हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

इस्मे गिरामी

आप का इस्मे गिरामी “सईद” और तखुल्लास “सरमद” है, यानी आप को सईदे सरमद! कहा गया है, और आप सूफी सरमद शहीद! के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं,

बैअतो खिलाफत

फानी फिल्लाह, फनाफिर रसूल, फ़रीदे दहर वहीदे अस्र, साहिबे मजाज़ीब, आशिके खुदा, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली के तमाम सूफ़ियाए किराम बुज़ुरगाने दीन में एक अजीब खासियत इस्तगराक रखने वाले सूफी बुज़रुग थे, आप का वतन मुल्के ईरान था, और आप “यहूदी या ईसाई थे” अपने बातिल मज़हब से तौबा कर के इस्लाम कबूल किया और साहिबे ईमान बने और मुसलमानो की फहरिस्त में शामिल हो गए, इब्तिदा शुरू में हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! तिजारत किया करते थे, ईरान का माल हिंदुस्तान और हिंदुस्तान का माल ईरान ले जाया करते थे, और पाकिस्तान का शहर ठठ्ठा! से आप का कदीमी तिजारती तअल्लुक़ था, एक मर्तबा ऐसा वाक़िआ पेश आया के पाकिस्तान का शहर ठठ्ठा! के एक नौजवान से आप को मुहब्बत हो गई और ये मुहब्बत इस हद तक पहुंच गई के दोनों अपनी अपनी तिजारत को छोड़ कर जोगियों सूफ़ियाए किराम की तरह घूमने लगे, इस वाकिए से हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का मालो दौलत तिजारत सब कुछ ख़त्म हो गया, और समाजी रिश्ते टूट गए,

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! उस नौजवान के सात हक़ की तलाश में गली गली मतवालों दीवानो की तरह घूमने लगे, कुदरत अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दस्तगीरी फ़रमाई इश्के मिजाज़ी इश्के हकीकी में तब्दील हो गया, और अल्लाह पाक की मुहब्बत का ग़लबा हो गया, उस लड़के ने भी मज़हबे इस्लाम कबूल कर के सारे मालो दौलत को लात मारदी और सूफ़ियाए किराम की सुहबत में शामिल हो कर सूफी बन गया, और हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप के पीरो मुर्शिद “हज़रत शैख़ काज़िम शत्तारी रहमतुल्लाह अलैह! उर्फ़ हरे भरे शाह! हैं, आप ने हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को मुरीद किया और इजाज़तो खिलाफत अता फ़रमाई, और आप के पीरो मुर्शिद का नाम हज़रत शाह मुख़लल्ली रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप सिलसिलए चिश्तिया निज़ामिया के बुज़रुग हैं,

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बादशाह शाजहाँ के दौरे हुकूमत में आप दिल्ली तशरीफ़ लाए, दिल्ली में कुछ ही दिन रहने के बाद आप की मुलाकात बादशाह शाजहाँ के बड़े साहब ज़ादे दारा शिकोह से हुई, और उससे गहरी दोस्ती हो गई, वजह ये है के दारा शिकोह फकीरों और सूफ़ियाए किराम की बहुत इज़्ज़त किया करता था, वो इनके नज़रयात से बहुत मुतअस्सिर हुआ, लेकिन ये गहरी दोस्ती ज़ियादा दिनों तक नहीं चली, बादशाह शाजहाँ की बिमारी के सबब तख़्त का जानशीन दारा शिकोह बना, लेकिन हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह और शाहजहां के दरबारियों को ये बात पसंद नहीं आई, क्यों के उल्माए किराम ने ये देखा के दारा शिकोह ने वेद, और माहा भारत, का फ़ारसी में तर्जुमा किया था, और भी इसी तरह के बद अकीदगी शिरकी बाते पाई जाती,

और “सफ़ीनतुल औलिया” जैसी सूफ़ियाए किराम की तारीख़ भी तसनीफ़ की, वैसे दारा शिकोह! बुज़ुरगाने दीन से भी काफी लगाओ मुहब्बत रखता था, उल्माए किराम का हल्का दारा शिकोह के इस काम से गभरा उठा और ये सोचने लगा के दारा शिकोह मुर्तद हो चुका है, लिहाज़ा इस का तख़्त पर बैठना अच्छा नहीं है, यानी ये तख़्त जानाशिनी हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह को ही ज़ेब देती है, नतीजतन हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह और दीगर भाइयों ने मिल कर दारा शिकोह से जंग की और दारा शिकोह से शिकस्त खा कर कैद में आ गया, हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने उल्माए किराम की एक मीटिंग बुलाई और कहा के दारा शिकोह! के साथ किस तरह का सुलूक करना चाहिए, मिटिंग में उल्माए किराम ने दारा शिकोह! पर कुफ्र का फतवा लगाया और उसे क़त्ल करने की राए ज़ाहिर की, नतीजनत दारा शिकोह! क़त्ल कर दिया गया।

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! दारा शिकोह! के क़त्ल के बाद अपने दोस्त के बिछड़ने के गम को बर्दाश्त ना कर सके और इस्तग़राक महबूबियत के आलम में बरहना (नग्गे) रहने लगे, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बरहना (नग्गे) बैठे रहते थे, इसकी इत्तिला जब हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह को मिली के हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बरहना बैठे रहते हैं सब नमाज़ियों के रास्ते मे, जब बादशाह हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ पढ़ने के लिए जामा मस्जिद पहुंचे तो देखा के हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बरहना (नग्गे) बैठे हुए हैं, हज़रत सूफी सरमद शहीद रहमतुल्लाह अलैह को इस हालत में देख कर हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने कहा के आप इस तरह बैठ कर नमाज़ियों का वुज़ू क्यों ख़राब करते हो, कम अज़ कम कंबल चादर वगेरा से ही बदन छुपा लिया करो हज़रत सूफी सरमद शहीद रहमतुल्लाह अलैह ने कहा, तुम्ही उठा कर डाल दो, जब हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने कंबल उठाया तो देखा के उस कंबल के नीचे इनके भाइयों के कटे सर छुपे हैं, उन्होंने कंबल फ़ौरन हाथ से छोड़ दिया, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने कहा, कंबल क्यों छोड़ दिया,? अपने जिस्म को ढ़ाको, हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह मस्जिद में दाखिल हो गए,

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से दरबारी उलमा काफी हसद करने लगे, और हर मुमकिन कोशिश करते के हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह को इन के खिलाफ भड़का कर इन्हें ख़त्म करवा दिया जाए, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हमेशा आधा कलमा “लाइलाहा” पढ़ा करते थे, इस बात की खबर हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह को पहुंची के हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पूरा कलमा नहीं पढ़ते हैं, और बगैर पूरा कलमा शरीफ पढ़े कोई मुसलमान कैसे हो सकता है, ये बात सुन कर हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को दरबार में बुलवाने का हुक्म दिया, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! दरबार में हाज़िर हुए, उल्माए किराम की महफ़िल जमा हुई,

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से कलमा शरीफ पढ़ने! को कहा गया, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी आदत के मुताबिक सिर्फ लाइलाहा! पढ़ा, उल्माए किराम ने कहा पूरा कलमा पढ़ो, इन्होने कहा अभी में कलमे के पहले हिस्से, यानी नफ़ी वाले, हिस्से में ही डूबा हुआ हूँ, अगर इससे आगे कहूँगा तो अभी झूट होगा, और जो अमल में ना हो उसे ज़बान पे लाना दुरुस्त नहीं, उल्माए किराम का हल्का चीख उठा ये तो कुफ्र है, अगर तौबा ना की तो क़त्ल के हकदार हैं, उलमा के एक गिरोह ने इत्तिफाके राय से इनपर कुफ्र का फतवा लगा कर क़त्ल का हुक्म जारी कर दिया गया, 1070/ हिजरी मुताबिक 1659/ ईसवी में फतवे के मुताबिक हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को शहीद कर दिया, सर को तन से जुदा कर दिया गया, और आप शहीद हो गए

कटे हुए सर से आवाज़ आई

खलीफा इब्राहीम लिखते हैं के हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी ज़िन्दगी में कलमए शहादत लाइलाहा! से आगे नहीं पढ़ा, लेकिन जब शहादत पाई तो लोगों ने सुना के हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के शहीद कटे हुए सर ने तीन मर्तबा “लाइलाहा इलल्लाह” कहा, इनकी शहादत के बारे में कई जगह ज़िक्र है, के शहादत के बाद हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इतने गुस्से में आ गए के इनके कटे सर, ने जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन इनके पीरो मुर्शिद हज़रत हरे भरे शाह रहमतुल्लाह अलैह! ने ठहर ने का हुक्म दिया, और इनका सर वहीं रुक गया, और ठंडा पड़ गया, हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को वहीं जामा की सीढ़ियों के पास ही में दफ़न किया गया, आप की रुबाइयात निहायत ही आला मेआर के इश्को तसव्वुफ़ में डूबी हुई होती थीं जो तबअ हो चुकी हैं।

खुलफाए किराम

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के खुलफाए किराम में सिर्फ आप के एक ही खलीफा का नाम मिलता हैं जिनका इस्मे गिरामी हज़रत शाह मुहम्मद उर्फ़ हींगा रहमतुल्लाह अलैह हैं।

वफ़ात

हज़रत ख्वाजा सूफी सरमद शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने बादशाह हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के दौरे हुकूमत में 1070/ या 1072, हिजरी मुताबिक 1659/ ईसवी में शहादत पाई।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुक़द्द्स जामा मस्जिद दिल्ली 6/ के पूरब की जानिब दरवाज़ा यानि जामा मस्जिद के गेट “बाबे शाह जहाँ” के सामने ही मरजए खलाइक है, आप का मज़ार मुबारक हज़रत सूफी सरमद शहीद रहमतुल्लाह अलैह के नाम से मशहूर है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
औलियाए दिल्ली की दरगाहें
वाक़िआत दारुल हुकूमत दिल्ली

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