हज़रत ख्वाजा शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी सोहरवर्दी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! आप हज़रत ख्वाजा मखदूम समाउद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्दे अर्ज मंद और आप इन्ही के मुरीदो खलीफा हैं, आप अपने ज़माने के बड़े साहिबे तकवाओ तदय्युन परहेज़गार बुज़रुग थे, तमाम उमर आप ने तनहा गुज़ारी, अगरचे जवानी में आप ने शादी करली थी लेकिन जब आप ने ये देखा के इससे इबादत इलाही में फर्क आ रहा, तो हंसी ख़ुशी बीवी से अलग हो गए,

हज़रत ख्वाजा शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! बात करते वक़्त मुता कल्लिम का सेगा इस्तेमाल नहीं करते थे, बल्कि अपने लिए गाइब का सेगा इस्तेमाल करते थे, जैसे में आऊँगा, या में जाऊँगा, के बजाए वो आएगा, वो जाएगा, कहते थे, एक ज़माने तक आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाहे मुक़द्दसा में इबादत में मसरूफ रहे, आप हर नमाज़ के लिए कपड़े धोते और ग़ुस्ल किया करते थे, आप ने 8/ साल जग्गंलात में रह कर सख्त मुजाहिदा किया, झोंपड़ी तक इस्तेमाल नहीं की, हर रोज़ एक कुरआन शरीफ ख़त्म करते थे,

करामत

हज़रत ख्वाजा शैख़ अब्दुल्लाह बयाबानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! जंगल में रहा करते थे तो आप के आस पास शेरो पिलंग, चीता और तमाम जंगली दरिंदे रहते थे, और कोई भी आप को नुकसान नहीं पहुंचाता था।

वफ़ात

आप ने सुल्तान सिकंदर लोधी के दौरे हुकूमत में 905/ हिजरी में वफ़ात पाई।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक महरोली शरीफ दिल्ली तीस 30/ में होज़े शम्शी से पच्छिम की जानिब वालिद माजिद के मकबरे के पीछे में ही मरजए खलाइक है

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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