तारीखे विलादत
अफ़सोस के आप की तारीखे पैदाइश किसी किताब से ना मिल सकी, तकरीबन दसवीं सदी हिजरी के आखिर में हुई होगी, ज़िला बदायूनी शरीफ यूपी हिन्द में।
नाम व नसब
आप का इस्मे गिरामी हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! है, लक़ब आरिफ़े कामिल, आरिफ़े वासिल, आप खानदाने सादाते किराम के दरख़शिन्दा चिराग थे।
तहसीले इल्म
आरिफ़े कामिल हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी बदायूनी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को तमाम उलूमे ज़ाहिरी में कमाल हसूल था इल्मे सर्फ़ व नहो, मंतिक व मुआनी, तफ़्सीरे कुरआन, इल्मे हदीस, फ़िक़्ह, तसव्वुफ़ में महारते ताम्मा हासिल थी, बिल्खुसूस इल्मे फ़िक़्ह की जुज़ियात दलाइल के साथ याद थीं, आप का ज़ाहिर व बातिन एक जैसा नूरुन अला नूर था।
खिलाफ़तो इजाज़त
आलिमे बा अमल, साहिबे शरीअतो तरीकत, आरिफ़े कामिल, फ़रीदे यगाना, शैख़े कामिल पीरे तरीकत, ज़ुब्दतुल आरफीन, सय्यदुस सादात हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ज़ाहिरो बातिन और फकीहे कामिल थे, और आप ने कसबे राहे सुलूक की मंज़िलें, और इरादत बैअत हज़रत ख्वाजा शैख़ सैफुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! से थी, और कई साल हज़रत हाफ़िज़ ख्वाजा शैख़ मुहसिन नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में भी रहकर मुस्तफ़िज़ो मुस्तफ़ीद होते रहे, और आप मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की औलाद से थे, और हालाते आलिया और मक़ामाते अर्जमन्द से मुशर्रफ हुए, आप को इस्तगरक बहुत था, पंदिरह 15/ साल तक आप को वक़्त नमाज़ के सिवा और किसी वक़्त आप को इफाका ना होता था, नमाज़ के बाद फिर मग़्लूबुल हाल हो जाते आखिर में इफ़ाक़ा हो गया था, कसरते मुराकिबा से आप की पुश्त मुबारक झुक गई थी।
सिलसिलए शीयूख
हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी बदायूनी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप मुरीदो खलीफा हैं, हज़रत शैख़ सैफुद्दीन नक्शबंदी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से, आप मुरीदो खलीफा हैं, उरवतुल वुसका हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद मासूम नक्शबंदी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से, और आप मुरीदो खलीफा हैं, इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से,
और आप को बैअतो खिलाफत हज़रत शैख़ हाफिज़ मुहम्मद मुहसिन रहमतुल्लाह अलैह से भी हासिल थीं, और आप मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की औलाद से थे।
अख़लाक़ो आदात
जामे उलूमे ज़ाहिरी व बातनि, कामिल उलूमो मआरिफ़ असरारे रब्बानी, हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी बदायूनी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया मुजद्दिया के शैख़े कामिल थे, आप रहमतुल्लाह अलैह! ने सिलसिलए आलिया के तरवीजो फरोग में अहम किरदार अदा किया है, आप ही की तवज्जुह निगाहें करम से हज़रत ख्वाजा मिर्ज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! जैसी अज़ीम हस्ती तय्यार हुई, और इनकी सुहबत से हज़रत अल्लामा शैख़ क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपती नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! निखार कर आए, और आप ने “तफ़्सीरे मज़हरी” जैसी अज़ीम तफ़्सीर उम्मत को अता फ़रमाई।
आप का एहतियाते तकवाओ तदय्युन
हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप कमाल तक्वा और इत्तिबाए सुन्नत में मुमताज़ थे, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदाब व आदात का निहायत इल्तिज़ाम व एहतिमाम करते, क़ुतुब सेर व अख़लाके नबवी पेशे नज़र रहती थीं, उनके मुवाफिक अमल किया करते थे, एक दफा बैतुलखुला में पहले दायां पाऊँ रख दिया, तीन दिन तक अहवाल बातनी में कब्ज़ रही, बहुत तज़र्रो (खुशामद) के बाद बस्त पैदा हुई, आप लुक्मा में निहायत एहतियात करते थे, अपने हाथ से कई दिन का पका हुआ खाना पका लिया करते थे, और भूक की शिद्दत के वक़्त उसी में से कुछ खलिया करते, फरमाते थे के तीन साल से तबियत का तअल्लुक़ कैफियत ग़िज़ा से नहीं रहा, ज़रूरत के वक़्त जो मिल जाता है, खा लेते हैं, कमाल इत्तिबाए सुन्नत के सबब से आप दो सालन के इज्तिमा को बिदअत समझ कर एक साहबज़ादे को घी और दूसरे को शकर दिया करते, अमीरों के घर खाना कभी नहीं खाते थे, क्यों के वो अक्सर वो शुबह की ज़ुल्मत से खली नहीं होता, एक दफा किसी दुनियादार के घर से खाना आया, आप ने फ़रमाया के इस में ज़ुल्मत मालूम होती है,
और बराहे नवाज़िश अपने खलीफा हज़रत ख्वाजा मिर्ज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! से फ़रमाया के तुम भी इस खाने में गौर करो, हज़रत ख्वाजा मिर्ज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! ने मुतवज्जेह हो कर अर्ज़ किया, के खाना तो हलाल ही है, मगर रिया की नियत के सबब अफ़ूनत पैदा हो गई है, नवाब मुकर्रम खान जो हज़रत शाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की औलाद से थे, और उरवतुल वुसका हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद मासूम नक्शबंदी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे, उनके खाने में बहुत तकल्लुफ़ात हुआ करते और असराफ बहुत करते, मगर हज़रत सय्यद बावजूद एहतियाते कमालो तक्वा के उनका खाना कभी बतौर तबर्रुक खा लिया करते और फरमाते के इनके खाने की बरकतों से इस कदर नूरे बातिन ज़ियादा होता है, के गोया हमने खाया नहीं दो रकअत नमाज़ पढ़ी है, अपने मुर्शिद की मुहब्बत के ग़लबे और अनवार निस्बत के ज़हूर के सबब से नवाब मुकर्रम खा की तमाम चीज़ें नूर हो गईं थीं, अगर आप दुनिया दारों के घरों से कोई किताब बतौरे अरीयत मंगवाते थे तो तीन रोज़ तक उस का मुताला ना करते थे, और फरमाते थे, के उनकी सुहबत की ज़ुल्मत मिस्ले गिलाफ के उस पर लपेटी हुई है, जब आप की सुहबत मुबारक की बरकत से वो ज़ुल्मत ज़ाइल हो जाती तो मुताला फरमाते।
कशफो करामात
ला पता लड़की घर पहुंच गई
एक दफा एक औरत आप की खिदमत में आई और अर्ज़ की के चंद दिनों से मेरी एक नौजवान लड़की ला पता है, इस की हाज़री के लिए तवज्जुह फरमाइए, फ़ौरन आप ने मुराकिबा किया और एक साअत के बाद फ़रमाया जा चली जा तेरी लड़की फ़ुला वक़्त आ जाएगी, इंशा अल्लाह, उसी दिन बुढ़िया की बेटी आ गई और उसने बताया के में सहरा में जिन्नात की कैद में थीं, आज एक बुज़रुग आए, मेरा हाथ पकड़ा और घर पहुंच दिया।
आप ने बदकारी से बचा लिया
एक फाहिशा औरत ने आप के एक मुरीद को अपने जाल में फसाया और ज़िना करने पर राज़ी कर लिया, जब बदकारी का मौका आया, तो हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की सूरत मिसालि उसकी हिमायत के लिए पहुंच गई, और औरत और मर्द के दरमियान हाइल हो गई, औरत डर कर चीखी और एक गोशा की तरफ भागी और इस मुख्लिस मुरीद ने तौबा की।
पहले तुम तौबा करो
हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का हर अमल रज़ाये खुदा के मुताबिक था, चुनांचे एक दफा दो राफ्ज़ी औरतें मुरीद होने के लिए हाज़िरे खिदमत हुईं, आप ने नूरे फरासत से उनका हाल मालूम करके फ़रमाया के तुम पहले अक़ीदए बद से तौबा करो, उन में से एक आप के फ़ज़ाइलो कमाल की काइल हो कर आप के सिलसिले में दाखिल हो गई, और दूसरी को तौफीक न हुई।
बातनि हालात जान लिए
एक दफा आप के घर के करीब एक भांग फरोश ने दुकान खोली, आप ने फ़रमाया के भांग की ज़ुल्मत ने हमारी निस्बते बातिन को मुकद्दर का दिया, ये सुन कर इरादत मंदों ने उस पर सख्ती की और दुकान ख़राब कर दी, आप ने फ़रमाया के निस्बते बातनि अब पहले से ज़ियादा मुकद्दर हो गई, क्यूं के ख़िलाफ़े शरआ एहतिसाब हुआ है, पहले उसे नरमी से तौबा कराते, आप के हुक्म पर भांग फरोश को हाज़िर किया गया तो शैख़ ने उस पर तवज्जुह निगाह फ़रमाई वो फ़ौरन आप का मुरीद हो गया और भांग फरोशी से तौबा करली।
आप कब्र में ज़िंदा हैं
हज़रत ख्वाजा सय्यद नूर मुहम्मद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के में हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ मुहम्मद मुहसिन देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने मुर्शिद की कब्र पर जा कर मुराकिबा किया तो हालत बे खुदी में, में ने देखा के आप का बदन मुबारक और कफ़न सब ठीक हालत में है, मगर आप के पाऊं के तलवे पर मिटटी का निशान है, में ने इस का सबब पूछा तो फ़रमाया के आप को मालूम होना चाहिए के हमने एक बार बिला इजाज़त किसी का पथ्थर उठाकर वुज़ू की जगह रख लिया था, इरादा ये था के जब इस का मालिक आएगा तो हम पथ्थर उसके हवाले कर देंगें, एक बार इस पथ्थर पर पैर रखा था, इस अमल की नहूसत से मिटटी मेरे तलवों पर है,
नोट:
इससे मालूम हुआ के अल्लाह के नेक बन्दे सूफ़ियाए किराम अपनी अपनी कब्रों में ज़िंदा हैं और आने वाले ज़ाएरीन से बात भी करते है।
आप के खुलफाए किराम
हमे आप के एक ही खलीफा का नाम मिला है वो अज़ीम हस्ती हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते पाक है, आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में चितली कबर के पास में है।
तारीखे विसाल
11/ ज़ी काइदा 1135/ हिजरी मुताबिक 13, अगस्त 1723/ ईसवी को दिल्ली में हुआ।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुक़द्दस के करीब ही में जुनूब की तरफ आप का मज़ार शरीफ ज़ियारत गाहे खासो आम है, ये जगह नवाब मुकर्रम खान का बाग़ था जिसे आज पांच पीर का कब्रिस्तान कहा जाता था इसी पांच पीर कब्रिस्तान में ही आप का मज़ार मुबारक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- ख़ज़ीनतुल असफिया
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
- औलियाए दिल्ली की दरगाहें
- तारीखे मशाइखे नक्शबंदिया
- मक़ामाते मज़हरी
- तज़किरातुल वासलीन