बैअतो खिलाफत
हज़रत ख्वाजा शैख़ यूसुफ क़त्ताल देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अपने वक़्त के निहायत मश्हूरो मअरूफ़ सूफी बुज़रुग थे, आप हज़रत क़ाज़ी जलालुद्दीन लाहोरी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों खलीफा थे, आप के मज़ार मुबारक की तामीर हज़रत ख़्वाजा शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के नवासे हज़रत शैख़ अलाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने करवाई थी, मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के आप को इबादतों रियाज़त में एक ख़ास मकाम हासिल था, आप मुहम्मद बिन तुगलक के बनबाए हुए, पुल पर इबादतों रियाज़त किया करते थे,
आप के एक मुरीद जिनका नाम जलालुद्दीन था, आप के एहकामात पर पाबंदी से अमल किया करते थे, जिस की वजह से एक दिन वो अपनी इबादतों रियाज़त में ख़ास मक़ाम हासिल कर के कमाले उरूज को पहुंच गए, आप हज़रत क़ाज़ी जलालुद्दीन लाहोरी रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा और दामाद भी थे,
आप के बड़े साहबज़ादे का नाम शैख़ अब्दुल्लाह था, जिन्हों ने हमेशा तवक्कुल से ज़िन्दगी बसर की और 1572/ ईसवी में जलालुद्दीन अकबर के दौरे हुकूमत में अपने वालिद के पहलू में दफन हुए,
वफ़ात
आप का विसाल 933/ हिजरी मुताबिक 1526/ ईसवी को हुआ,
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ खिरकी गाऊं, मालविये नगर दिल्ली 17/ के क़ब्रिस्तान में मरजए खलाइक है, आप के मज़ार शरीफ पर गुंबद बना हुआ है और लाल पथ्थर से शानदार मस्जिद भी बराबर में बनी हुई है, पुराने ज़माने की जिस की हालत बहुत ही ख़राब है कोई देख रेख करने वाला नहीं है,
मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
औलियाए दिल्ली की दरगाहें