशन रवाना फ़रमाया मगर पीर साहब तशरीफ़ नहीं लाए थे, दूसरी बार फिर आदमी स्टेशन पर भेजा और वो भी बे नील व मराम (मकसद, मतलब) वापस आया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया एक बार और चले जाओ फिर ज़रूरत नहीं, चुनांचे तीसरी बार में पीर साहब! तशरीफ़ लाए, जिन की ऐजाज़ो एहतिराम के साथ मेज़बानी की गई, अब शुदाह शुदाह पीर साहब! आने की खबर फौजियों के केम्प में पहुंची और वहां से पंजाब के बा कसरत मुस्लमान फौजी आदमियों की आमद का सिलसिला शुरू हो गया और जब तक क़याम रहा, यही कैफियत रही, दौरान क़याम आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने एक रोज़ “पीर साहब! की दावत भी की, सूफी अहमद दीन के ज़रिए पीर साहब! की तशरीफ़ आवरी का सबब मालूम हुआ और वो ये था के अगर पीर साहब! के हज़ारों मुरीद हैं, मगर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से खिलाफ़तो इजाज़त और तकमील की तमन्ना ले कर तशरीफ़ लाए, चुनांचे एक दिन “पीर साहब! ने चाहा के सब लोग अलग हट जाएं हम सब लोग अलग हट गए गालिबन यही मरहला आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से तय किया गया था, “पीर साहब! तकरीबन दो ढाई हफ्ते मुकीम यानि ठहरे रहे, आखरी जुमा की सुबह को आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! एक बादामी पर्चे पर कुछ लिख कर लाए और वो परचा “पीर साहब! को अता फ़रमाया, वो इस तहरीर मुनीर को ले कर देखते हैं और कहते हैं के हुज़ूर! मेरी समझ में एक हर्फ़ भी नहीं आया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया “यहाँ अंदर कमरे में आ जाओ तो समझ में आ जाएगा” “पीर साहब! कमरे में जिस वक़्त पहुचें तो हुज़ूर ने फ़ौरन कमरा बंद कर लिया, में और मेरे भाई कनाअत अली सेहदारी में काम करते रहे, ये तन्हाई कई घंटे जारी रही, कमरे की किवाड़ और सारे सूराख बंद होने से अँधेरा हो गया, फिर ये के इतनी देर ये भी न मालूम हुआ के कोई इस कमरे के अंदर है या नहीं, सिर्फ खामोश पाया गया, गरज़ बड़ी देर में हुज़ूर ने किवाड़ खोले और “पीर साहब! से ये फरमाते हुए के अब इजाज़त दीजिए जुमा का दिन है, अंदर तशरीफ़ ले गए, इस के बाद “पीर साहब! अपने पलंग पे खड़े हो गए और झूम झूम कर हम लोगों से फरमाने लगे के आप हज़रात बड़े खुश किस्मत हैं आप को मुबारक बाद देता हूँ के ऐसे बुज़रुग के मुरीद हैं और में आप लोगों को ये बताना चाहता हूँ के में कोई मामूली आदमी नहीं हूँ, और दुनियावी वजाहत रखता हूँ के पंजाब का गवर्नर मेरे सामने हेड उतार कर आता है, लिहाज़ा मेरे इन अल्फ़ाज़ को हल्का ना जानो वाकई आप बड़े खुशनसीब हैं, उनका अंदाज़े कलाम उस वक़्त ये बताता था के जो कुछ उन्होंने देखा उस को ज़ाहिर नहीं कर सकते थे, इसलिए इजमाली अल्फ़ाज़ पर इक्तिफा फरमा रहे थे, इस के बाद “पीर साहब! तशरीफ़ ले गए और कुछ अरसे बाद दो बड़े पिंजरों में कई सो बटेर तोहफे में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की खिदमत में भेजीं।

पीर सय्यद जमाअत अली शाह मुहद्दिसे अली पूरी पाकिस्तान

हज़रत पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह 1297, हजिरि में “अली पुर सय्यदां ज़िला सियालकोट पाकिस्तान” में पैदा हुए आप नजीबुत तरफ़ैन सय्यद थे, सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया में हज़रत ख्वाजा फ़कीर मुहम्मद अल्मारूफ़ “बाबा जी चौरा शरीफ” के मुरीद हुए, और क़लील मुद्दत के बाद खिलाफ़तो इजाज़त से मुशर्रफ हुए, आप ने 118, साल की उम्र पाई, 27, अक्टूबर 1904, में दज्जाल कज़्ज़ाब मुरतद मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादयानी सियालकोट में आप के मुकाबले में आया तो सख्त ज़लील व रुसवा हो कर भागा, आप ने बेशुमार हज! किए कमो बेष 50, बार दरबारे रिसालत में हाज़री दी, सैंकड़ो मस्जिदें तामीर करवाई और मुतअद्दिद मदरसे जारी किए, इन का कुछ तज़किरा हम पिछले मज़मून आर्टिक्ल में कर चुके हैं के कैसे इन के ख्वाब में हज़रत सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में हाज़िर होने का हुक्म इरशाद फ़रमाया: हज़रत पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाया करते थे “अगर मौलाना अहमद रज़ा खान ना होते तो देओबंदी सारे हिंदुस्तान को वहाबी बना देते,
हज़रत पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह का वाकिअ है के: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी दूसरे हज पर तशरीफ़ ले गए तो आप भी वहीं थे, एक मर्तबा काबा शरीफ की हाज़री के मोके पर मौलवी खलील अहमद अंभेठि को जब आप के मुतअल्लिक़ मालूम हुआ के आप यहाँ मोजूद हैं तो अज़ खुद आ कर आप से मुसाफा किया बाद में आप को बताया गया के ये मौलवी खलील अहमद अंभेठि था उस के कुछ ही देर बाद वहीं पर हज़रत पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के दरमियान मुलाकात व मुसाफा व मुआनिके का इत्तिफाक भी हो गया, हज़रत पीर सय्यद जमाअत अली शाह रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: शुक्र है एक आशीके रसूल की मुलाकात से एक बद अक़ीदह की मुलाकात का कफ़्फ़ारा हो गया।

मियां शेर मुहम्मद शरक पूरी (पाकिस्तान) रहमतुल्लाह अलैह

शेरे रब्बानी हज़रत मियां शेर मुहम्मद शरक पूरी रहमतुल्लाह अलैह 1282, हिजरी में “क़स्बा शरकपुर, ज़िला शेखुपुरा, सूबा पंजाब, मुल्के पाकिस्तान! में पैदा हुए, बचपन ही में आप पर मुहब्बते इलाही (अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की याद लग्न) का गलबा था, ह्या! का ये आलम था के गली कूचे मुहल्लों में चादर ओढ़ कर गुज़रते थे, आप साहिबे करामत बुज़रुंग! थे, आप की बहुत बड़ी करामत ये थी के बेशुमार अफ़राद आप की हिदायत पर सूरत और सीरत में मुत्ताबए शरीअत (शरीअत पर चलने वाले बा अमल) बन गए 1347, हिजरी शरकपुर शरीफ में विसाल फ़रमाया और वहीँ दफन हुए,

इनके बारे में भी हम पिछले आर्टिकल्स मज़मून लिख चुके हैं के इन को भी हज़रत सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से मिलने का इरशाद फ़रमाया: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से मुलाकात के बाद (इस हिस्से का बाकी बयान इनके बारे में भी हम पिछले आर्टिकल्स मज़मून लिख चुके हैं) जब आप शरकपुर पाकिस्तान वापस पहुंचे तो मुरीदीन ने पूछा हुज़ूर! आप ने वहां क्या देखा? हज़रत मियां शेर मुहम्मद शरक पूरी रहमतुल्लाह अलैह के आंसू जारी हो गए और फरमाने लगे में क्या बताओ के क्या देखा? अरे! ये देखा के एक पर्दा है उस के पीछे से ताजदारे मदीना शहंशाहे दो आलम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बताते हैं और “मौलाना अहमद रज़ा” बोलते हैं, सुब्हानल्लाह।

हज़रत पीर हाफ़िज़ अब्दुल्लाह शाह साहब भरचौंडी शरीफ पाकिस्तान

खानकाहे कादिरिया “भरचौंडी शरीफ” सूबा सिंध पाकिस्तान! का क़याम हज़रत हाफ़िज़ मुहम्मद सिद्दीक रहमतुल्लाह अलैह के ज़रिए 1258, हिजरी में अमल में आया, आप के बाद आप के भतीजे हाफ़िज़ मुहम्मद अब्दुल्लाह की पैदाइश 1383, हिजरी में “भरचौंडी शरीफ” सूबा सिंध पाकिस्तान! में हुई जो आप के जानशीन बने, हाफ़िज़ मुहम्मद अब्दुल्लाह कादरी रहमतुल्लाह अलैह ने तालीमों तरबियत के साथ साथ रुश्दो हिदायत का सिलसिला निस्फ़ सदी से भी ज़ियादा जारी रखा, उस दौरान राहे तरीकत की मनाज़िल तय करने वालों में बा कमाल मजज़ूब व आरिफ दुर्वेश पैदा किए, आप का विसाल 25, रजाबुल मुरज्जब 1346, हिजरी “भरचौंडी शरीफ” में हुआ और इसी खानकाह में तदफ़ीन हुई, “हिंदुस्तान दारुल हरब है या दारुल इस्लाम? इस मसले के हल के लिए आप ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से रुजू किया, सवाल में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के लिए बड़े मुहब्बत भरे अल काबात इस्तेमाल फरमाए जिन से उन की आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से मुहब्बत का अंदाज़ा होता है, तहरीर फरमाते हैं: “बा खिदमत ताजुल फुकहा, सिराजुल उलमा, मुदककिकीन, हामिये सुन्नत, वददीन, गियासुल इस्लाम वल मुस्लिमीन, मुजद्दिदे मियते हाज़िरा, जनाब शाह अहमद रज़ा खान कादरी, बसद अदा।

हज़रत ख्वाजा मुहम्मद यार फरीदी गढ़ी इख़्तियार खां पाकिस्तान

हज़रत ख्वाजा मुहम्मद यार फरीदी रहमतुल्लाह अलैह 1300, हिजरी “गढ़ी इख़्तियार खां ज़िला रहीम यार खां पाकिस्तान! में पैदा हुए, हज़रत ख्वाजा गुलाम मुहम्मद फरीद रहमतुल्लाह अलैह “कोट मठन शरीफ” के दस्ते हक परस्त पर बैअत हुए और उन के पोते से इजज़तो खिलाफत हासिल हुई, आप की तकरीर हद दर्जा पुरसोज़ हुआ करती थी, मसाइले तसव्वुफ़ को बा खूबी बयान करते थे, 14, रजाबुल मुरज्जब 1367, हिजरी में विसाल हुआ गढ़ी इख़्तियार खां पाकिस्तान में आप का मज़ार मरजए खलाइक है,

आप आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से काफी दर्जा उल्फतो मुहब्बत रखते थे, सय्यद मुहम्मद फारूक कादरी तहरीर फरमाते हैं: एक महफ़िल में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की मौजूदगी में मिम्बर शरीफ पर बिठाया गया, एक आशिके रसूल की इसे बड़ी ख्वाइश और क्या हो सकती है के सामने भी अपने वक़्त का नामवर आलिम, शैख़े तरीकत और बुलंद मर्तबा आशिके रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हो, जो इल्मे मारफत की तमाम लताफ़तों और बारीकियों को ना सिर्फ समझता हो बल्कि खुद भी इस राह! का राही हो, हज़रत ख्वाजा मुहम्मद यार फरीदी रहमतुल्लाह अलैह ने अपना मख़सूस खुत्बा शुरू किया तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने उठ कर आप के गले में फूलों का हार डाला और फ़रमाया: “सर आमद वाइज़ीने पंजाब” सूए इत्तिफाक मुसलसल सफर और वाइज़ व तकरीर की वजह से आप का गला जवाब दे गया, और ख़ुत्बे से आगे आप एक लफ्ज़ भी न बोल सके मगर आप को सारि उमर इस का फसोस रहा, एक मर्तबा आप ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से एक इस्तफ्ता भी लिया इस में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से यूं मुहब्बत का इज़हार करते हैं! “क़िबला मुआतकीदीन दामा ज़िल्लुहुम” अज़ ख़ाक सार मुहम्मद यार! मुश्ताक दीदार, बादे नियाज़ शबे मेराज आप का “कसीदह मेराजिया” पढ़ा गया, जिस पर वहाबियों ने “दुलहा” “दुल्हन” के अल्फ़ाज़ के मुतअल्लिक़ शोर उठाया के अल्लाह पाक व हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हक में इन के अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करना मूजिबे कुफ्र है, शबे बरात को यहाँ “गढ़ी इख्तियार खान” में इन अल्फ़ाज़ के बारे में वहाबियों की तरफ से मेरे साथ एक तवील लम्बी बहस होने वाली है,

ऐ मुजद्दिदे बामाने बे सरो सामा मदादे
किब्लए दीं मदादे काबए इमां मदादे

इस के जवाब में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने एक पूरा रिसाला तहरीर फ़रमाया जिस का खुलासा ये है के इस कसीदे में किसी जगह भी अल्लाह पाक को मआज़ अल्लाह दूलह वगेरा नहीं कहा गया अल बत्ता हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दूल्ह कहा गया है के वो बेशक सलतनाते इलाही के दूल्ह हैं।

हज़रत ख्वाजा अल्लाह बख्श तूंसवी रहमतुल्लाह अलैह

“तूंसा शरीफ” “तहसील डेरा गाज़ी खान सूबा पंजाब पाकिस्तान! के सज्जादा नशीन हज़रत ख्वाजा अल्लाह बख्श तूंसवी रहमतुल्लाह अलैह भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तारीफ क्या करते थे, आप फरमाते हैं “मौलाना बरेलवी ने वहाबीया का खूब रद्द किया है” ख्वाजा मुईनुद्दीन तूंसवी फरमाते हैं: में रोज़ाना बाद मगरिब दो रकअत नमाज़ का सवाब! आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की नज़र करता हूँ क्यों के वो हमारे मुहसिन एहसान करने वाले और वहाबियत के कैंसर से बचाने वाले तबीब डॉक्टर हैं।

हज़रत शाह नेमत अली खाकी बाबा रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत अल हाज शाह नेमत अली खाकी बाबा रहमतुल्लाह अलैह सूबा बिहार! में पैदा हुए अक्सर जज़्ब व कैफ के आलम में रहते थे, मगर सीरतो किरदार का कोई गोशा शरीअत से अलग न होने दिया, जज़्ब व कैफ के आलम में भी नमाज़ों को अपने वक़्त पर अदा करना आप का तुर्राए इम्तियाज़ था, सफ़रो हज़र हर जगह निहायत पाबंदी से नमाज़ पढ़ते थे, मुजद्दिदे आज़म सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से आप के रवाबित तअल्लुक़ात के आसार मिलते हैं, जहाँ कहीं आप शक तरद्दुद का शिकार हुए फ़ौरन फकीहे इस्लाम मुजद्दिदे आज़म सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में इस्तिफता भेजा करते और उन के फतावा की रौशनी में अमल करते।

मजज़ूबूल औलिया हज़रत चुप शाह मियां रहमतुल्लाह अलैह पीलीभीत

मजज़ूबूल औलिया हज़रत चुप शाह मियां रहमतुल्लाह अलैह पीलीभीत शरीफ के मश्हूरो मारूफ बुज़रुग थे, आप का मज़ार शरीफ पीलीभीत शरीफ में है, आप का नाम शाह अब्दुल वहीद खान था, आप पर हर वक़्त जज़्ब तारी रहता था, किसी से बात चीत नहीं करते थे इसी लिए “चुप शाह मियां” के नाम से मारूफ हुए, हज़रत चुप शाह मियां रहमतुल्लाह अलैह मुहल्लाह डोरी लाल में जामन के दरख्त पेड़ के नीचे बरहना (बगैर कपड़ों के) की हालत में पड़े रहते थे, करीब में आग सुलगती रहती थी,

हर वक़्त “चुप खामोश” रहते थे, एक रोज़ हज़रत चुप शाह मियां रहमतुल्लाह अलैह खड़े हो कर बुलंद आवाज़ से फरमाने लगे कोई है! कोई है! कोई है! इतने में एक शख्स उन के पास पंहुचा, उसने कहा मियां साहब! क्या है? फ़रमाया में बरहना हूँ, सत्र खुला हुआ है, एक मर्दे हक आ रहा है, जल्दी से कोई कपड़ा लाओ के में अपने जिस्म को छुपाऊं, उस शख्स ने कंबल ला कर दे दिया, आप ने उस कंबल को ओढ़ लिया और अपना जिस्म छुपा लिया और खड़े हो गए किसी के इन्तिज़ार में इतनी देर में एक पालकी आई जिस में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी तशरीफ़ ला रहे थे, पालकी जब करीब पहुंची तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया पालकी रोक दी जाए, अल्लाह के वली की खुशबू आ रही है! पालकी रोकी, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी पालकी में से उतर कर हज़रत चुप शाह मियां रहमतुल्लाह अलैह की तरफ चले और चुप शाह मियां! आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की तरफ दौड़े और चिपट गए, मुआनिका के बाद बीस मिंट तक पश्तो ज़बान में गुफ्तुगू फ़रमाई, दोनों शख्सीयत के दरमियान जो गुफ्तुगू हुई वो किसी के समझ में ना आई, फिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी पालकी में सवार हुए, जब पालकी चली गयी तो हज़रत चुप शाह मियां रहमतुल्लाह अलैह अपनी क़याम गाह पर आए ।

मजज़ूब हज़रत धोका शाह साहब रहमतुल्लाह अलैह बरेली शरीफ

बरैली शरीफ में मश्हूरो मारूफ मजज़ूब हज़रत धोका शाह साहब रहमतुल्लाह अलैह रहते थे जिन पर जज़्ब की कैफियत तारी रहती थी, हाजी हिमायतुल्लाह साहब के मकान पर रहते थे, ये भी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी का बहुत अदब करते थे और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! भी इनका अदब करते थे, जब उनका विसाल का वक़्त करीब आया तो हाजी हिमायतुल्लाह साहब के मकान ही में रात को तकरीबन दो बजे विसाल फ़रमाया, घर वालों को भी खबर नहीं, सुबह को फजर से पहले मुहल्लाह सोदगिरान से पैदल चल कर मुहल्लाह ज़खीरा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी तशरीफ़ ले गए, हाजी हिमायतुल्लाह साहब के मकान की कुंडी खटखटाई, हाजी साहब” बाहर आए देखा के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! तशरीफ़ लाए और अर्ज़ किया के हुज़ूर! इस वक़्त कैसे तकलीफ फ़रमाई, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया: तुम को कुछ खबर भी है हज़रत धोका शाह साहब रहमतुल्लाह अलैह” का विसाल हो गया, हाजी हिमायतुल्लाह साहब ने जब घर जा कर देख तो हज़रत धोका शाह” विसाल फरमा चुके थे, अल्लाहु अकबर! घर वालों को भी खबर नहीं और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी मुहल्लाह सौदागिरान! में रह कर बा खबर हैं, सुब्हानल्लाह! ये हैं अल्लाह वाले रहते हैं कहीं देखते हैं कहीं।

हज़रत मजज़ूब दाना मियां पीलीभीती

मजज़ूबे दौरां हज़रत दाना मियां पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह का शुमार भी मानवर मजाज़ीब में होता है, आप हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह के बहुत ज़ियादा अकीदत मंद थे, एक ऐसा वक़्त आया के हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां रहमतुल्लाह अलैह ने आप को मुहब्बत से गले लगा लिया, उसी वक़्त आप अज़ खुद रफ्ता हो गए, इन्होने एक मर्तबा ट्रेन को अपनी करामत से रोक दिया था, बरैली शरीफ का हर हिन्दू बच्चा बच्चा आप को जनता था और बरैली के लोग आप के बड़े मोतक़िद थे, और आप की बड़ी खिदमत करते थे मगर आप शहर में कहीं मुस्तकिल न ठहरते थे, मजज़ूबे वक़्त हज़रत दाना मियां पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह जब मुहल्लाह सौदागिरन की गलियों से गुज़रते तो हर तरफ देखते, भांपते, घबराते हुए निकल जाते के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का सामना न हो जाए इनकी इस कदर एहतियात से अंदाज़ा होता है के वो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के सामने आना नहीं चाहते थे,

एक रोज़ मौलाना हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह हज़रत दाना मियां रहमतुल्लाह अलैह से अर्ज़ किया के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी इस वक़्त बाहर फाटक में तशरीफ़ फरमा हैं, चलो आप को उन से मिलवाते हैं, आप अपनी कच्ची ज़बान से इनकार करते रहे के “में नहीं जाऊँगा” जब उन से ज़ियादा इसरार किया तो बोले मौलवी रजा अहमद खान शिरे के बिल्ली हैं में वाके अकेला हर गिज़ ना जाऊँगा मेरे फिरिज खूब भय हैं! (मौलाना अहमद रज़ा खान शरीअत के वली हैं में वहां हरगिज़ नहीं जाऊँगा मेरा सतर खुला हुआ है, आप जज़्ब की हालत में सिर्फ लंगोटी बाँधा करते थे) एक दिन यही दाना मियां! मुहल्लाह सौदागिरन से गुज़रे तो सामने से आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को देख कर भागे और गली में चुप गए लोगों ने पूछा कियूं भाग रहे हो? बा मौलवी आ रओ है लोगों ने कहा मौलवी साहब आ रहे हैं तो क्या हुआ, घुटनो पर हाथ रख कर फ़रमाया फिरिज खुले भय हैं यानि (सत्र खुला हुआ है में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के सामने नहीं जा सकता)।

मुमबई माहिम शरीफ के एक “मजज़ूब”

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी एक बार मुंबई तशरीफ़ ले गए, वहां “महाइम शरीफ” के एक मजज़ूब की शोहरत सुनी तो उन से मुलाकात का शोक हुआ, चुनांचे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी हज़रत मौलाना अब्दुस्सलाम जबलपुरी! और इन के साहबज़ादे हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद बुरहानुल हक जबलपुरी रहमतुल्लाह अलैह उन मजज़ूब की खिदमत में पहुंच गए, इस ईमान अफ़रोज़ मुलाकात की रूदाद ख़लीफ़ए आला हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद बुरहानुल हक जबलपुरी रहमतुल्लाह अलैह! कुछ यूं इरशाद फरमाते हैं:

एक रोज़ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने वालिद माजिद से इरशाद फ़रमाया आज असर के बाद एक मजज़ूब बुज़रुग की ज़ियारत के लिए “बांद्रा” चलना है, वापसी में मगरिब “महाइम शरीफ” में अदा कर के एक दावत में जाना है आप असर से पहले आ जाएँ, हम लोग हस्बे इरशाद असर के वक़्त हाज़िर हो गए और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के साथ “बांद्रा” पहुचें मस्जिद के मशरिक के जानिब एक टीन के हाल (छप्पर) के बाहर बड़ा मजमा था,आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को देख कर मजमे ने रास्ता दिया आप के पीछे से हम लोग भी हाल में दाखिल हुए, तख़्त पर एक बुज़रुग अमामा बांधे हुए, पैर तख़्त से लटकाए बैठे हैं, “दलाईलुल खैरात शरीफ” दोनों हाथ से आँखों से बिलकुल मुत्तसिल पढ़ने में मसरूफ हैं, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के सलाम का जवाब देते हुए किताब बंद कर दी, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से मुसाफा करते हुए कुछ फ़रमाया जो में समझ ना सका, हम सब कदम बोसी कर चुके थे, तो हम सब को एक बड़े हॉल में बिठाया गया पूरा हॉल भरा हुआ था, चंद मिंट बाद वहां के मुन्तज़िम खास हाजी कासिम आए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से अर्ज़ किया जो लोग मजज़ूब साहब की ज़ियारत को आते हैं उन के लिए चाय काफी कहवा, तय्यार रहता है, हज़रत मजज़ूब साहब जो फरमाते हैं पिलाया जाता है, आप हज़रात के लिए जब मेने उन से दरयाफ्त किया तो फ़रमाया: चाय, काफी, कहवा, में से जो हुज़ूर फरमाएं वही इस वक़्त पिलाया जाए, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया:

हज़रत ने चाय, काफी, कहवा, का नाम लिया है इस लिए तीनो को मिला कर पिलाया जाए, चुनांचे एक बड़े समवार में तीनो को मिला कर पिलाया गया, उन दिनो बड़े प्याले चलते थे भर भर कर दिए गए, रंग देखा तो कराहत हुई मगर लब से लगाया तो इतना लज़ीज़ पाया के पूरा प्याला खत्म कर दिया, वालिद माजिद (मौलाना अब्दुस्सलाम जबलपुरी) मुझे आहिस्ता से हिदायत फ़रमाई के वापसी के वक्त आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पीछे रहना और बुज़रुग की कदम बोसी कर के अपने लिए दुआ की दरख्वास्त करना, वापसी के वक़्त में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के पीछे रहा जब आप मुसाफा कर के आगे बड़े, में ने उन मजज़ूब साहब के कदम पकड़ कर अर्ज़ किया “मेरे लिए दुआए खेर फरमाएं” बुज़रुग ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर फ़रमाया सिंधी अल्फ़ाज़ थे और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की तरफ इशारा फ़रमाया,

“इस के पीछे चलता जा, तेरे पीछे सब चलेंगें” हम जब वापसी के लिए गाड़ी पर सवार हुए में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी और वालिद माजिद के बीच में बैठा था, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने मुझ से फ़रमाया बुरहान मियां! आप ने मजज़ूब से क्या कहा था? में ने जवाब में जो कहा था वो और उस का जवाब बताया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने मेरी पीठ पर दस्ते मुबारक फेरते हुए फ़रमाया: अल्लाह पाक तुम्हें बुरहानुल हक, बुरहानुस सुन्ना बनाए अमीन! वालिद और चचा ने अमीन कहा।

एक गुम नाम “अल्लाह वाले” व आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु

एक वाक़िआ बनारस में पेश आया जिस के रावी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के ख़ादिमें ख़ास हाजी किफ़ायतुल्लाह साहब हैं बयान फरमाते हैं के एक मर्तबा आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! शहर बनारस तशरीफ़ ले गए, एक दिन दोपहर को दावत थी, में भी हमराह था वापसी में ताँगें वाले से फ़रमाया: इस तरफ मंदिर के सामने से होते हुए चल! मुझे हैरत हुई के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी बनारस कब तशरीफ़ लाए और कैसे यहाँ की गलियों से वाकिफ हुए और इस मंदिर का नाम कब सुना? इसी हैरत में था के तांगा मंदिर के सामने पंहुचा, देखा के एक “साधू” मंदिर से निकला और तांगा की तरफ दौड़ा आप ने तांगा रुकवाया, उसने आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! को अदब से सलाम किया और कान में कुछ बातें हुईं जो मेरी समझ से बाहर थीं, फिर वो “साधू” मंदिर में वापस चला गया और फिर तांगा भी चल पड़ा, तब मेने अर्ज़ की हुज़ूर! ये कौन था? फ़रमाया “अब्दाले वक़्त” अर्ज़ की मंदिर में फ़रमाया: आम खाइये पेड़ ना गिनो”,
“हयाते आला हज़रत” में इतना ज़ियादा है फ़रमाया: उन से वादा था व बस।

पहाड़ पे रहने वाले एक अल्लाह ले “वली”

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! का बयान है के: फ़कीर के एक भाई साकिन मोहल्ला गढ़ी जिन को लोग “इंजिनियर साहब” कहा करते थे और इसी नाम से मश्हूरो मारूफ थे, इन का किसी दूर दराज़ मकाम पर गुज़र हुआ, दौराने क़याम वहां के लोगों से मालूम हुआ यहाँ एक पहाड़ की चोटी पर कोई दुर्वेश रहते हैं मगर वो किसी को अपने पास आने नहीं देते, और अगर कोई पहाड़ पर चढ़ने की जुरअत करता है तो ऊपर से पथ्थर आने लगते हैं, “इंजिनियर साहब” ने ये सुन कर तहिया कर लिया के में जाऊँगा ज़रूर ख़्वाह कुछ भी हो, अल हासिल जब इन्होने पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया तो वाकई पथ्थर लुड़कते हुए आने लगे, मगर इन्होने मुतलक़न परवा ना की और नज़र झुकाए हुए चढ़ते ही चले गए, उनका बयान है के जैसे जैसे कदम बढ़ाता जाता था पथ्थरों की खड़खड़ाहट बढ़ रही थी, ऐसा भी हुआ के उनके बराबर से पथ्थर निकल गया मगर लगा कोई नहीं, बिला आखिर ऊपर पहुंच ही गया, देखा की एक फ़कीर साहब! गर्दन झुकाए बैठे हैं, ये सामने देर तक खामोश खड़े रहे बहुत देर के बाद फ़कीर साहब! ने नज़र उठा कर उनकी तरफ देखा उन्होंने सलाम किया, जिस के जवाब वा अलैकुमुस्सलाम फ़रमाया और साथ ही इरशाद फ़रमाया: “बाबा मेरे पास क्यों आया? तेरा हिस्सा तो “मौलाना अहमद रज़ा साहब” के यहाँ बरैली शरीफ में से हैं वहीँ जा|

रेफरेन्स हवाला:

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत अज़
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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