हज़रत ख्वाजा शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यइद देहलवी
आप हज़रत ख्वाजा शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यइद रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के हम ज़माना थे, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने भी आप को देखा है और आप इन के वाइज़ मजलिस में भी शरीक हुए हैं, आप के वाइज़ में गज़ब की तासीर थी,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के एक मर्तबा में हज़रत ख्वाजा शैख़ निज़ामुद्दीन अबुल मुअय्यइद रहमतुल्लाह अलैह के वाइज़ की महफ़िल में गया, देखा के आप जूते पहने मस्जिद के दरवाज़े पर खड़े हैं, फिर आप ने जूते उतार कर अपने हाथों में लिए और मस्जिद में जा कर बड़े इत्मीनान व सुकून से दो रकअत निफ़्ल अदा किए, में ने उनकी तरह किसी को नमाज़ पढ़ते नहीं देखा था, नमाज़ पढ़ने के बाद मिंबर पर तशरीफ़ लाए, आप की तकरीर से पहले मशहूर कारीये कुरआन जनाब कासिम ने खुश इल्हानी से कुरआन शरीफ की तिलावत फ़रमाई, इस के बाद आप ने अपने कलाम का आगाज़ फ़रमाया के में ने अपने बाबा की तहरीर खुद देखि, आप अभी कुछ और कहने ना पाए थे के इसी बात का हाज़रीन के दिल पर ऐसा असर हुआ के वो रोने लगे, फिर आप ने ये मिसरा पढ़ा :
में आप के इश्क और आप को एक बार देखूँगा, फिर अपने गम में अपनी उमर बर्बाद कर दूंगा,
आप ने अभी यही कहा था के तमाम हाज़रीन नारे मार कर रोने लगे, आप ने इन्ही दो मिसरों को तकरार से दो तीन बार पढ़ने के बाद फ़रमाया, ऐ मुसलमानो! इस रोबाई के दो मिसरे भूल गया हूँ, अब क्या करूँ? ये जुमले आप ने इस तरह आजिज़ी व इंकिसारी से फरमाए के सामईन पर फिर एक असर हुआ,
बारिश होने लगी
एक बार दिल्ली में खुश्क साली हुई, सब लोगों ने दुआ की मगर बारिश नहीं हुई, लोगों ने आप से अर्ज़ किया, के आबादी से बाहर निकल कर नमाज़े इस्तसका पढ़ो ताके अल्लाह पाक बाराने रहमत फरमाए, आप लोगों के साथ शहर से बाहर को निकले और दौरान दुआ आप ने अपनी जेब से एक कपड़ा निकाला और उस को लेकर आसमान की तरफ उठाया और कुछ पढ़ा फ़ौरन बारिश शुरू हो गई, लोग भीगते हुए अपने घर को गए,
आप से पूछा गया के ये कपड़ा कैसा था और आप ने क्या पढ़ा? आप ने फ़रमाया ये मेरी वालिदा माजिदा के दामन का टुकड़ा था और ये कपड़ा क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अता फ़रमाया था, में ने इस को अल्लाह पाक की बारगाह में वसीला बनाकर ये अर्ज़ किया ऐ अल्लाह! ये उस बुज़रुग खातून के दामन का टुकड़ा है जिस पर कभी गैर मर्द की नज़र नहीं पड़ी, इस के तुफैल बारिश नाज़िल फरमा।
वफ़ात
आप ने गियासुद्दीन बलबन के दौरे हुकूमत में 725/ हिजरी में वफ़ात पाई।
मज़ार मुबारक :
आप का मज़ार मुबारक दरगाह हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह में मस्जिद के बाएं दीवार के नीचे बराबर में है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला :-
(6) रहनुमाए माज़राते दिल्ली
(3) औलियाए दिल्ली की दरगाहें