हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां कादरी बरेलवी की ज़िन्दगी

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान उर्फ़ मन्नानी मियां कादरी बरेलवी की ज़िन्दगी

विलादत

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! उर्फ़ मन्नानी मियां! रज़वी कादरी बिन मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहिम रज़ा खान जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह बिन, हुज्जतुल इस्लाम मुफ़्ती हामिद रज़ा खान बिन, इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी 1/ अप्रैल 1950/ ईसवी को मुहल्लाह ख्वाजा क़ुतुब बरैली शरीफ में तवल्लुद (पैदाइश) हुए, आप मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहिम रज़ा खान जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह की आठवीं और सब से छोटी औलाद हैं, आप की वालिदा माजिदा हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की सब से बड़ी साहबज़ादी थीं।

तस्मियाँ ख्वानी

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! की जब चार या पांच साल की उमर हुई तो वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहिम रज़ा खान जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने बिस्मिल्लाह ख्वानी! की तक़रीब मुनअकिद की, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने रस्मे बिस्मिल्लाह ख्वानी अदा की।

वालिद माजिद

आप के वालिद मुहतरम का नाम “मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहिम रज़ा खान जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह” है।

तालीमों तरबियत

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने क़ुरआने करीम नाज़राह वालिद माजिद से पढ़ा, और कुछ अरसा कॉलिज में हिंदी, अंगेरजी की तालीम बा ज़रूरत इंटर तक हासिल की, उन्ही अय्याम में वालिद माजिद की ज़बान बंद हो गई, आप को वालिद माजिद के साथ रहना पड़ा, चूंके आप उनके इशारात व किनायात खूब समझते थे, इसी वजह से एक बड़ा अरसा वालिद माजिद के साथ गुज़रा, वालिद माजिद के साथ सफ़रों और पिरोगिरामो में जाना और उन्हीं के हमराह रोज़ो शब् रहना हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! का मामूल बन गया था, हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने 1970/ ईसवी में बा ज़ाब्ता “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के असातिज़ाए किराम से दर्स लेना शुरू किया, 1977/ ईसवी में “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” से फरागत हुई, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने दस्तार बंदी के मोके पर इमामा अता फरमाकर दुआ से नवाज़ा।

असातिज़ाए किराम

  1. मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहिम रज़ा खान जिलानी मियां
  2. मुहद्दिसे मन्ज़रे इस्लाम हज़रत अल्लामा एहसान अली रज़वी, सीतामढ़ी
  3. हज़रत रेहाने मिल्लत मौलाना रेहान रज़ा रहमानी मियां कादरी
  4. हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान
  5. मुहद्दिसे बरेलवी मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान
  6. हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद आरिफ रज़वी नानपारवी शैखुल हदीस “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

आप की अहम् खिदमात

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! जानशीने मुफ्तिए आज़म हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु के बिरादिरे असगर यानि सब से छोटे भाई हैं, आप ने बिरादिरे अकबर की सरपरस्ती में फरागत के बाद रज़वी दारुल इफ्ता! में नकले इफ्ता का काम अंजाम दिया,

1978/ ईसवी में मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! का मकान जिस पर किराएदार काबिज़ था, उससे खाली कराकर बिरादिरे अकबर जानशीने मुफ्तिए आज़म हिन्द रदियल्लाहु अन्हु के हवाले कर दिया, इस अहम काम में जानशीने मुफ्तिए आज़म हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु तादमे आखिर क़याम पज़ीर रहे, इस अहम काम में जानशीने मुफ्तिए आज़म हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु और उस वक़्त के खादिम और निजी सिक्रेटरी मौलाना अब्दुल नईम अज़ीज़ी भी काफी हद तक हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! के मुआविनो हमरिकाब रहे।

अल्लामा उस्ताज़े ज़मन के मकान की बाज़याफ़्त

1947/ ईसवी में मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के मंझले भाई हज़रत उस्ताज़े ज़मन अल्लामा हसन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का खानदान नीज़ दूसरे मुसलमान मुहल्लाह सौदागिरान से पुराने शहर और दूसरे मुहल्लों में चले गए थे, इस तरह इन मकानों पर गैर मुस्लिमों का कब्ज़ा हो गया, हज़रत मुफ़्ती तक़द्दुस अली खान रहमतुल्लाह अलैह! और भाइयों के मकानात भी गैर मुस्लिमीन के पास चले गए, हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! को ये सब देख कर बड़ी तकलीफें होती थीं, अब इनका दूसरा निशाना हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! के मकान की बाज़याफ़्त था, जिस में एक सिख फेमली रहती थी, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! और बुज़ुर्गाने खानदान नीज़ हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की दुआओं से हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! को इस मकान के हुसूल में भी कामयाबी मिली और कसीर रकम खर्च कर के आप ने अजदाद और बुज़ुर्गों की यादगार को बिला आखिर 1985/ ईसवी में हासिल कर ही लिया, मकान की अज़ सरे नो तामीर कर के अपनी रिहाइश गाह और जामिया नूरिया रजविया! का दफ्तर भी इसी में कायम किया और मेहमान खाना भी बनाया,

अलावा अज़ीं 1996/ ईसवी से 2000/ ईसवी तक आप ने इसी मकान से मुल्हिक दो गैर मुस्लिमो के मकानात और भी खरीद लिए, अब मज़ारे आला हज़रत के पीछे से लेकर दूसरी जानिब मकाने आला हज़रत! यानि “फाटक” (जिसमे हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह!) की रिहाइश गाह, दारुल इफ्ता! दफ्तर वगेरा हैं, के सामने सड़क तक का हिस्सा इस मकान में मिल गया, बाहरी हिस्से में हिफ्ज़ो किरात और अरबी अँगरेज़ी तालीम का बंदोबस्त भी कर दिया है, और कई तलबा भी इस में रहते हैं,
हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! की तहरीक और इन के मैदाने अमल में आने से अल्हम्दु लिल्लाह फाटक का पिछले हिस्सा जो हुज़ूर आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह! के ज़माने में ज़नान खाना था, वो भी हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह! ने गैर मुस्लिम से खाली करा लिया, नीज़ मज़ारे आला हज़रत के पीछे दो मकानात गैर मुस्लिमो से खरीद लिए, दो मकानात हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां साहब! ने गैर मुस्लिमो से खरीदे, दो मकानात हज़रत मौलाना तौसीफ रज़ा खान साहब! ने ख़रीदे, और हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! के अज़ीज़ों ने खाली कराए,

इस तरह 1947/ ईसवी से 1980/ ईसवी तक जहाँ खानकाहे आला हज़रत, रज़ा मस्जिद, और “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के आसपास मुहल्लाह सौदागिरान में सिर्फ दो ही अपने मकान थे, एक हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का, दूसरा रेहाने मिल्लत मौलाना रेहान रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का वहां अब 12, मकानों का इज़ाफ़ा हो गया अल्हम्दु लिल्लाह।

जामिया नूरिया रज़विया का क़याम

नबीरए आला हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! का ज़हन तामीरी और मुस्बत काम की तरफ माइल है, आप तखरीबी कामो से इज्तिनाब करते हैं, मुस्बत कामो के लिए, हमा वक़्त तय्यार रहना आप का एक मशगला है, आप को तकरीर से भी लगाओ है, इसी तामीरी ज़हन की बिना पर 1982/ ईसवी में मदरसा “जामिया नूरिया रज़विया” की बरैली शरीफ के मुहल्लाह बाकर गंज में बुनियाद डाली, जामिया नूरिया रज़विया के क़याम के बाद अकबरी मस्जिद बरैली से इस का दरसी इस्तिताह हुआ, तंगी की वजह से 1984/ में जामिया नूरिया रज़विया को मुहल्लाह बाकर गंज ईद गाह बरैली में मुन्तक़िल कर लिया, उर्से रज़वी! के मोके पर जामिया का संगे बुनियाद मुल्क के मशाहीर उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम के दस्ते मुबारक से रखा गया,

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! की इस तहरीक पर जनाब रईस अहमद खान नूरी बाकर गंज बरेलवी ने अपनी ज़मीन जामिया नूरिया रज़विया के लिए वक़्फ़ करदी, आज जामिया नूरिया की बुलंदो बाला इमारत आप की मेहनत व लग्न और जिद्दो जिहद की आईनादार है।

इलाहबाद बोर्ड से इल्हाक

1964/ ईसवी के बाद जामिया नूरिया रज़विया के तलबा मुंशी, मौलवी, आलिम, फ़ाज़िल, के इम्तिहानात में शिरकत करने लगे, नीज़ जामिया नूरिया रज़विया के कई असातिज़ाए किराम मुमतहिन् भी बनाए गए, 1994/ ईसवी में हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने अपनी कोशिशे जमीला से गोरमेंट उत्तरप्रदेश से जामिया नूरिया को ऐड करा लिया, और इस तरह मुदर्रिसीन कलर्क, और चपरासी की जानिब से तनख्वाहें मिलना शुरू हो गईं, ऐड के लिए 67/ मदारिस लिस्ट पर थे, हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने अपने असरात से जामिया नूरिया रज़विया के साथ मज़ीद 42/ मदारिस अहले सुन्नत को ऐड कराया ये आप का अहम कारनामा है।

बरैली शरीफ में मिस्टर नरसिम्हा राओ का आना

6/ दिसम्बर 1992/ ईसवी को कांग्रेस हुकूमत के दौरे इक्तिदार में हिंदुस्तान के अजुध्धिया शहर की कदीम तारीखी “बाबरी मस्जिद” को हिन्दू इंतिहा पसंद जमाअतों (विश्वहिंदू परिषद्, बजरंग दल, शिवसेना और आर, आर, ऐस ऐस) जुनूनी कारसीव कोने लाल किरशन ऐडवानी और हिन्दू महासभा के कारकूनान की क़ियादत में शहीद कर दिया, उस वक़्त मिस्टर नरसिम्हा राओ भारत के वज़ीरे आज़म थे, जिन की मुजरिमाना ख़ामोशी रज़ामंदी की दलील थी, इस लिए मुसलमानो का कांग्रेस हुकूमत से यकसर एतिमाद उठ गया,, कोमो मिल्लत के गैरत मंद लोग दिली नफरत करने लगे और जगह बा जगह सदाए एहतिजाज बुलंद करने लगे,

कांग्रेस हुकूमत आइंदा अपनी ज़िल्लत हज़ीमत देखते हुए तरह तरह के हथकंडे इस्तेमाल करने लगी, उसी दौरान ये नापाक मंसूबा भी बनाया गया के हिंदुस्तान में मुसलमानो की अक्सरियत सुन्नी बरेलवियों की है, क्यों ना शहरे बरैली जा कर आला हज़रत! के मज़ार मुबारक पर चादर पोशी की जाए, ताके मुसलमानो का एक बड़ा तबका कांग्रेस हुकूमत के ज़ालिमाना कारनामे को फरामोश कर के इस के हमदर्दी का इज़हार करने लगें,लेकिन वाहरे इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के जियाले सपूत, सरफ़रोश मुजाहिद पासबान कोमो मिल्लत, हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! (सदर ऑल इण्डिया मुस्लिम ऐक्शन कमिटी) आप की जुर्रत व हिम्मत और मिल्ली क़ियादत को हज़ार बार सलाम! आप ने जो तारिख साज़ बेमिसाल कारनामा अंजाम दिया वो आप ही का हिस्सा था,

किस्सा ये है के जब मिस्टर नरसिम्हा राऊ 26/ जुलाई 1995/ ईसवी को बरैली शरीफ सर्किट हाऊस आया, और पिरोगराम के मुताबिक मज़ारे आला हज़रत! पर चादर पोशी के लिए हाज़िर होना चाहा तो हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने खानदान के अफ़राद के साथ पहले तो मज़ार मुबारक के दरवाज़े में ताला लगा दिया, उस के बाद दीवानो के जम्मे ग़फ़ीर के साथ मुहल्लाह सौदागिरान को जाम कर दिया और सब बा आवाज़ बुलंद “लाहौल शरीफ” पढ़ने लगै, ताके शैतान भाग जाए, इसी दरमियान हुकूमत के अमले और मिडिया के अफ़राद आए और आप से तबादिलाए ख्याल करने लगे, शेरे रज़ा ने वाज़ेह लफ़्ज़ों में जवाब दिया के हम किसी भी सूरत में बाबरी मस्जिद! के कातिल को मज़ारे आला हज़रत पर हाज़िर नहीं होने देंगें चुनांचे “नरसिम्हा राऊ वापस जाओ” की सदा गूंज ने लगी, और नरसिम्हा राऊ बगैर चादर पोशी किए चेहरे पर ज़िल्लत व रुस्वाई की काली सियाही डाले हुए दिल्ली वापस हो गया,

“बड़े बे आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले” उधर वो नामुराद वापस हुआ, और इधर नवासए हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! के इस जुर्रत मंदाना अक़दाम पर पाको हिन्द के अरबाबे इल्मो दानिश और अखबारों रसाइल ने खूब मुबारक बादियाँ पेश फरमाएं।

औलादे अमजाद

अल्लाह पाक ने आप को दो साहबज़ादे और तीन साहबज़ादियाँ अता की हैं, साहबज़ादों के नाम ये हैं:

  1. मौलाना इमरान रज़ा खान सामनानी मियां
  2. मौलाना हन्नान रज़ा खान हन्नानी मियां

बैअतो खिलाफत

हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! 1977/ ईसवी को अजमेर शरीफ में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! से दाखिले सिलसिला हुए, और 1977/ में दस्तार बंदी के मोके पर हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने इजाज़तो खिलाफत अता की, हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! ने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! के मुतअल्लिक़ ये चंद जुमले इरशाद फरमाए:

हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! में ख़ास बात ये थी के बुरे से बुरे आदमी को बिठाने से नफरत नहीं करते, लोग कहते के ये कुंद ज़हन तलबा हैं, मुफ्तिए आज़म हिन्द फरमाते थे के पथ्थरों को पाल कर नगीना निकाला जाता है, आप अच्छे बुरे को नवाज़ते थे, और काम के आदमियों की कद्र करते थे,


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हज़रत मौलाना मुहम्मद मन्नान रज़ा खान कादरी साहब क़िबला! की सेहतो तंदुरुस्ती के साथ उमर दराज़ फरमाए अमीन।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत

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