हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नाम व नसब

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “मुहम्मद सदरुद्दीन” लक़ब “सदरुस सुदूर” मुजाहिदे जंगे आज़ादी! “तखल्लुस” “आज़ुर्दाह” है, आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक “हज़रत शैख़ लुत्फुल्लाह कश्मीरी”और आप का आबाई वतन कश्मीर था, आप के आबाओ अजदाद साहिबे इल्म व तक्वा थे, वादिए कश्मीर में इज़्ज़तो एहतिराम की निगाह से देखे जाते थे।

खानदानी हालात

सदरुस सुदूर मुजाहिदे जंगे आज़ादी हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु की औलादे पाक से हैं, आप के जद्दे आला हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन ख्वारज़मी फारूकी रहमतुल्लाह अलैह! बादशाह अकबर के दौरे हुकूमत में दिल्ली तशरीफ़ लाए और बादशाह के खास लोगों में शामिल हुए, आप के दादा मुहतरम हज़रत मौलाना खैरुद्दीन अबुल खेर रहमतुल्लाह अलैह जो के इल्मे शरीअतो तरीकत के माहिर थे, और फ़िक़्ह की मश्हूरो मारूफ किताब “फतावा आलमगीरी” तदवीन मुर्रतब करने वालों में आप मुमताज़ दर्जा रखते थे, इन के फ़रज़न्द हज़रत मौलाना फखरुद्दीन अमानुल्लाह शहीद रहमतुल्लाह अलैह अपने ज़माने के “शैखुल इस्लाम” थे, हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इन्ही के भाई हज़रत मौलाना लुत्फुल्लाह कश्मीरी रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादे हैं, आप बादशाह अकबर सानी के दौरे हुकूमत में 1204/ हिजरी को दिल्ली में पैदा हुए।

तालीमों तरबियत

हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इब्तिदाई तालीम तो अपने अपने वालिद मुकर्रम हज़रत शैख़ लुत्फुल्लाह कश्मीरी रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की, उस वक़्त दिल्ली उलूमो फुनून का मरकज़ था, बड़े बड़े असातीने इल्म मौजूद थे, और आप ने बाकी तालीम मुजद्दिदे वक़्त सिराजुल हिन्द हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना शाह रफीउद्दीन मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद इसहाक रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना फ़ज़्ले इमाम खैराबादी रहमतुल्लाह अलैह, वालिद माजिद हज़रत अल्लामा फ़ज़्ले हक खैराबादी रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की, आप मुगलिया दौरे हुकूमत में दिल्ली के सब से बड़े “मुफ्तिए आज़म” और अंग्रेज़ी दौरे हुकूमत में “सद रुस्सुदूर” के उहदे पर फ़ाइज़ थे, मुजाहिदे जंगे आज़ादी हज़रत अल्लामा फ़ज़्ले हक खैराबादी रहमतुल्लाह अलैह आप के हम सबक थे।

सीरतो ख़ासाइल

बदरुल उलमा, नासिरे मिल्लत, जाअमे कमालाते इल्मिया, व अमलिया, मुताबह्हिर, फ़ाज़िले अजल, उलूमे अकलिया व नकलिया, बतले हुर्रियत, माहीए बिदअत, हामीए अहले सुन्नत, काताए नजदियत, बदमज़हबियत वहाबियत, मुजाहिदे जंगे आज़ादी, सद रुस्सुदूर, हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जाअमे फ़ज़्लो कमाल शख्सियत थे, आप तमाम उलूमो फुनून पर महारत रखते थे, हज़रत मौलाना फ़कीर मुहम्मद जेहलमी रहमतुल्लाह अलैह, ने भी आप से इल्मी इस्तिफ़ादा किया है, वो फरमाते हैं: तमाम उलूम सर्फ़ नहो, मंतिक हिकमत, रियाज़ी, मुआनी बयान, अदब, इंशा, फ़िक़्ह, हदीस, तफ़्सीर वगेरा में यदे तूला रखते थे, आप बड़े साहिबे वजाहत, व रियासत, और अपने ज़माने के यगानए रोज़गार नादराए अस्र थे,
हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के शागिरदे रशीद थे और इन्ही के मसलक पर मज़बूती से अमल करते थे,
बुज़ुर्गाने दीन सूफ़ियाए किराम के मज़ारात शरीफ पर हाज़री देते और उर्सों में शिरकत फरमाते, नज़रो नियाज़ की महफ़िलों में शरीक होते और अक्सर सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार मुबारक पर हाज़री दिया करते थे, आप ने भी दूसरे उल्माए अहले सुन्नत के साथ मौलवी इस्माईल देहलवी की किताब “तक़वीयतुल ईमान” की गुस्ताखाना इबारतों का सख्त रद्द किया, और 1248/ हिजरी वाले मशहूर मुनाज़िरा में जो के दिल्ली की जामा मस्जिद में मौलवी इस्माईल देहलवी और उल्माए अहले सुन्नत के दरमियान हुआ था, आप ने भी इस में सरगरम हिस्सा लिया था।

सद रुस्सुदूर का उहदा

हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! तनख्वाह और मनसब के ऐ तिबार से ये उहदा अंग्रेजी दौर में जज! के बराबर समझा जाता था, लेकिन इज़्ज़त वाला उहदा शुमार किया जाता था, अंग्रेज़ों ने 1827/ ईसवी के करीब अकबर शाह सानी बादशाह से मश्वरा कर के हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को दिल्ली का “सद रुस्सुदूर” उहदे का मुफ़्ती मुकर्रर किया गया, तीस साल तक आप इस उहदे पर फ़ाइज़ रहे, आप ने इस ज़िम्मेदारी को जिस फ़र्ज़ शनासी और दियानत दारी के साथ अंजाम दिया इस की दाद ना सिर्फ हुकूमत के आला ज़िम्मेदारों ने दी बल्के अवामो ख्वास रियाया में भी इस के चर्चे थे,
नवाब मुस्तफा खान शेफ्ता! लिखते हैं: जगड़ों के फैसला करने पर मामूर हैं जो मनसब आला है जिस को अहले अँगरेज़ की इस्तलाह में सद रुस्सुदूर! कहते हैं, फी ज़माना इन की सल्तनत में अहले हिन्द के लाइक इससे बड़ा कोई उहदा नहीं है, मौलाना ने इस दुनियावी कसबे मआश के ज़रिए को दीनी सवाब हासिल करने का वसीला बना रखा है क्युंके इन की तमाम तर कोशिश मखलूक की हाजत रवाई में सर्फ़ होती है, इन के इंसाफ की बरकत हर खासो आम को मुहीत है।

आप की तालीमी खिदमात

इल्मी व अदबी ज़ोक के अलावा हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को जिस काम से सब से ज़ियादा दिल चस्पी थी वो पढ़ने पढ़ाने का काम था, मनसब के फ़राइज़ अदा करने के बाद आप ऊंचे दर्जा के तलबा को अपने घर पर बुज़ुर्गों के तरीके पर बगैर किसी उजरत के पढ़ाते थे, आप की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा तलबा के ऊपर खर्च होता, तलबा का माहाना वज़ीफ़ा मुकर्रर था, और लिबास तक आप ही देते थे, जुमा मुबारक को छुट्टी रहती थी, इस में तमाम तलबा को अपने साथ ले कर बाग़ जाते, तरह तरह के मेवे और लज़ीज़ खाने खिला कर खुश होते,
आप फय्याज़ी, इल्म परवरी और तलबा के साथ अच्छा सुलूक करने की शुहरत हिंदुस्तान के कोने कोने तक पहुंच गई थी, दूर दराज़ से इल्म के प्यासे आप की खिदमत में हाज़िर होते और इल्म की प्यास बुझाते, बहुत से इल्म वाले बरकत के लिए या महिज़ शागिर्दी की निस्बत के लिए चंद सबक पढ़ते और सनद हासिल करते,
हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ज़हीन शागिर्दों की तरबियत का ख़ास ख्याल रखते थे, उनकी सलाहीयत और काबिलियत के मुताबिक उन से बर्ताव करते थे, हमेशा इनकी दिल जोई फरमाते, ज़ियादा मशग़ूलियत की वजह से कभी पढ़ाने में देर हो जाती या नागा हो जाता तो बहुत अफ़सोस फरमाते।

फ़तवाए जिहाद

1857/ ईसवी की जंग में अंग्रेज़ो की गुलामी से निजात हासिल करने के लिए जज़ल बख्त खान! ने दिल्ली के अमाईदीन (मुअज़्ज़, काईदीन, सरदार) और उल्माए किराम को दिल्ली की जामा मस्जिद में जमा किया और उन के सामने ये मसला रखा के अंग्रेजी साम्राज्य से छुटकारा पाने के लिए मुसलमानो को किस तरह आमादा किया जाए, चुनांचे जिहाद के लिए तारीखी फतवा मुरत्तब किया, और इस पर मशहूर उल्माए किराम से दस्तखत कराए, इस तारीखी फतवे पर मुफ़्ती साहब ने भी दस्तखत किए, इस की पादाश (तज़ीर सज़ा) में आप की नौकरी हाथ से गई और तमाम जायदाद व इमलाक अँगरेज़ गोरमेंट ने ज़ब्त करली, और तीन लाख की कीमत का अज़ीम क़ुतुब खाना भी नीलाम हो गया बल्के फ़तवाए जिहाद पर दस्तखत करने की वजह से कई महीने आप जेल खाने में भी बंद रहे।

आप का अज़ीम कारनामा

शाहजहां बादशाह! के दौर का मशहूर मदरसा “दारुल बका” जो के दिल्ली के जामा मस्जिद के जुनूबी दरवाज़े पर था, जिस में तालिबे इल्म रहा करते थे, और इल्मे दींन हासिल करते थे, इस की इमारत शकिश्ता हो गई थी, हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने बड़ी रकम खर्च कर के इस को अज़ सरे नो तामीर कराया, इस मदरसे में जुमला इख़राजात के अलावा मुदर्रिसीन की तक़र्रुरी और उनकी तनख्वाह की ज़िम्मेदारी भी हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने ज़िम्मे ले रखी थी,
1857/ ईसवी की जंग ग़दर में शाह जहानी मस्जिद भी ज़द में आई, 5/ साल जामा मस्जिद अँगरेज़ ज़ालिमों गॉसिबों के कब्ज़े में रही, मस्जिद को सिख फौज का पार्क बना दिया गया, इस में पेशाब पाखाना करने से उन को कोई परहेज़ नहीं था, हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने दिल्ली के ज़िम्मे दार हज़रात को साथ ले कर मस्जिद की आज़ादी की कोशिश शुरू की, आप रहमतुल्लाह अलैह का ये बहुत बड़ा कार नाम है के इन की कोशिशों से मस्जिद मुसलमानो को फिर वापस मिल गई।

शेरो शायरी

हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अगरचे आप की आलिमाना और फकीहाना शान नुमाया रही लेकिन एहबाब और दोस्तों की मजलिसों में आप की शायराना सलाहियतों के भी जोहर चमके, अरबी, फ़ारसी, और उर्दू तीनो ज़बानो में शेर कहते थे, और अपनी कादिरूल कलामी का लोहा बड़े बड़े शायराने गुफ़्तार से मनवाया, यही वजह है के इन के फ़ज़्लो कमाल का जहाँ चर्चा किया जाता है वहां उर्दू के बुलंद पाया शायरों में भी इनका शुमार होता है, उम्दा आलिमे दीन होते हुए भी एक हस्सास और खुश मज़ाक इंसान थे।

तसानीफ़

हज़रत मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की अक्सर क़ुतुब गर्दिशे ज़माना की नज़र हो गईं, और 1857/ की जंग में बर्बाद हो गईं और जो बाकी बची वो मन्ज़रे आम पर नहीं आ सकीं इन्ही क़ुतुब में से आप की एक बहुत मशहूर तस्नीफ़ “ला तशररुद रिहाल” है जिस में आप ने मुहद्दिसाना और फकीहाना अंदाज़ में ज़ियारते कुबूर का सुबूत और इंकार करने वालों की गिरफ्त फ़रमाई है।

वफ़ात

आप ने 24/ रबीउल अव्वल 1285/ हिजरी मुताबिक जुलाई 1868/ ईसवी बरोज़ जुमेरात को वफ़ात पाई, आप के विसाल से अहले दिल्ली को इस कद्र रंजो आलम हुआ के बयान नहीं हो सकता, पूरा शहर आप के जनाज़े में शरीक था, मगरिब के बाद जामा मस्जिद में नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गई और आप की वसीयत के मुताबिक चिराग दिल्ली! में हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के कदमो की जानिब दफ़न किया गया, इतवार को तीजे की फातिहा हुई जिस में शहर दिल्ली के तमाम अमाईदीन मुअज़्ज़ अमीर कबीर मौजूद थे।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में दरगाह हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! में कदमो की तरफ तख़्त वाले गुंबद में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दाह

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