विलादत शरीफ
आप की पैदाइश 27/ रबीउल आखिर 1272/ हिजरी मुताबिक 6/ जनवरी 1856/ ईसवी को दिल्ली शरीफ में हुई, आप के वालिद मुकर्रम को जो मर्ज़ लाहिक था उस के पेशे नज़र घर वालों को ना उम्मीदी ने घेर लिया था के अब औलाद नहीं होगी, अलबत्ता आप के जद्दे अमजद पूरी तरह मुत्मइन थे और वो अक्सर आप की दादी साहिबा से फरमाते थे के तुम परेशान न हो अल्लाह पाक अपने फ़ज़्लो करम से तुम्हारे फ़रज़न्द को बेटा अता फरमाएगा, 1266/ हिजरी को आप के वालिद माजिद ने अजमेर शरीफ का सफर किया और वहां लड़के के लिए दुआ की अल्लाह पाक ने सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के तुफैल आप की दुआ कबूल फ़रमाई और आप के फ़रज़न्द अबुल खेर पैदा हुए।
इस्म व तालीम
दादा जान ने आप का नाम “मुहीयुद्दीन” रखा और वालिद माजिद ने “अब्दुल्लाह” रखा, और कुन्नियत “अबुल खेर” रखी, कुछ कम नो साल की उमर में आप ने कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ किया और तकरीबन 22/ साल की उमर में उलूमे फुनून से फारिग हुए।
बैअतो खिलाफत
आप इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद सरहिंदी फारूकी रहमतुल्लाह अलैह! की औलाद में से हज़रत शाह उमर के साहबज़ादे और जद्दे अमजद हज़रत अहमद सईद रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदो खलीफा है, आप उलूमे ज़ाहिरी व बातनी में मुकम्मल और साहिबे कशफो करामात थे।
हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का करम
मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की हाज़री के लिए तशरीफ़ ले गए, और आप के चचा शाह मुहम्मद मज़हर रौज़ाए मुबारक पर हाज़िर हुए और वहां मुराकिबा किया, उन से हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जाओ हमारी तरफ से अपने भतीजे (अबुल खेर) को चादर उड़ाओ और इन से कहो के हिंदुस्तान जाएं, चनांचे आप के चचा आप के पास आए, और ख़ुशी में रोते हुए अपनी चादर आप के कन्धों पर डाली और कहा के ये चादर हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से डाल रहा हूँ, आप हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं तुम हिंदुस्तान जाओ।
इज़्ज़त
एक मर्तबा हज़रत अल्लामा अबुल खेर नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह गर्मियों के मौसम में मक्का शरीफ से ताइफ़ तशरीफ़ ले गए, वहां हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा के मज़ार शरीफ पर हाज़िर हुए, जुमा मुबारक का दिन था, मुराकिबा में आप से हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा ने फ़रमाया हमारी मस्जिद में आज जुमा की नमाज़ तुम पढ़ाओगे, आप हैरान हुए के हज़रत तो ये फ़रमारहे हैं और मस्जिद का इमाम मुकर्रर है, थोड़ी देर न गुज़री थी के मुअज़्ज़िन ने आ कर आप से कहा के इमाम साहब की तबियत ख़राब हो गई है, लिहाज़ा आप नमाज़ पढ़ाएं चुनांचे आप ने नमाज़ पढ़ाई।
दिल्ली तशरीफ़ लाना
हज़रत अल्लामा अबुल खेर नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह अहले गफलत और दुनियादारों से मुलाकात नहीं करते थे लेकिन जो कबूलियत अल्लाह पाक ने आप को अता फ़रमाई थी और जिस की खुशखबरी आप के दादा मुहतरम ने मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में दी थी इस का ज़हूर भला कैसे ना हो, आप ख़ामोशी के साथ एक खादिम और बीवी के साथ हिजाज़े मुकद्द्स से दिल्ली तशरीफ़ लाए, अपने जद्दे अमजद की खानकाह जाइज़ सूरत से हासिल की और दरवाज़े बंद कर के अल्लाह पाक की याद में मसरूफ हो गए, अब अल्लाह पाक की जानिब से कबूलियत क़ा ज़हूर हुआ के कोई बर्मा, से कोई बंगगाल, से कोई मुल्के शाम से कोई हिजाज़े मुकद्द्स से कोई लिब्नान से कोई अफगानिस्तान से के दूर दराज़ पहाड़ी इलाकों से कोई अफ्रीका में आप का ज़िक्रे खेर कर के अपने दिल को तस्कीन देता था।
महफिले मीलाद शरीफ
मन्क़ूल है के 12/ रबीउल अव्वल शरीफ को आप की खानकाह में मीलाद शरीफ होता था, मजलिस आरास्ता पैरास्ता की जाती थी, शामियाने सेहन में लगते थे और बिजली की रौशनी से महफ़िल मुनव्वर की जाती थी, इशा की नमाज़ के बाद आप खुद बयान करते थे, बड़ा मजमा होता था, सारी खानकाह सामईन से भर जाती थी, सुबह सादिक के वक़्त जो विलादत का वक़्त है सलाम पढ़ते थे, वफ़ात से क़ब्ल जो महफ़िल हुई उस में दौराने सलाम मुझ से फ़रमाया देखो! कैसे अनवार नाज़िल हो रहे हैं? अच्छी तरह देख लो उस के बाद ऐसे अनवार देखे जो कभी नसीब न हुए।
वफ़ात
29/ जमादीयुल आखिर 1341/ हिजरी मुताबिक 16/ फ़रवरी 1932/ ईसवी शबे जुमा दो बजे आप ने वफ़ात पाई।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में चितली कबर से आगे उलटे हाथ की तरफ खानकाह शाह अबुल खेर के नाम से मशहूर है, तुर्क मान गेट पर मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
दिल्ली के बाईस ख्वाजा
मक़ामाते मज़हरी