विलादत शरीफ
नासिरे मिल्लत, ज़ुब्दतुल आरफीन, शैखुल इन्स वल जिन्न, हज़रत ख्वाजा शाह मुहम्मद फरहाद अबुल उलाई रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत दिल्ली में हुई।
नाम
आप नामे मुबारक “मुहम्मद फरहाद” है।
वालिद माजिद
आप के वालिद माजिद शाही दरबार से मुनसलिक थे, दरबार के उमरा रुऊसा में आप का आला मकाम था, शहर बुरहानपुर की सूबेदारी इन के सुपर्द थी, सूबेदारी के फ़राइज़ आप बुरहानपुर में रह कर अंजाम देते थे।
हक की तलाश में
हज़रत ख्वाजा शाह मुहम्मद फरहाद अबुल उलाई रहमतुल्लाह अलैह! जब आप के वालिद मुहतरम बुरहानपुर के सूबेदार मुकर्रर हुए तो आप भी वालिद माजिद के सायाए आतिफ़त में रहकर तालीम हासिल करते रहे, और हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह बा हुक्म अपने पीरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना शाह अमीर अबुल उला अहरारी रहमतुल्लाह अलैह बुरहानपुर में रहने लगे थे, और बुरहानपुर को अपने फीयूज़ो बरकात से महमूदो मुनव्वर फरमाते रहे, आप का शुहरा धूम धाम सुनकर लोग दूर दूर से आप की खिदमत में हाज़िर होते थे, आप के वालिद माजिद भी मआ (साथ) आप को कभी कभी हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में ले जाते थे, अभी आप की उमर तेरह साल की थी, शोके कदम बोसी इतनी ज़ियादा हो गई के आप तनहा अपने मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर होने लगे,
रोक टोक
जब आप के वालिद माजिद को ये बात मालूम हुई के आप तनहे तनहा हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में जाते हैं, आप को वहाँ जाने से रोका लेकिन इश्क अपना काम कर चुका था, बख्त (किस्मत नसीब) बेदार होने वाला था, आप की रोक टोक काम नहीं आई, आप के वालिद माजिद ने जब ये देखा ये नहीं मानेगें तो उन्होंने मुनासिब समझा के हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में जा कर अर्ज़ करें, चुनांचे आप हज़रत की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया के:
मेरे सिर्फ यही एक बेटे हैं, अगर वो हज़रत! के पास आते जाते रहे, तो दुनिया से बेकार हो जाएगा, ये सुनकर हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के: हम और तुम दोनों मिल कर मना करते हैं के वो यहाँ ना आया करें, आप को फिर मना किया गया, लेकिन आप ने आना जाना बंद नहीं किया, इस लग्न मुहब्बत का जोश जो आप के सीने में चुभ चुका था निकालना मुहाल था, आप के वालिद के दिल को लगी हुई थी, फिर इस बारे में हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह से अर्ज़ किया, इस मर्तबा हज़रत ने कुछ और ही जवाब दिया, आप ने फ़रमाया के, तुम चाहते हो के वो बादशाह के सामने दस्तबस्ता खड़ा हो, लेकिन अल्लाह पाक चाहता है के बादशाह उसके सामने बा अदब खड़ा हो।
इजाज़तो खिलाफत
हज़रत ख्वाजा शाह मुहम्मद फरहाद अबुल उलाई रहमतुल्लाह अलैह! आखिर कार वालिद माजिद ने फिर आप को आने जाने से मना नहीं किया, कुछ दिनों के बाद ही हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद अबुल उलाई नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदी में दाखिल हुए, बैअत से मुशरफ हुए, और खिरकाए खिलाफत से सरफ़राज़ हुए, और हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद अबुल उलाई नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के पीरो मुर्शिद है हज़रत सय्यद मीर अबुल उला नक्शबंदी चिश्ती अहरारी रहमतुल्लाह अलैह आगरावी।
मुर्शिद की वसीयत
हज़रत ख्वाजा शाह मुहम्मद फरहाद अबुल उलाई रहमतुल्लाह अलैह! अपने पीरो मुर्शिद हज़रत सय्यद दोस्त मुहम्मद अबुल उलाई नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ने विसाल के करीब आप को वसीयत फ़रमाई के उन के बाद बुरहानपुर में नहीं रहना बल्के दिल्ली में बूदो बाश रहिन सहन इख्तियार करे और वहां रहकर मखलूक को रुश्दो हिदायत और तालीमों तलकीन व नसीहत फरमाए।
दिल्ली में आमद
पीरो मुर्शिद की वसीयत के मुताबिक पीरो मुर्शिद के विसाल के बाद आप बुरहानपुर से हिजरत कर के दिल्ली में सुकूनत इख़्तियार करली और तमाम उमर दिल्ली में रहकर राहे हक दिखलाते रहे और मखलूक की दस्तगीरी फरमाते रहे, लोग आप के फैज़ का शुहरा सुनकर दूर दूर से आते थे, और आप के हल्काए इरादत में दाखिल होते थे, निस्बते अबुल उलाईया फ़रहादिया से सैंकड़ों को फ़ैज़ो बरकात पंहुचा बहुत से साहिबे दिल बुज़रुग हुए।
सीरतो ख़ासाइल
आप वहीदुल अस्र, और क़ुत्बे वक़्त थे, आप की तवज्जुह गैबी का ये असर होता था के लोग बेखुद हो जाते थे, आप की फैज़े सुहबतो तरबियत से लोग मक़ामे मारफत तक पहुंच गए, आप को शैखुल जिन्न वल इन्स! कहा जाता है, जिन इंसानी सूरत में आप की मजलिसे मारफत में हाज़िर हो कर फ़ैज़ो बरकात हासिल करते थे, आप पर निस्बते इस्तग़राक इतना ग़ालिब रहता था के आप खुराक व पोशाक से बेखबर रहते थे, ज़िक्रो फ़िक्र में हमा वक़्त मशग़ूलो मसरूफ रहते थे, बाज़ औकात ऐसा होता था, के आप मसनद पर बैठे हुए कुछ तलाश करते होते थे, लोग पोछते क्या तलाश कर रहे हो,? आप फरमाते फरहाद! यहाँ बिठा था कहा गया? गरज़ आप के ओसाफे बशरी सिफ़ाते मिल्की में तब्दील हो गए थे।
खुलफाए किराम
हज़रत ख्वाजा शाह मुहम्मद फरहाद अबुल उलाई रहमतुल्लाह अलैह! के हमे सिर्फ दो खुलफाए किराम के नाम मिले हैं वो ये हैं: हज़रत शाह बुरहानुद्दीन खुदा नुमा, और हज़रत शाह असादुल्लाह आप के मुमताज़ खलीफा हैं।
वफ़ात
आप रहमतुल्लाह अलैह ने 25/ जमादियुस सानी 1135/ हिजरी को विसाल फ़रमाया।
मज़ार मुकद्द्स
आप का मज़ार शरीफ दिल्ली राम बाग़ रोड, गुलाबी बाग़ नई दिल्ली में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
- दिल्ली के बत्तीस 32, ख्वाजा
- दिल्ली के बाइस 22, ख्वाजा