नामो नसब
आप का नामे नामी इसमें गिरामी: “शाह मुहम्मद मज़हरूल्लाह देहलवी” कुन्नियत अबू मसऊद! लक़ब मुफ्तिए आज़म, है, सिलसिलए नसब इस तरह है: मुफ्तिए आज़म हज़रत शाह मुहम्मद मज़हरूल्लाह देहलवी बिन, मौलाना मुहम्मद सईद बिन, मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद मसऊद अलैहिमुर रहमा, आप का सिलसिलए नसब ख़लीफ़ए अव्वल हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु, तक मुनतहि (इख़्तिताम, पहुंच) होता है, हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का तअल्लुक़ मुगलिया दौरे हुकूमत में उहदाए वज़ारत पर फ़ाइज़ जनाब सालार बख्श बुज़रुग से है, ये खानदान इल्मो फ़ज़्ल में आला मकाम रखता था, लेकिन इस खानदान को जो अज़मतो फ़ज़ीलत हज़रत शाह मुफ़्ती मुहम्मद मसऊद रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते गिरामी से हासिल हुई, वो तारीख़ का रोशन बाब है, हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के दादा हज़रत शाह मुफ़्ती मुहम्मद मसऊद रहमतुल्लाह अलैह अपने वक़्त के जय्यद आलिमे दीन, मुफ़्ती, क़ुत्बुल वक़्त, और गौसे ज़मा थे,
तालीमों तरबियत
हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! चार साल की उमर में यतीम हो गए, तो आप के दादा जान हज़रत शाह मुफ़्ती मुहम्मद मसऊद रहमतुल्लाह अलैह ने किफ़ालत फ़रमाई दो साल बाद वो भी इन्तिकाल फरमा गए, तो अम्मे मुहतरम हज़रत मौलाना अब्दुल मजीद ने अपनी किफ़ालत में ले लिया, इस तरह इब्तिदा ही से मुफ्तिए आज़म रहमतुल्लाह अलैह की हयाते तय्यबा में सीरते नबवी सलल्लाहु अलैही वसल्लम की झलक नज़र आने लगी,
आप ने कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ करने के बाद, मुआसिरिन उल्माए किराम से इल्मे कुरआन, इल्मे हदीस, इल्मे तफ़्सीर, इल्मे फ़िक़्ह, उलूमे अकलिया व नकलिया हासिल किया, आप का सिलसिलए हदीस सिराजुल हिन्द हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मिलता है, आप ने ज़ाती मुताले से वो कमाल हासिल किया, के आप को इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे फ़राइज़ इल्मुल मवाकीत में महारते ताम्मा हासिल थी, दीगर उलूम मसलन तजवीदो किरात, इल्मे तफ़्सीरो अक़ाइद, तसव्वुफ़, मंतिक व फलसफा, सरफो नहो, अदबो शायरी, और अमलियात वज़ाइफ़ में भी बड़ी दस्तगाह हासिल थी, हर मक्ताबए फ़िक्र और हर मसलक के उल्माए किराम आप के वुसअते मुताला और तबाहुर इल्मी के दिल से मोअतरिफ थे।
खिलाफ़तो इजाज़त
हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! आप हज़रत सय्यद सादिक अली शाह रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते हक परस्त पर सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया मुजद्दिदीय में बैअत हुए, और आप के जद्दे अमजद के ख़लीफ़ए मजाज़ सुफिए बासफा हज़रत शाह मुहम्मद रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने आप को तमाम सिलसिल की इजाज़तो खिलाफत अता फ़रमाई, उलूमे ज़ाहिरी व बातनी की तकमील के बाद हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ने सिलसिलए बैअतो इरशाद का आगाज़ किया, बेशुमार लोग आप के दस्ते हक परस्त पर मुरीद हुए, और आप के खुलफ़ा की भी काफी तादाद है।
आदातो अख़लाक़
इमामुल उलमा वल फुज़्ला, सय्यदुल औलिया, सनादुल असफिया, मरजाउल खलाइक, साहिबे तकवाओ फ़ज़ीलत, फ़ाज़िले अकमल, आलिमे मुताबहहिर जामे उलूमे अकलिया व नकलिया, साहिबे तसानीफ़, मुफ़्तिये आज़म दिल्ली, हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह!,हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! हिन्दो पाक के सरबरा आवुरदाह उल्माए किराम सुफियाए उज़्ज़ाम में से थे, आप दारुल सल्तनत दिल्ली के मुमताज़ आलिमो फकीह हज़रत शाह मुफ़्ती मुहम्मद मसऊद रहमतुल्लाह अलैह के नामवर पोते और हज़रत मौलाना मुहम्मद सईद के साहबज़ादे थे, आप के दस्ते मुबरक पर बेशुमार गैर मुस्लिम मुशर्रफ बा इस्लाम हुए, हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! मस्जिद फतेहपुरी के शाही इमाम थे, ख़िताबतो इमामत, का ये सिलसिला आप के जद्दे अमजद हज़रत शाह मुहम्मद मसऊद रहमतुल्लाह अलैह से आप तक पंहुचा, तकरीबन 70/ साल आप इस अज़ीम मनसब पर फ़ाइज़ रहे आप की ज़ाते गिरामी से मस्जिद फतेहपुरी की अज़मतो शौकत दो बाला हो गई, और उलूमे ज़ाहिर व बातनि का एक ऐसा मरकज़ बन गई, जो अपनी नज़ीर आप थी,
आप के खानदान में शाही मस्जिद की इमामत व खिताबत का ये शाहाने मुगलिया अहिद से चला आ रहा है, मस्जिद फतेहपुरी अहलियाने हिन्दो पाक का जामे मरकज़े निगाह बना था, दूर दराज़ इलाके से फतवे आते थे अपने और बेगाने सब तअम्मुक नज़र, तदब्बुरो तहम्मुल और तफ़क्कुह फिद्दीन के मोतरिफ थे, आप ने सारी उमर इत्तिबाए सुन्नत का कदम कदम पर एहतिमाम किया, आप की ज़िन्दगी इश्के मुस्तफा की, आइना दार थी, आप ने हमेशा अज़ीमत पर अमल किया, अज़ीमत पसंदी आप की सीरते मुबारिक की इम्तियाज़ी सिफ़त थी।
1947/ ईसवी में फसादात के दौरान आप ने जिस अज़्मों इस्तक़लाल का इज़हार फ़रमाया वो तारीखे अज़ीमत में सुनहरे हुरूफ़ से लिखे जाने के काबिल है, 1958/ ईसवी तक मस्जिद फतेहपुरी में गैर मुस्लिम दुश्मनो ने तकरीबन 6/ 7/ बम फेंके लेकिन किसी मरहले पर भी आप के पाए सिबात में लग़्ज़िश नहीं आई, सब से मुहकिल और दुशवार सितम्बर 1947/ का वो दिन था जब चारों तरफ से मस्जिद शरीफ को दुश्मनाने दीन के नरगे में थी, हर शख्स सहमा हुआ मोत का मुन्तज़िर था, लेकिन इस इज़्तिराबो बेचैनी के आलम में, जब इस मर्दे कामिल को हुजरे शरीफ में देखा गया तो सुकून कलबी के साथ अपने इल्मी माशगिल में मसरूफ पाया, उसी क़यामत ख़ेज़ घड़ी में महफूज़ मक़ाम पर मुन्तक़िल करने के लिए फौजी टिरक मस्जिद शरीफ के सदर दरवाज़े पर पहुंचे, जब आप के अकीदत मंदो ने आप से मुन्तक़िल होने के लिए अर्ज़ किया तो आप ने फ़रमाया, आप हज़रात को इजाज़त है जहाँ चाहें जा सकते हैं, फ़कीर को यहीं रहने दें, कल क़यामत के दिन अगर मौला तआला ने ये फ़रमाया के हमने अपना घर तेरे सुपुर्द किया था तो उसको किस के रहमो करम पर छोड़ कर चला गया तो फ़कीर क्या जवाब देगा।
दीनी सरगर्मियां
हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ने सारी ज़िन्दगी तबलीग़े दीन में गुज़ारी थी, आप दो बार पाकिस्तान भी तशरीफ़ ले गए, पहली बार अक्टूबर 1961/ ईसवी में, दूसरी बार जुलाई 1964/ ईसवी में, हर बार आप का पुरज़ोर शानदार इस्तकबाल किया गया, पाकिस्तान में आप के कसीर तादाद में मुरीदीन मोतक़िदीन हैं, कयामे पाकिस्तान के दौरान आप कराची, हैदराबाद, लाहौर, मीरपुर खास, बहावलपुर, मुल्तान, खानिवाल, साहीवाल, शरकपुर, रावलपिंडी,वगेरा मुख्तलिफ मक़ामात तब्लीगी दौरे पर तशरीफ़ ले गए,
ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन
1945/ ईसवी में हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! हज्जे बैतुल्लाह शरीफ के लिए तशरीफ़ ले गए, इश्के नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप को पहले मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहू शरफऊं व तअज़ीमा ले गया, दयारे हबीब में एक माह क़याम फ़रमाया फिर मक्का मुकर्रमा हाज़िर हुए, “शाह सऊद” बादशाहे हिजाज़! की तरफ से शाही दावत पर मदऊ किया गया, मगर आप ने फ़रमाया जो शहंशाहे हकीकी के दरबार में आया है उसको किसी और दरबार में हाज़री की ज़रूरत नहीं,
आप की तसानीफ़
हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! की बहुत सी तसानीफ़ हैं, जिन में सरे फहरिस्त तर्जुमाए कुरआन शरीफ है, जो आप ने हज़रत शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के फ़ारसी तर्जुमे से उर्दू में मुन्तक़िल फ़रमाया, तक़सीमे हिन्द से क़ब्ल ये तर्जुमा मआ हवाशी दिल्ली से शाये हुआ था, अब ज़ियाउल कुरआन पुब्लिकेशंज़ लाहौर, पाकिस्तान, इसको शाये कर रहा है, तर्जुमाए कुरआन के बाद वो फतावा! हैं जो तक़रीबन सत्तार 70/ साल तक आप तहरीर फरमाते रहे, हज़रत अल्लामा डॉक्टर मुहम्मद मसऊद रहमतुल्लाह अलैह ने इनको “फतावा मज़हरिया” के नाम से शाए किया है, इनके अलावा आप की तकरीबन बारह क़ुतुब मुख्तलिफ मौज़ूआत पर हैं, जो बहुत ही लाजवाब हैं, इदारा मसऊदिया! ने शाए किया है, आप का सब से बड़ा एहसान ये है के आप ने मिल्लते इस्लामिया मखलूके खुदा को हज़रत मसऊदे मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह! जैसा अज़ीम मुहक्किक, और मर्दे कामिल, अता फ़रमाया, जिन्होंने ज़ुल्मतों ज़लालत गुमराही की तारीकियों को अपने नूर की जिया पाशियों से दूर कर दिया, और आसमान इल्मों तहक़ीक़ में नय्यरे आज़म बनकर चमके, और जो आप के दमन से वाबस्ता हुए वो भी चमकने लगे,
विसाल
हज़रत ख्वाजा मुफ़्ती मज़हरूल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल 14/ शअबानुल मुअज़्ज़म 1386/ हिजरी, मुताबिक 28/ नवम्बर 1966/ ईसवी बरोज़ पीर शाम पांच बज कर, बीस मिनट पर दिल्ली में हुआ।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार मुक़द्द्स मस्जिद फतेहपुरी में दिल्ली के सेहन में मशरिक की जानिब में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
औलियाए दिल्ली की दरगाहें