खिलाफ़तो इजाज़त
आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के पुराने और आला मुरीदो में से हैं, आप बड़ा अज़्मों हौसला रखते थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से आप बहुत मुहब्बतों अकीदत रखते थे और हज़रत! भी आप पर बहुत शफीक रहा करते थे, आप के वालिद माजिद का नाम “क़ाज़ी करीमुद्दीन” और दादा का नाम “बुरहान उमरी” है जो के अफगानिस्तान के शहर बल्ख! के रहने वाले थे,
दिल्ली में आमद
आप हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दौरे हुकूमत में दिल्ली के कोतवाल रहे, इस लिए आप को, “मीर दाद” कहा जाता था, ये उहदा उस ज़माने में वज़ारत (वज़ीर) के उहदे से कम होता था, फिर हज़रत नूरुद्दीन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह से तअल्लुक़ात की वजह से आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद हो गए और दुनिया के मालो असबाब को छोड़ दिया, हज़रत नूरुद्दीन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द किरमानी रहमतुल्लाह अलैह मुसन्निफ़ “सेरुल औलिया” फरमाते हैं, के हज़रत नूरुद्दीन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह को मेरे वालिद से बहुत मुहब्बत थी और आप बार बार मुझ से फरमाते थे के में तुम्हारे वालिद का मुसलमान किया हुआ हूँ,
में ने इस का मतलब पूछा तो फ़रमाया में “अमीर दाद” था, यानि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का मुकर्रर करदह कोतवाल, पीरी मुरीदी को में नहीं जानता था, में सूफ़ियाए किराम का मुनकिर था, जब मेरी तुम्हारे वालिद से मुलाकात हुई, तो उन्होंने मुझ को इस बात पर तय्यार कर लिया के में एक मर्तबा सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात करूंगा, चुनांचे वो मुझे सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के पास ले गए, और पहली ही मुलाकात में हज़रत का गुलाम बन गया।
महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की शफकत
आप ऊध उत्तर प्रदेश में रहते थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने तकरीबन सो खत जिन में अक्सर हज़रत! ने अपने दस्ते मुबारक से लिखे थे, हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की तरफ भेजे जिन में हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! पर निहायत लुत्फ़ो करम फ़रमाया है और आप के मुरीदों में से जैसे हज़रत मौलाना शमशुद्दीन यहया, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी, हज़रत मौलाना अलाउद्दीन नीली, वगेरा जो कोई ऊध उत्तर प्रदेश की तरफ तशरीफ़ ले जाते तो उनको हुक्म होता के जब हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के पास गोपामऊ! पहुँचो तो हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से ज़रूर मुलाकात करना।
जू दो अता
हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने दुनियावी तअल्लुक़ात को एक दम तर्क कर दिया था, आप जब किसी के घर खाना भेजते, निहायत पुर तकल्लुफ और उम्दह बर्तनो में भेजते और जिस के यहाँ खाना भेजते उस को कहिलवा भेजते के ये ख्वान और बर्तन वापस न किए जाएं।
हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द किरमानी रहमतुल्लाह अलैह का बयान है के एक मर्तबा में हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में बैठा हुआ था के हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! तशरीफ़ ली और हज़रत की बारगाह में चंद पैसे अता किए, और कहा की में आप की मुलाकात के लिए आ रहा था, रास्ते में मेरे एक अज़ीज़ ने मुझे ये चंद पैसे दिए हैं, फकीरों का ये तरीका है के जिस बुज़रुग की ज़ियारत को जाते हैं, रास्ते में जो कुछ मिलता है वो उसी बुज़रुग का हिस्सा जानते हैं, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ये बात सुनकर मुस्कुराए, हज़रत ख्वाजा शैख़ मुबारक गोपामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! मुलाकात कर के वापस होने लगे तो हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने उन से दो गुने ज़ियादा नज़राना पेश किया।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ दरगाह सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के अंदर हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुक़द्दस से आगे वुज़ू खाना के बराबर में ही मरजए खलाइक है
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली