हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

आप हज़रत ख्वाजा अबू बक्र मुसल्ला दार रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्दे अर्जमन्द यानि सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के सगे भांजे के बेटे हैं, आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मलफ़ूज़ात को जमा कर के इस का नाम “मजमउल फवाइद” रखा था,

सीरतो ख़ासाइल

हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की बचपन से लेकर आखिर तक इन की किसी नमाज़ में तक्बीरे ऊला नहीं छूटी, मुख्तलिफ मस्जिदों में घुमते फिरते जब तक तक्बीरे ऊला न मिलती तक्बीरे तहरीमा के लिए हाथ न बांधते,

हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जवानी की हालत में आप को इल्म हासिल करने का शोक पैदा हुआ, जो कुछ आप सीखे इसपर अमल करते थे, हर जुमे की रात में कुरआन शरीफ ख़त्म किया करते थे, हज़रत ख्वाजा अब्दुल अज़ीज़ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के जमात खाना में आप ने एक अरसा तक इमामत फ़रमाई, आने जाने वालों के साथ हुसने अख़लाक़ से पेश आते थे, कोई माकूल आमदनी नहीं थी और न ही कहीं जाते थे, लेकिन अपने ख़ानदान और मुतअल्लिक़ीन के साथ निहायत सब्र से खुश ज़िन्दगी बसर करते थे,

आप की शफकत

एक मर्तबा सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के कैलूला के वक़्त आप हाज़िरे खिदमत हुए, खादिम ने हज़रत को इन के आने की खबर दी और अर्ज़ किया ये बुज़रुग हर जुमे की रात में कुरआन शरीफ ख़त्म करते हैं, हज़रत ने पूछा के वो बुलंद आवाज़ से पढ़ते हैं या आहिस्ता पढ़ते हैं, खादिम ने अर्ज़ किया आहिस्ता पढ़ते हैं, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को इन के पढ़ने का तरीका पसंद आया और आप ने इन की तारीफ फ़रमाई,

दूसरी मर्तबा आप ख्वाजा मुबश्शिर के साहबज़ादे नूरुद्दीन को साथ लेकर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर हुए, इन्हो ने हज़रत से अर्ज़ किया के मखदूम! ये आप का मुरीद है? हज़रत ने फ़रमाया हाँ! ये मेरा मुरीद है और मुझे इस की फ़रज़न्दी पर फख्र है, अल्लाह पाक इस की उमर दराज़ फरमाए और इससे मुसलमानो को फायदा पहुंचाए।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह के अहाते में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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