हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा
“अख़बारूल अखियार” के मुताला से मालूम होता है के हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैहा! कलंदर सिफ़त खुसूसियत के हामिल अपने ज़माने के निहायत मश्हूरो मारूफ सूफी बुज़रुग थे, आप की बुज़ुरगी से हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैहा और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! काफी मुतअस्सिर थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप की खानकाह में हमेशा आया करते थे, खास कर जब महफिले सिमा का इनईकाद होता था तो उस मजलिस में ज़रूर हाज़िर होते थे,
हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैहा! के गहरे दोस्त थे, हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैहा जब भी हांसी से दिल्ली शरीफ आते थे, तो हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में ही ठहरते थे, जहाँ फकीरों से मुलाकात होने के अलावा इन को सिमा कव्वाली! की महफ़िल भी मिल जाया करती थी, एक दफा हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह आने वाले थे, तो इन के मुरीद हज़रत शैख़ हुस्सामुद्दीन इंदरप्रस्थी! जो अपने वक़्त के दिल्ली के काज़ीउल कुज़्ज़ात! थे,
हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह के इस्तकबाल की तय्यारी में मसरूफ थे, इस सिलसिले में हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैह! ने कहा के अगर हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह आजाएं तो उन्हें बता देना के में हज के लिए जा रहा हूँ, जब हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली आए तो इस बात की इत्तिला शैख़ हुस्सामुद्दीन ने इन्हें फ़ौरन ही दे दी, ये बात सुनते ही हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह ने एक खत लिख कर और कहा, इसे फ़ौरन हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैह! तक पहुचाओ और में तुम्हारे पीछे पीछे आ रहा हूँ, इस खत में लिखा था के मेरा सर आप के पाऊँ पर कुर्बान हो जाए तो बहुत अच्छा हो! एक सर क्या हज़ारों कुर्बान हो जाएं, तो बहुत बेहतर हो, हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैह! की तरह गार को वतन बनाइए के हुज़ूर रहमते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रफीक हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैहा! की तरह हमारे लिए गार ही बेहतर है।
वफ़ात
आप ने 22, रजब 700/ हिजरी मुताबिक 1295/ ईसवी को वफ़ात पाई।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के माज़र मुबारक के लिए जाते हुए उलटे हाथ को पुराना किला! और चिड़या घर! से पहले बुलंद मक़ाम पर मरजए खलाइक है, और आप मटका पीर के नाम से मश्हूरो अरूफ़ हैं।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
- औलियाए दिल्ली की दरगाहें
- दिल्ली के बत्तीस ख्वाजा