विलादत शरीफ
आप की पैदाइश मुबारक 862/ हिजरी मुताबिक 1458/ ईसवी में हुई।
वालिद
आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक “फ़ज़्लुल्लाह” था।
इस्मे गिरामी
आप का नाम मुबारक हामिद बिन फ़ज़्लुल्लाह, है बाज़ मुअर्रिख़ीन के नज़दीक असली नाम जलाल खां! है, बाद में अपने मुर्शिद के हुक्म से जमाली तखल्लुस रखते थे, शैख़ जमाली, दुर्वेश जमाली भी आप के तखल्लुस थे।
तालीमों तरबियत
हज़रत ख्वाजा शैख़ जमाली सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! अभी आप कम सिन बच्चे ही थे आप के सर से वालिद माजिद का साया सर से उठ गया, अपनी खुदा दाद इस्तेदाद लियाकत और काबिलियत के सबब उम्दह तालीमों तरबियत से बहरा मन्द फ़ैज़याब हुए, आप ने उलूमे मुरव्वजा में फ़ज़ीलत हासिल की,
बैअतो खिलाफत
हज़रत ख्वाजा शैख़ जमाली सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! ने उलूमे ज़ाहिरी की तकमील करने के बाद आप ने शमए अकीदत कलबी को किन्दीले मुर्शिदे गिरामी से रोशनो मुनव्वर किया, हज़रत ख्वाजा शैख़ मखदूम समाउद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह से मुरीद हुए और आप ने इजाज़तो खिलाफत से नवाज़ा, पीर रोशन ज़मीर की खिदमत में रह कर इबादतों रियाज़त औरादो वज़ाइफ़ और मुजाहिदात किए, और आखिर कार दरजए कमाल को पहुंचे, पिरो मुर्शिद को वुज़ू कराने की खिदमत आप के सुपुर्द थी, रूमाल, तशत, और लोटा, आप अपने पास रखते थे, आप शहर से बाहर जा कर पिरो मुर्शिद के वास्ते इस्तन्जे के ढेले टोकरी में भर कर सर पर रख कर चलते थे।
पीरो मुर्शिद की आप से मुहब्बत
हज़रत ख्वाजा शैख़ जमाली सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! के मुर्शिद गिरामी हज़रत ख्वाजा शैख़ मखदूम समाउद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह को आप से बेहद उन्स लगाओ था, आप खुद फरमाते हैं: मेरे पीरो मुर्शिद मुझ से बेहद मुहब्बत करते थे, जब में बैतुल्लाह शरीफ को गया, हमेशा मेरे हक में तहज्जुद के वक़्त ये दुआ करते थे, ऐ अल्लाह! पंहुचा दे जमाल! को मेरे पास सही व सालिम और रोज़ी कर मुझ को उसके जमाल को देखना और रोशन कर मेरी आँखें उस के नूरे दीदार के साथ और अपनी रहमत व करम से, जब आप ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन ज़ादा हल्लाहु शरफउं व तअज़ीमा से मुशर्रफ हो कर शरफ़ अन्दोज़ हुआ, आप से मुसाफा मुआनिका बगलगीर हुआ, आप बहुत ज़ियादा शफीको मेहरबान हुए, मेरी बरसों की दुआ जो तहज्जुद के वक़्त किया करता था, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के करम से पूरी हुई।
सेरो सियाहत
हज़रत ख्वाजा शैख़ जमाली सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! ने दुनिया की खूब सेर की अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की कारीगरी और उसकी सिफ़ात को दीदा हक़ से खूब देखा मदीना मक्का मुकर्रमा की ज़ियारत की, मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफउं व तअज़ीमा पहुंच कर फ़ैज़ो बरकात हासिल किए, मुल्तान, मिस्र, बैतुल मुकद्द्स, मुल्के रूम, मुल्के शाम, ईराक अरबो अजम, आज़रबाइजान, जिलांन, नाज़िन्दरान, ईरान, खुरासान बहुत से ममालिक की सेर की और बहुत से औलियाए किराम व पीराने उज़्ज़ाम से मुलाकात की,
शहर मुल्तान में आप हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ पर हाज़िर हुए, और हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात की, अफगानिस्तान का शहर हिरात! में आप हज़रत शैख़ सूफी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शैख़ अब्दुल अज़ीज़ जामी रहमतुल्लाह अलैह, आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना मसऊद शेरवानी रहमतुल्लाह अलैह, से मुलाकात की, बग़दाद शरीफ में इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी गौसे आज़म बगदादी रहमतुल्लाह अलैह, और शैखुल मशाइख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारात पर हाज़री दी और फियूज़ो बरकात से फ़ैज़याब हुए,
सीरतो खसाइल
हज़रत ख्वाजा शैख़ जमाली सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! अपने वक़्त के क़ुत्बे ज़माना थे, बड़े इबादत गुज़ार साहिबे तकवाओ तदय्युन, ज़ुहदो, वरआ, थे, ज़िक्रो फ़िक्र में हमा तन मशगूल रहते थे, निहायत मुन्कसिरुल मिजाज़ थे, एक बावक़ार बुज़रुग थे, अपने पीरो मुर्शिद से बे इंतिहा मुहब्बत करते थे, अपने मुर्शिद की खिदमत को अपने लिए बाइसे फखरे सआदत समझते थे, इरादत से सरफराज़ मुरीदों में मुमताज़ थे, जमाली सूरी और कमाली मअनवी से आरास्ता थे, सूफ़ियाए किराम की मजलिस में आप आरिफ़े गिरामी थे, उल्माए किराम की बज़्म में आप मुमताज़ दर्जा रखते थे।
अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात
जब आप हज़रत ख्वाजा शैख़ जमाली सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! हिरात पहुंचे परेशान हाल थे, आप के जिस्म मुबारक पर सिर्फ एक तहबन्द था, कोई दूसरा कपड़ा नहीं था, आप आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह, से इसी हाल में मिलने चले गए, सलाम कर के हज़रत जामी रहमतुल्लाह अलैह के बराबर में बैठे गए, ये बात हज़रत जामी रहमतुल्लाह अलैह को नागवार गुज़री, इन्होने आप से कहा “गधे और तुझ में क्या फर्क है” ये सुन कर आप ने एक बालिश्त बीच में जगह कर दी, आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह, हैरान हुए के ये कौन शख्स है, आप ने पूछा, तुम कौन हो? आप का कलाम आप की ज़िन्दगी में वहां मशहूर हो चुका था,
हज़रत जामी रहमतुल्लाह अलैह ने पूछा? क्या जमाली कोई चीज़ याद है? आप ने हज़रत जामी रहमतुल्लाह अलैह को कुछ अशआर सुनाए, फिर हज़रत जामी रहमतुल्लाह अलैह ने आप से दरयाफ्त किया, तुम भी बहुत अशआर कहते हो, फिर आप ने एक शेर पढ़ा और आप की आखों से एक सैलाब अश्कों का जारी हो गया, आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह, समझ गए यही जमाली! हैं, और आप को गले से लगा लिया।
बादशाहों से तअल्लुक़ात
सुल्तान सिकंदर लोधी आप का काफी मोतक़िद व मुहिब्ब था, और आप से उन्स मुहब्बत रखता था, बादशाह सिकंदर लोधी! खुद शायर था, उस का तखल्लुस “गुलरुखी” था, वो आप से इस्लाह लिया करता था, जब आप ईराक, मुल्के शाम, और अरब से वापस दिल्ली तशरीफ़ लाए, तो उस वक़्त बादशाह सिकंदर लोधी! सम्भल में था, जब उस को आप के आने का इल्म हुआ, उस ने एक खत नज़म में लिख कर आप की खिदमत में रवाना किया था,
बादशा बाबर हुमायूँ! को भी आप से बेहद मुहब्बत थी, वो दोनों बादशाह भी आप का बड़ा ऐजाज़ो इकराम ताज़िमों तौकीर करते थे, और कई बार गुलहाए अकीदत पेश करने आप के दौलत खाने पर हाज़िर हुए,
अक़्द मसनून
आप के दो साहब ज़ादे थे, (1) हज़रत शैख़ अब्दुल हई, (2) हज़रत अब्दुस समद उर्फ़ शैख़ गदाई।
विसाल
बरोज़ जुमा 10/ ज़ीकाइदा 942/ हिजरी मुताबिक 30/ अप्रेल 1536/ ईसवी को हुआ।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ क़ुतुब मीनार के करीब एग्री कल्चलर पार्क महरोली दिल्ली इंडिया में ज़ियारत गाहे खल्क है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए माज़राते दिल्ली
खज़ीनतुल असफिया
तज़किराए औलियाए पाको हिन्द