हज़रत ख्वाजा फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

नसब नामा

हज़रत फरीद मुहम्मद चाक पर्रां बिन, हज़रत अज़ीज़ुद्दीन बिन, हज़रत सूफी ख्वाजा हमीदुद्दीन नागोरी बिन, हज़रत अहमद तारिक बिन, हज़रत मुहम्मद बिन, हज़रत इब्राहीम बिन, हज़रत मुहम्मद बिन, हज़रत सईद बुखारी बिन, हज़रत महमूद बिन, हज़रत अब्दुल्लाह बिन, हज़रत उमर बिन, हज़रत नसीर बिन, हज़रत इब्राहीम बिन, हज़रत अब्दुर रहमान बिन, हज़रत युसूफ बिन, हज़रत अली हारिस बिन, हज़रत हुसैन बिन, हज़रत ज़ैद बिन, हज़रत सईद बिन, हज़रत उमर फ़ारूके आज़म रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

विलादत शरीफ

हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश 645/ हिजरी में हुई, आप ने माहे सफारुल मुज़फ्फर 729/ हिजरी में फ़रमाया था, के हमने सात साल की उम्र में मिम्बर पर कदम रखा और सत्तर साल की उम्र तक वाइज़ो नसीहत फरमाते रहे, आप ने अपने वालिद माजिद और दादा मुकर्रम के ज़ेरे सायाए तरबियत व तालीम हासिल की, आप के दादा मुहतरम का इस्मे गिरामी शैख़े तरीकत हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन चिश्ती नागोरी रहमतुल्लाह अलैह है, को ये बात नूरे विलायत से मालूम थी के बेटे अज़ीज़ुद्दीन की औलाद में फरीद ही होनहार हैं, और इन्ही को हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन चिश्ती नागोरी रहमतुल्लाह अलैह के बाद अपने दादा का जानशीन बनना है, ऐसी हालत में जितनी तवज्जुह इनकी तालीमों तरबियत में सर्फ़ हुई, ये उसी तरबियत का फैज़ था, के सात साल की उम्र शरीफ से आखिर तक वाइज़ो नसीहत फरमाते रहे।

खिलाफ़तो इजाज़त

हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप सुल्तानुत तारीक़ीन शैख़े तरीकत हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन चिश्ती नागोरी रहमतुल्लाह अलैह के पोते और इन्ही के मुरीदो खलीफा और जानशीन थे, आप अपने दादा जान ही के ज़ेरे सायाए आतिफ़त तरबियते परवरिश पाई थी, हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को चाक पररां का लक़ब की वजह तस्मिया ये है के, आप हालते सुक्र में चक्की का भारी पथ्थर अपनी गर्दन में डाल कर पैदल नागौर से दिल्ली तशरीफ़ लाए थे, इस लिए आप को चाक पररां कहते हैं, आप के वालिद का नाम अज़ीज़ुल औलिया शैख़ अज़ीज़ुद्दीन है, आप इन के मंझले साहबज़ादे हैं और वो सुल्तानुत तारीक़ीन शैख़े तरीकत हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन चिश्ती नागोरी रहमतुल्लाह अलैह के सब से बड़े फ़रज़न्द थे,

इल्मी खिदमात

वाइज़ो नसीहत के अलावा आप दरसी किताबों के मुताला व तसही और मुकाबले का अच्छा शोक रखते थे, जैसे सिहा सित्ता, कश्शाफ़, शरह मुन्तख़ब, तसर्रुफ़, शरह अमानत, मदारिकुल उलूम, मनाज़िलुस साइरीन, आदाबुल मुरीदीन, और मशारिकुल अनवर, वगेरा आप ने अपने दादा दादा मुहतरम हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन चिश्ती नागोरी रहमतुल्लाह अलैह की ज़बान मुबारक से निकले नूरानी अल्फ़ाज़ को जमा फ़रमाया और उस का नाम सुरुरुस सुदूर! रखा।

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मुहब्बत :
हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! 681/ हिजरी को दिल्ली तशरीफ़ लाए थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह दो बार आप से मुलाकात करने के लिए इन के हुजरे में तशरीफ़ ले गए, उस हुजरे को देख कर हैरत का इज़हार फ़रमाया के आप इस तंग व तरीक हुजरे में कैसे रहते हैं? फिर वापस जा कर अपने खादिम को भेजा के वो शैख़ का सामान ले आएं, और उन से कहें के मेरे हुजरे के ऊपर इतनी जगह है के आप वहां आराम से ठहर सकते हैं, शहर में जहाँ, कहीं सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह दावत वगेरा में तशरीफ़ ले जाते तो साहिबे खाना को कहला भेजते के मेरे साथ फरीद नागोरी भी आएंगे,
हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने दादा हज़रत ख्वाजा सूफी हमीदुद्दीन चिश्ती नागोरी रहमतुल्लाह अलैह की वफ़ात के चार साल बाद दिल्ली से एक खत अपने छोटे भाई शैख़ नजीबुद्दीन इब्राहीम को तहरीर किया था, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह शैख़े वक़्त हैं तुम मुझ से जब भी खत लिखो तो अपनी तरफ से और अपने अज़ीज़ो अक़ारिब व मुरीदों की तरफ से उनकी खिदमत में सलाम ज़रूर लिखना, उस को मत भूलना दर्द वाला मर्द उनके अलावा दिल्ली में कोई दूसरा नहीं है।

करामत

हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप के पोते हज़रत शैख़ फ़तेह उल्लाह एक आँख वाले थे, एक दिन बच्चों के साथ खेल रहे थे, बच्चों ने ताना दिया के आप को एक आँख के हैं, आप को लड़कीं कौन देगा? आप अपने दादा हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की बारगाह में हाज़िर हुए और बच्चों के ताने का ज़िक्र किया, आप ने फ़रमाया बेटा! आप को सुल्तान मुहम्मद तुगलक लड़की देगा, चुनांचे कुछ दिनों के बाद सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने अपनी बेटी बीबी रास्ती बेगम के निकाह के बारे में आप को लिखा के रूए ज़मीन के बादशाहों में से किसी की ताकत नहीं के वो हमारे दरबार की लोंडी का भी नाम ले सके, हैं लेकिन में अपनी बेटी की शादी का पैगाम आप के साहबज़ादे को पेश करता हूँ, करम फरमा कर कबूल फरमाएं, आप ने इस के जवाब में फ़रमाया और एक शेर लिख कर भेजा जिस का मफ़हूम ये है के ऐ फरीद! तू इंसाफ कर बादशाह के साथ तुझे क्या निस्बत?

तू गरीब वो मालदार, वो बादशाह तू फ़कीर, फिर बादशाह ने जवाब में लिखा गुलामो के गुलाम होने की आरज़ू रखता हूँ, मेरी अर्ज़ कबूल फरमाए, आप ने जवाब में लिखा, हम बेसरो सामान के सामान हैं, अगर आप हमारे हरीफ़ हैं तो बिस्मिल्लाह, सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने अपनी शान के मुताबिक शादी का इंतिज़ाम किया और हज़रत की बारगाह में कहला भेजा के बरात में आदमी ज़ियादा लाएं, लेकिन आप दो तीन आदमी ले कर बादशाह के यहाँ पहुंच गए, बादशाह को कम आदमी देख कर एहसास हुआ, आप ने बादशाह से फ़रमाया बारात आती है, इस के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़कर अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ की, गैब से लोगों ने आ कर वो तमाम खाना खा लिया जो बादशाह ने तय्यार कराया था,

विसाल

हज़रत ख्वाजा शैख़ फरीदुद्दीन चाक पररां चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने जमादीयुल ऊला 734/ हिजरी में हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ गल्फ क्लब, लाडो सराए, इन्क़िलेब प्रेस रोड महरोली शरीफ दिल्ली 17/ में सीधे हाथ को एक चबूतरे ही मरजए खलाइक है ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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