हज़रत मौलाना इमरान रज़ा खान सिमनानी मियां कादरी बरेलवी की ज़िन्दगी

हज़रत मौलाना इमरान रज़ा खान सिमनानी मियां कादरी बरेलवी की ज़िन्दगी

विलादत

शहज़ादए मौलाना मन्नान रज़ा, नवासए हुज़ूर अमीने शरीअत, चश्मों चिरागे खानदाने आला हज़रत अश्शाह अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती इमरान रज़ा खान सिमनानी मियां मद्दा ज़िल्लुहुल आली की विलादत बसआदत 18/ अप्रेल 1983/ ईसवी को मुहल्लाह सौदागिरान बरैली शरीफ में हुई, “मुहम्मद” नाम पर अक़ीक़ा! हुआ, आप के फूफा जान मुहसिने अहले सुन्नत हज़रत शौकत हसन खान रहमतुल्लाह अलैह! ने आप का तारीखी नाम “मुहम्मद इमरान रज़ा नूरी रब्बानी” तजवीज़ फ़रमाया, और अब्बा हुज़ूर हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां कादरी! ने उर्फी नाम “सिमनानी” रखा, अवामो खवास में आप “सिमनानी मियां” के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं,

शजरए नसब

वालिद गिरामी की तरफ से शजरा यूं है: मुहम्मद इमरान रज़ा खान सिमनानी मियां बिन, हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां कादरी! बिन, मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द हज़रत इबराहीम रज़ा खान बिन, हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान बिन, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बिन, रईसुल अतकिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद नकी अली खान बिन, अल्लामा रज़ा अली खान बिन, हाफ़िज़ काज़िम अली खान बिन, मुहम्मद आज़म खान बिन, सआदत यार खान बिन, शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्ल्ह खान रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
वालिदाह मुहतरमा की जानिब से शजरा यूं है:

मुहम्मद इमरान रज़ा खान सिमनानी मियां बिन, राबियातुल अस्र सबीहा फातिमा मद्दा ज़िल्लुहा बिन्ते हुज़ूर अमीने शरीअत मुहम्मद सिब्तैन रज़ा खान बिन, उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा मुहम्मद हसनैन रज़ा खान बिन उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान बिन रईसुल अतकिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद नकी अली खान रहमतुल्लाह अलैह।

वालिद माजिद

आप के वालिद मुहतरम का नाम “हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां कादरी!” है।

तालीमों तरबियत

काशानए मुजद्दिदे आज़म के दीनी माहौल में आप की परवरिश व परदाख्त हुई, आप की रस्में बिस्मिल्लाह ख्वानी हुज़ूर ताजुश्शरिया रदियल्लाहु अन्हु ने अदा कराइ, आप ने इब्तिदाई किताबें वालिदैन करीमैन और घर के दीगर बुज़ुर्गों से पढ़ीं, उलूमे मुतादविला की तहसील जमाते ऊला से ता सामना यानि आठवीं जमात मरकज़े अहले सुन्नत जामिया नूरिया रज़विया बाकर गंज! बरैली शरीफ में की, और यहीं से दस्तारे फरागत व सनद हासिल की।

असातिज़ाए किराम

  1. अमीने शरीअत हम शबीहे गौसे आज़म अल्लामा सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह
  2. हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह
  3. मुजाहिदे अहले सुन्नत हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां कादरी! साहब क़िबला
  4. तहसीने मिल्लत मुहद्दिसे बरेलवी हज़रत अल्लामा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह
  5. उम्दतुल मुहक़्क़िक़ीन हज़रत अल्लामा मुहम्मद हनीफ रज़ा खान साहब क़िबला बरेलवी
  6. जामे माकूल व मन्क़ूल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती काज़ी शहीद आलम साहब क़िबला बरेलवी
  7. माहिरे इल्मो फन हज़रत अल्लामा अज़ीज़ुर रहमान साहब क़िबला।

खुसूसी तालीम

आप ने अपने मंझले नाना तहसीने मिल्लत मुहद्दिसे बरेलवी हज़रत अल्लामा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह से बुखारी शरीफ का दर्स लिया, और जिस वक़्त हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह बुखारी शरीफ का दर्स देते थे तो आप भी हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! से बुखारी शरीफ पढ़ते थे, साथ ही मश्हूरे ज़माना किताब “अल अशबाह वन नज़ाइर” का दर्स भी आप ने हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह से लिया।

नवाज़िशाते ताजुश्शरिया

हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह आप से बेहद प्यार फरमाते थे, जिस ज़माने में आप इब्तिदाई तालीम हासिल कर रहे थे, उस ज़माने में जब कभी हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर होते तो हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह आप से पूछते, अब क्या पढ़ रहे हो? आप जवाब देते तो हज़रत! बहुत खुश होते और दुआओं से नवाज़ते,

हस्बे मामूल एक बार हज़रत ने सवाल किया के क्या पढ़ते हो? तो आप ने जवाब दिया के हुज़ूर में “शरहे मिताआ मिल” पढ़ रहा हूँ, जब आप ने ये सुना बहुत ज़ियादा खुश हुए और बरजस्ता फ़रमाया “सिमनानी” ज़रा “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” की तरकीब करो,

आप ने बिस्मिल्लाह शरीफ की तरकीब की तो हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह ने कुछ जगह इस्लाह फ़रमाई और हौसला अफ़ज़ाई फरमाते हुए दुआओं से खूब नवाज़ा, हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह की नवाज़िशों इनायतों और शफ़्क़तों मुहब्बत का ये आलम था के जब आप बचपन के आलम में थे और हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ अदा करने के लिए आते और आप को कभी मस्जिद में मौजूद ना पाते तो हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह घर में फोन करते और फरमाते के सिमनानी को जल्द भेजो, जब आप असर की नमाज़ अदा कर ने के बाद हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में पहुंचते तो फरमाते के सिमनानी के लिए भी नाश्ता और चाय लाओ, या कभी अपनी चाय बचा कर आप को अता फरमाते और दुआओं से नवाज़ते,

एक मर्तबा का वाक़िआ है के गालिबन 2004/ ईसवी के उर्से रज़वी! के मोके पर रज़ा मस्जिद नमाज़ियों से बिलकुल भरजाती थी, तो मश्वरा ये हुआ के हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह से अर्ज़ किया, हुज़ूर नमाज़े जुमा कौन पढ़ाएगा, तो आप ने फ़रमाया के नमाज़ सिमनानी पढ़ाएगा, ये हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह की नवाज़िशात व इनायात आलिया का सिर्फ एक नमूना है, वरना हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह की करम फ़रमाईयों का ज़िक्रे जमील करने के लिए एक दफ्तर भी नाकाफी है।

इजाज़तो खिलाफत

जानशीने मुफ्तिए आज़म वारिसे उलूमे आला हज़रत हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को खिलाफ़तो इजाज़त से नवाज़ा है, और दस्तार बंदी के रूह परवर मोके पर आप के नाना जान अमीने शरीअत, पीरे तरीकत, शाने रज़वियत, मुहद्दिसे वक़्त हज़रत अल्लामा अल हाज अश्शाह सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने भी आप को खिलाफ़तो इजाज़त! अता की, और आप को अपना जुब्बा व इमामा के खिलअत फ़ाख़िराह से सरफ़राज़ किया, खुसूसियत के साथ वालिद माजिद हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने अपनी इजाज़तो खिलाफत अता फ़रमाई, जुमला औरादो आमाल और अज़कार व अशग़ाल का मजाज़ व माज़ून किया और अपना जानशीन व वली अहिद मुकर्रर फ़रमाया।

हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह! से मुहब्बत

फ़कीर बारगाहे रज़ा मुहम्मद इमरान रज़ा सिमनानी खानकाहे नूरिया रज़विया दरगाहे आला हज़रत बरैली शरीफ जानशीने मुफ्तिए आज़म वारिसे उलूमे आला हज़रत हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह! की शान में किया लिखे, जो भी लिखा जाए कम है, और जो भी लिख दूँ इससे हज़रत की तारीफों तौसीफ कर के महफूज़ कर ने के लिए और इन की याद से अपने आप को बुलंद कर ने के लिए और इन के ज़िक्र से अपने मज़मून में चार चाँद लगाने के लिए फ़कीर अपने ताया जान यानि बड़े अब्बा का ज़िक्र जमील छेड़ रहा है,

हज़रत के ज़ाते सतूदा सिफ़ात किसी तआरुफ़ की मोहताज नहीं, बल्केवो बहुत सुन्नियों रज़वियों का तआर्रुफ़ हैं, कोई कहता है के में हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह! का मुरीद हूँ, किसी की पहचान ख़लीफ़ए ताजुश्शरिया होना है, लेकिन मेरा ये कहना है के मेरे हज़रत की ज़ात से जिसे भी निस्बत हो गई वो ज़माने में मुमताज़ हो गया, ज़र्रा था आफताब हो गया, क़तरा था दरिया हो गया, इन से एक आलम रोशन व मुनव्वर हो गया,, वो जिधर जाते थे, सुन्नियत की बहारें आ जाती हैं।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत

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