ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान क़ादरी बरेलवी की ज़िन्दगी

ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान क़ादरी बरेलवी की ज़िन्दगी (पार्ट- 1)

बा शरआ कर बा शरआ रख बा शरआ हम को उठा
हज़रते “ताजुश्शरिया” बा सफा के वास्ते
ऐ खुदा मसलके अहमद रज़ा पे रख सदा
मेरे मुर्शिद सय्यदी अख्तर रज़ा के वास्ते

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मुबारक “काशानए रज़ा” मोहल्ला सौदागिरान ज़िला बरैली शरीफ यूपी इण्डिया में 14, ज़ी काइदा 1363, हिजरी/ मुताबिक नवम्बर 1962, ईस्वी बरोज़ मंगल, पासपोर्ट के मुताबिक विलादत की शम्सी तारीख एक फ़रवरी 1943, ईस्वी है, इस लेहाज़ से तारीख कमरी 25, मुहर्रमुल हराम 1362, हिजरी बरोज़ पीर है, बाज़ साहिबान ने आप की तारीखे विलादत 24, ज़ी काइदा 1362, हिजरी/ मुताबिक नवम्बर 1943, ईस्वी और 26, मुहर्रमुल हराम 1362, हिजरी/ 2, फ़रवरी 1943, ईस्वी और 25, सफर 1361 हिजरी/ मुताबिक़ 1942, ईस्वी लिखा है और यही मुअख़िरुज़ ज़िक्र बेहतर है।

नाम व नसब

आप हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द अल्लामा मुफ़्ती “इब्राहिम रज़ा” खान उर्फ़ जिलानी मियां कुद्दीसा सिररुहु! के फ़रज़न्दे अर्जमन्द हैं, खानदान के दस्तूर के मुताबिक आप का पैदाइशी नाम “मुहम्मद” रखा गया, चूंके वालिद माजिद का नाम मुहम्मद इब्राहिम रज़ा! है इस निस्बत से आप का नाम “इस्माईल रज़ा” तजवीज़ हुआ, उर्फी नाम “अख्तर रज़ा” है और इसी नाम से मशहूर हैं, “अख्तर” तखल्लुस है,

कादरी मशरबन! और अज़हरी! उलमन नाम के आगे तहरीर करते हैं, आप अफ़्ग़ानियुल नस्ल हैं, शजराए पिदरी व मादरी से नजीबुत तरफ़ैन बड़हेचि पठान! हैं, शजराए पिदरी (बाप की तरफ से) ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा रहमतुल्लाह अलैह, बिन मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मुहम्मद इब्राहिम रज़ा रहमतुल्लाह अलैह, इब्ने हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद हामिद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह, इब्ने इमामे अहले सुन्नत आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु, मुजद्दिदे आज़म मुफ़्ती मुहम्मद अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह, इब्ने रईसुल मुता कल्लिमीन ख़ातिमुल मुहक़्क़िक़ीन मुफ़्ती मुहम्मद नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह,

शजराए मादरी ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा इब्ने, निगार फातिमा, उर्फ़ सरकार बेगम बिन्ते, मुफ्तिए आज़म हिन्द मुफ़्ती मुहम्मद मुस्तफा रज़ा रहमतुल्लाह अलैह, मुजद्दिदे आज़म मुफ़्ती मुहम्मद अहमद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह,
“मुहम्मद” नाम पर आप का अक़ीक़ा! हुआ, वालिदैन और नानी व नाना जान के सायाए आतिफ़त में परवरिश पाई, हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की किताबे ज़िन्दगी ऐसे माहौल में और ऐसी तहज़ीब व तमद्दुन में खुली जो हर तरफ खालिस इस्लामी शरई था, ददिहाल, व ननिहाल दोनों खानवादह ही में है, और हुस्ने इत्तिफाक के सुसराल! भी खानदान ही में थी, इस लिए हज़रत की निगाह ने हर वक़्त वो माहौल देखा जो के दाईराए शरीअत में परवान चढ़ता है, इस का असर हज़रत की ज़ातो शख्सीयत ने खूब कबूल किया और खुद को शरीअते इस्लामी के अंदर ढाल लिया और ज़बरदस्त मुबल्लिगे इस्लाम बनकर उभरे।

तालीमों तरबियत

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! के वालिद माजिद ने रूहानी व जिस्मानी, ज़ाहिरी व बातनि हर तरह की तरबियत फ़रमाई और शानदार तरबियत का इंतिज़ाम फ़रमाया, बड़ो नाज़ो नेअम! से पाला और तमाम ज़रूरतों को पूरा फ़रमाया, जब आप 4/ साल, 4/ माह 4/ दिन के हुए तो वालिद माजिद ने “तस्मिया ख्वानी” का एहतिमाम किया, “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के तलबा व मुदर्रिसीन की दावत फ़रमाई अज़ीज़ो अक़ारिब व मुअज़्ज़िज़ीन शहर को भी मदऊ फ़रमाया, मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मुहम्मद इब्राहिम रज़ा रहमतुल्लाह अलैह, ने अपने खुस्र मुहतरम व चचा जान जानशीने आला हज़रत हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में अर्ज़ किया, के “अख्तर मियां” की “तस्मिया ख्वानी” की तक़रीब है हुज़ूर शिरकत फरमाएं और तस्मियाँ ख्वानी भी कराएं, चुनांचे “तस्मिया ख्वानी” हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने करवाई,

आप ने कुरआन शरीफ अपनी मुश्फिका वालिदा माजिदा “निगार फातिमा” से पढ़ा, और इब्तिदाई कुतब वालिद माजिद ने पढ़ाई, इस के बाद “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दाखिला करा दिया नहो मीर, व मीज़ान व मुनशाअब, वगेरा से हिदाया आखरैंन तक की किताबें “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” के कोहना मश्क असातिज़ाए किराम से पढ़ीं, हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने फ़ारसी की इब्दिताई क़ुतुब, पहली फ़ारसी दूसरी फ़ारसी, गुलज़ारे दबिस्ताँ, गुलिस्तां बूस्तां, मन्ज़रे इस्लाम के उस्ताज़ हाफ़िज़ इनामुल्लाह खान हामिदी बरेलवी से पड़ीं 1952, ईस्वी में एफ, आर, इस्लामिया इंटर कॉलिज में दाखिला लिया, जहाँ पर हिंदी और अंग्रेजी की तालीम हासिल की,

इस सिलसिले में तीन अहम शख्सीयतों के तअस्सुरात पेश करते हैं: इमामे इल्मो फन हज़रत ख्वाजा मुज़फ्फर हुसैन कुद्दीसा सिररुहु साबिक शैखुल हदीस दारुल उलूम चिरा मुहम्मद पुर! फैज़ाबाद यूपी, फरमाते हैं: “हुज़ूर अज़हरी मियां रहमतुल्लाह अलैह को में ने तालिबे इल्मी के ज़माने में देखा मुताला के बेहद शौकीन हत्ता के कभी कभार मस्जिद में आते तो देखता के रास्ता चलते जहाँ मौका मिलता किताब खोल कर पढ़ने लगते”,

इसी तरह हज़रत मुफ़्ती गुलाम मुज्तबा अशरफी रहमतुल्लाह अलैह साबिक शैखुल हदीस दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम फरमाते हैं के: हज़रत ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह को किताबों से बहुत शग़फ़ है, ज़माना तालिबे इल्मी से ही नई नई किताब पढ़ते और अब में देख रहा हूँ वो शोक दिन रात चोगना यानि बढ़ता जा रहा है, उम्दतुल मुहक़्क़िक़ीन हज़रत अल्लामा क़ाज़ी मुफ़्ती अब्दुर रहीम बस्तवी रहमतुल्लाह अलैह तो हमेशा आप के मुताला और क़ुव्वते हाफ़िज़ा का ज़िक्र करते थे, बाज़ दफा किसी किसी वाकिए का ज़िक्र भी फरमाते थे।

“दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दाखिला

फज़लुर रहमान इस्लामिया इंटर कॉलिज में दाखिला लिया, जहाँ पर आप ने हिंदी और अंग्रेजी संस्कीरत वगेरा में तालीम हासिल की, आठवीं किलास पास करने के बाद “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दाखिला हुए, दौरान तालीम ही आप के अंदर अंग्रेज़ी, अरबी, बोलने की सलाहीयत पैदा हो गई थी, फ़ज़ीलतुष शैख़ मौलाना मुहम्मद अबदुत तौवाब मिसरी! जो के मन्ज़रे इस्लाम! के उस्ताज़ थे, अरबी अदब की तालीम दिया करते थे, हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अलस सुबह उन्हें हिंदी, उर्दू, और इंग्लिश के अखबारात को अरबी में तर्जुमा कर के सुनाया करते थे और आप उन से बिला तकल्लुफ गुफ्तुगू कर लिया करते थे, इन्हीं सलाहियतों को देखते हुए शैख़ मिसरी! ने कहा के इन्हें “जामिया अज़हर काहिरा मिरस” बा गर्ज़ आला तालीम के लिए भेज दिया जाए।

चुनांचे आप के दादा हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम के मुरीदे खास जनाब निसार अहमद हामिदी, सुल्तान पूरी ने पूरी कोशिश की, वालिद की ख्वाइश और लोगों के इसरार पर आप 1963, ईस्वी में दुनिया की मशहूर यूनिवर्सिटी “दारुल उलूम जामिया अज़हर मिस्र” तशरीफ़ ले गए, वहां आप ने कुल्लिया उसुलिद्दीन! एम्, ऐ! में दाखिला लिया मुसलसल तीन सालों तक उसूले कुरआन व अहादीस पर रिसर्च फ़रमाई और अदब को मज़बूत किया फन्ने तफ़सीरों हदीस के माहिर असातिज़ाए किराम से इक्तिसाबे इल्म किया।

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बचपन ही से ज़हानत व फतानात, और क़ुव्वते हाफ़िज़ा के मालिक थे, और अरबी अदब के दिलदादा थे, जामिया अज़हर मिस्र! में दाखिले के बाद आप की जामिया के असा तिज़ाह और तलबा से गुफ्तुगू हुई तो आप की बे तकल्लुफ फसीहो बलीग़ अरबी गुफ्तुगू सुन कर महवे हैरत हो जाते थे और कहते थे के: एक अजमीउल नस्ल हिंदुस्तानी, अरबिउल नस्ल अहले इल्म हज़रात से गुफ्तुगू करने में कोई तकलीफ महसूस नहीं करता, वाकई काबिले हैरत बात है,

जामिया अज़हर मिस्र! के “शुआबए कुल्लिया उसुलिद्दी” का सालाना इम्तिहान अगरचे तहरीरी होता था, मगर मालूमाती आम्मा “जर्नल नॉलिज” का इम्तिहान तकरीरी होता था, चुनांचे जामिया अज़हर मिस्र! के सालाना इम्तिहान के मोके पर जब हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का इम्तिहान हुआ तो मुम्तहिंन (इम्तिहान लेने वाला) ने आप की जमात के तलबा से इल्मे कलाम के चंद सवालात किए, पूरी जमात में से कोई एक भी तालिबे इल्म मुम्तहिन के सवालात के सही जवाब ना दे सका, मुम्तहिन ने रूए सुखन आप की तरफ करते हुए सवालात को दुहराया हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने इन सवालात का ऐसा शाफी व काफी जवाब दिया के मुम्तहिन तअज्जुब की निगाह से देखते हुए कहने लगा के: आप तो हदीस व उसूले हदीस पढ़ते हैं इल्मे कलाम में कैसे जवाब दे दिया आप ने इल्मे कलाम कहाँ पढ़ा? हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने जवाब में कहा के में ने “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम बरैली में चंद इब्तिदाई किताबें इल्मे कलम की पढ़ीं थीं मुझे मुताले का बहुत शोक था जिस की वजह से में ने आप के सवालात के जवाब दिए, अगर इससे भी मुश्किल सवाल होता तो भी में सही जवाब देता आप के जवाब से मसरूर हो कर मुम्तहिन जामिया अज़हर मिस्र! ने आप को जमात किलास में अव्वल पोज़िशन दी, और आप अव्वल नंबरों से पास हुए।

जामिया अज़हर मिस्र! से फरागत

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी 1963, में जामिया अज़हर मिस्र! तशरीफ़ ले गए, और वहां तीन साल मुसलसल रहकर हुसूले इल्म में मशगूल रहे दूसरे साल के सालाना इम्तिहान में आप ने शिरकत की अल्लाह पाक ने अपने फ़ज़्लो करम से पूरे जामिया अज़हर मिस्र! में इम्तिहान में आला! कामयाबी अता फ़रमाई इस कामयाबी पर एडीटर माह नामा आला हज़रत बरैली “कवाइफ़ असताना रज़विया” के उन्वान से फरमाते हैं के:

नबीरए आला हज़रत व हुज्जतुल इस्लाम और हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म, के फ़रज़न्दे दिल बंद, हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, ने अरबी में बी ऐ, की सनद फरागत निहायत नुमाया और मुमताज़ हैसियत से हासिल की हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ना सिर्फ जामिया अज़हर मिस्र! में बल्के पूरे मिस्र में अव्वल नंबरों से पास हुए अल्लाह पाक उन को उससे ज़ियादा बेष अज़ बेष कामयाबी अता फरमाए, और उन्हें खिदमात का अहिल बनाए और वो सही माना में इमामे अहले सुन्नत आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के जानशीन कह जाएं।
हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की 1966, ईस्वी में जामिया अज़हर मिस्र! से फरागत हुई तो अव्वल पोज़ीशन हासिल करने की वजह से जामिया अज़हर मिस्र! की मुक्तदर शख्सीयात ने आप को बतौरे इनआम जामिया अज़हर मिस्र! “अज़हरी अवार्ड” पेश किया और साथ ही, “सनादे फरागत व तहसील उलूमे इस्लामिया” से भी नवाज़े गए।

जामिया अज़हर मिस्र! से बरैली तशरीफ़ आवरी

जब हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जामिया अज़हर मिस्र! से तालीम मुकम्मल कर के बरैली शरीफ तशरीफ़ लाए तो उन की कैफियत अजीब व गरीब थी दरअसल पहले जामिया अज़हर मिस्र! जाना बहुत मुश्किल मरहला था मुसलसल क़याम की वजह से अहले खानदान से मुलाकात व मुसाफा ना मुमकिन था, बरैली आमद की खबर से खुशियों की लहार दौड़ गई, जनाब उम्मीद रज़वी बरेलवी तहरीर फरमाते हैं के:

गुलिस्ताने रज़वियत के महकते फूल, चमानिस्ताने आला हज़रत के गुले खुश रंग जनाब मौलाना मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह इब्ने हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह एक अरसा दराज़ के बाद जामिया अज़हर मिस्र! से फारिगुत तहसील हो कर 17, नवम्बर 1966, ईस्वी 1386, हिजरी की सुबह को बहार अफ़ज़ाए गुल शान बरैली हुए, बरैली के जक्शन स्टेशन पर मुतअल्लिक़ीन व मुतावस्सिलीन, व अहले खानदान, उल्माए किराम व तलबाए दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम के अलावा बे शुमार मोतक़िदीन हज़रात ने, जिन में बाहर और कानपुर वगेरा के अहबाब भी मौजूद थे, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की सरपस्ती में शानदार इस्तकबाल किया, और साहबज़ादा मौसूफ़ को खुश रंग फूलूँ के गजरों और हारों की पेश कश से अपने वालिहाना जज़्बात व खुलूस और अकीदत का इज़हार किया, इदारा मौलाना अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह और मुतावस्सिलीन को उस का कामयाब वापसी पर हदियाए तबरीक व तहनीयत पेश करता है, और दुआ करता है के अल्लाह पाक बा तुफ़ैले अपने हबीब हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, इन के आबाए किराम ख़ुसूसन आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का सच्चा सही वारिस व जानशीन बनाए,
हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के ख़ादिमें ख़ास अल हाज मुहम्मद नासिर रज़वी बरेलवी के बकौल के: आप को लेने के लिए हज़रत बा ज़ाते खुद बा नफ़्से नफीस तशरीफ़ ले गए, और ट्रेन का बे ताबाना इन्तिज़ार फरमाते रहे, जैसे ही, ट्रेन पलेट फार्म पर पहुंची, सब से पहले हज़रत! ने गले लगाया पेशानी चूमी! और बहुत दुआएं दीं, और फ़रमाया के कुछ लोग गए थे मगर बदल कर आए मगर मेरे बच्चे पर जामिया का तहज़ीब का कुछ असर नहीं हुआ माशा अल्लाह।

आप का अंदाज़े तरबियत

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह! ने आप की नशो नुमा (परवरिश) बड़े नाज़ो नेअम और खुसूसी एहति माम के साथ की, दौरान तालिबे इल्मी आप को तकरीरों वाइज़ की तरबीयत देते थे एक बार वालिद माजिद ने आप को करीब बुला कर बिठाया और फ़रमाया के कल से तलबाए “मन्ज़रे इस्लाम” को “सैफुल जब्बार” “मुसन्निफ़ सैफ़ुल्लाहुल मसलूल हज़रत अल्लामा शाह फ़ज़्ले रसूल उस्मानी बदायूनी सुनाया करोगे, आप ने अर्ज़ किया के अब्बा हुज़ूर! अभी मेरी उर्दू भी अच्छी नहीं है, फ़रमाया सब ठीक हो जाएगी, ये काम तुम्हारे ज़िम्मे किया जाता है आप ने दूसरे दिन से हम दरस तलबा को जमा किया और खानकाहे आलिया रज़विया की छत पर बैठ कर “सैफुल जब्बार” का दरस शुरू कर दिया इस तरह मुतअद्दिद बार “सैफुल जब्बार” का दरस दिया और मुताला किया, वालिद माजिद के इससे कई मक़ासिद पोशीदा थे, एक तो ये के उर्दू इबारत ख्वानी बेहतर हो जाएगी, दूसरी अक़ाइद अहले सुन्नत व जमात की खूब जानकारी हासिल होगी, तीसरी वजह ये थी के तकरीरों खिताबत करने में तकल्लुफ और झिझक खत्म हो जाएगी।

दौराने तालीम वालिद माजिद का इन्तिकाल

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जब जामिया अज़हर मिस्र! में तालीमों तरबियत हासिल कर रहे थे, उसी दौरान आप के वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह का 60, साल की उमर में 11, सफारुल मुज़फ्फर 1385, हिजरी मुताबिक 12, जून 1965, ईस्वी को इन्तिकाल हो गया, इन्तिकाल की खबर पहुंचते ही आप के क्लब पर गहरा सदमा पंहुचा, आप के हम दर्स मौलाना शमीम अशरफ अज़हरी साउथ अफ्रीका ने आप के बिरादरे अकबर मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह को ताज़ियति मकतूब लिखा, और आप की कैफियत तहरीर की है, इससे बा खूबी अंदाज़ा होता है के हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने एक तवील खत बड़े भाई के नाम तहरीर किया और वालिद साहब के इन्तिकाल की तफ्सीलात मालूम की और एक ताज़ियति नज़्म भी तहरीर फ़रमाई ये तमाम चीज़ें “मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी के पास महफूज़ हैं:

किस के गम में हाए तड़पाता है दिल
और कुछ ज़ियादा उमण्ड आता है दिल
हाए दिल का आसरा ही चल बसा
टुकड़े टुकड़े अब हुआ जाता है दिल
अपने अख्तर पे इनायत कीजिए
मेरे मौला किस को बहकाता है दिल

असातिज़ाए किराम

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने जिन असातिज़ाए किराम से इक्तिसाबे इल्म किया और “ताजुश्शरिया, “मुफ्तिए आज़म, “काज़ियुल कुज़्ज़ात,” जैसे मुअल्ला अल्काबात से मुलक्कब हुए वो आफ़ताबे इल्मो फ़ज़्ल मुन्दर्जा ज़ैल हैं:

(1) हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह, बानी दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम
मस्जिद बीबी जी बरैली शरीफ,
(2) वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह,
मोहतमिम दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम बरैली शरीफ,
(3) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अफज़ल हुसैन मूंगिरि सुम्मा पाकिस्तानी, शैखुल हदीस दारुल उलूम
मन्ज़रे इस्लाम बरैली शरीफ,
(4) हज़रत वालिदा माजिदा निगार फातिमा उर्फ़ सरकार बेगम, मुबल्लिगाए इस्लाम बरैली शरीफ,
(5) हज़रत मौलाना शैख़ मुहम्मद समाही शैखुल हदीस वत तफ़्सीर, दारुल उलूम जामिया अज़हर मिस्र!,
(6) हज़रत अल्लामा मौलाना शैख़ अब्दुल गफ्फार उस्ताज़ुल हदीस उस्ताज़ दारुल उलूम जामिया अज़हर मिस्र!,
(7) हज़रत अल्लामा मौलाना अबदुत तउवाब मिसरी, शैखुल अदब, दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम बरैली शरीफ,
(8) सदरुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान, साबिक सदरुल मुदर्रिसीन व शैखुल हदीस
जामियातुर रज़ा मथरापुर बरैली शरीफ,
(9) हज़रत अल्लामा मुहम्मद अहमद जहांगीर खां आज़मी, उस्ताज़ व मुफ़्ती दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम बरैली
शरीफ,
(10) हज़रत मौलाना हाफ़िज़ मुहम्मद इनामुल्लाह खां तस्नीम हामिदी बरैली शरीफ ।
हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के मज़कूरा बाला असातिज़ा! की फहरिस्त नाकिस है, इस में उन तमाम असातिज़ा का ज़िक्र नहीं है जो “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में उस्ताज़ और जामिया अज़हर मिस्र! में हज़रत के उस्ताज़ रहे और “बरैली इस्लामिया इंटर कॉलिज” के शोअबा असरियात के टीचर्स रहे, हाँ ये उनकी फहरिस्त ज़रूर कही जा सकती है जिन से हमारे मुरशिद ने बहुत ज़ियादा इस्तिफ़ादा किया है ।

हज़रत ताजुश्शरिया रहिमहुल्लाह और उलूमो फुनून की महारत

हज़रत ताजुश्शरिया रहिमहुल्लाह मुन्दर्जा ज़ैल उलूमो फुनून में महारा रखते थे: (1) इल्मे कुरआन, (2) उसूले तफ़्सीर, (3) इल्मे हदीस, (4) उसूले हदीस, (5) असमाउर रिजाल, (6) फ़िक्हा हनफ़ी, (7) फ़िक़्ह मज़हबे अरबा, (8) उसूले फ़िक़्ह, (9) इल्मे कलाम, (10) इल्मे सर्फ़, (11) इल्मे नहो, (12) इल्मे मुआनी, (13) इल्मे बदई, (14) इल्मे बयान, (15) इल्मे मंतिक, (16) इल्मे फलसफा कदीम व जदीद, (17) इल्मे मुनाज़िरह, (18) इल्मे हिसाब, (19) इल्मे हय्यत, (20) इल्मे तौकीत, (इल्मे तारीख, (21) इल्मे तसव्वुफ़, (22) इल्मे सुलूक, (23) इल्मे जफ़र, (24) इल्मे फ़राइज़, (25) इल्मे तजवीदो किरात।

हज़रत ताजुश्शरिया रहिमहुल्लाह कराते अशरा! के माहिर हैं, तिलावते कुरआन मिसरी लहजे में ला जवाब करते हैं, और कई ज़बानो में महारत रखते हैं, अरबी, फ़ारसी, अंगेरजी, उर्दू में तो आप के अदबी शाह पारे हैं, इस के अलावा हिंदी, संस्किरत, मेम्नि, गुजराती, पंजाबी बंगगाली, मराठी, तेलगू, कन नड़, मलयालम, भोजपुरी, बोलते और समझते हैं, हज़रत इस्लाम की तरवीजो इशाअत और रद्दे बिदआत व मुन्किरात में ऊंचा मकाम रखते हैं जिस मसले की तहक़ीक़ रखते हैं, जिस मोज़ू और मसले पर कलम उठाते हैं बे तकल्लुफ लिखते चले जाते हैं, जिस मसले की तहक़ीक़ करते हैं दलाइल के अम्बार लगा देते हैं, “इमाम अहमद रज़ा कोफिरेन्स” 1425, हिजरी में मुहद्दिसे कबीर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती ज़ियाउल मुस्तफा अमजदी रज़वी मद्दा ज़िल्लाहुल आली, ने अपनी तकरीर के दौरान कहा के “अल्लामा अज़हरी ताजुश्शरिया” के कलम से निकले हुए फतावा के मुताला से ऐसा लगता है के हम आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु! की तहरीर पढ़ रहे हैं, आप की तहरीरों में दलाइल और हवालाजात की भरमार से यही ज़ाहिर होता है।

दरसो तदरीस

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को 1967, ईस्वी में “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दर्स व तदरीस देने के लिए पेश काश की गई आप ने इस दावत को कबूल किया, 1967, ईस्वी से तदरीस के मसनद पर फ़ाइज़ हो गए हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के बड़े भाई मौलाना रेहान रज़ा रहमानी मियां बरेलवी ने 1978, में “सदरुल मुदर्रिसीन” के आला उहदे पर तक़र्रुर किया, और इस उहदे के साथ, रज़वी दारुल इफ्ता के “नाइब मुफ़्ती” भी रहे आप ने अपने अहिद में तालीमी निज़ाम की बेहतरीन, असातिज़ाए किराम तलबा से हुस्ने सुलूक, दर्स व तदरीस, में मेहनते शाक्का, मदरसे का निज़ाम, आला ज़हन व फ़िक्र के साथ करते रहे और मदरसे को बामे उरूज तक पहुंचाया, दरसो तदरीस का सिलसिला मुसलसल बारह साल तक चलता रहा,

हिंदुस्तान गीर तब्लीगी दौरे की वजह से ये सिलसिला कुछ अय्याम के लिए मुनक़ता हो गया, कुछ ही दिनों बाद अपने दौलत कदे पर दरसे कुरआन का सिलसिला शुरू किया, जिस में “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम””दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम” और जामिया नूरिया रज़विया के तलबा कसरत से शिरकत करने लगे 1407, हिजरी और 1408, हिजरी को “मदरसा अल जामियातुल इस्लामिया कदीम रामपुर, में खत्म बुखारी शरीफ कराया, 1408, हिजरी “जामिया फ़ारूकिया भोजपुर ज़िला मुरादाबाद में बुखारी शरीफ का इफ्तिताह किया, 1409, हिजरी “दारुल उलूम अमजदिया कराची पाकिस्तान, में बुखारी शरीफ का इफ्तिताह फ़रमाया, और ज़िल हिज्जा 1409, हिजरी को “अल जामियातुल कादिरिया” रिछा बरैली शरीफ में शरह वकाय! का तवील सबक पढ़ाया, अब तक मुल्क व बैरूने ममालिक में ना जाने कितने मदारिस व जामिआत में दर्स बुखारी शरीफ दिया है, जामिया फ़ारूकिया बनारस में बुखारी शरीफ! के मोके पर साहिबे बुखारी और आखरी हदीस पढ़ाई ढाई घंटा तकरीर फ़रमाई।

खानदाने रज़ा की फतवा नवेसी

खानदाने इमाम अहमद रज़ा कादरी फाज़ले बरेलवी की मुद्दते फतवा नवेसी का मुन्दर्जा ज़ैल ईमान और यकीन को रोशन करते है, मुजाहिदी जंगगे आज़ादी इमामुल उलमा हज़रत मौलाना रज़ा अली खां बरेलवी की फतवा नवेसी का आगाज़ 1246, हिजरी/ 1831, ईस्वी अंजाम 1282, हिजरी, इमाम अहमद रज़ा खां आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की फतवा नवेसी का आगाज़ 1286, हिजरी/ 1869, ईस्वी, अंजाम 1340, हिजरी/ 1821, ईस्वी, हज़रत अल्लामा शाह मुफ़्ती हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! की फतवा नवेसी का आगाज़ 1312, हिजरी/ 1895, ईस्वी, अंजाम 1362, हिजरी/ 1942, ईस्वी, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की फतवा नवेसी का आगाज़ 1338, हिजरी/ 1990, ईस्वी, अंजाम 1981, ईस्वी/ 1402, हिजरी,

बी हम्दिहि तआला ये सिलसिला जिस की मुद्दत 1428, हिजरी 2007, तक 181, साल होते है, और हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी भी खानकाहे आलिया कादरिया, बरकातिया, रज़विया, सौदागिरान बरैली शरीफ 1967, से फतवा नवेसी की खिदमात अंजाम दे रहे हैं,

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी दौराने दरसो तदरीस हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! और हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद अफज़ल हुसैन रज़वी मूंगिरि सुम्मा पाकिस्तान रहमतुल्लाह अलैह की ज़ेरे निगरानी फतावा लिखते रहे, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! के पास फतावा की कसरत की वजह से कई मुफ़्ती काम करते हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: “अख्तर मियां” अब घर में बैठने का वक़्त नहीं ये लोग जिन की भीड़ लगी हुई है, सुकून से बैठने नहीं देते, अब तुम इस “फतवा नवेसी” के काम को अंजाम दो “दारुल इफ्ता” तुम्हारे सुपुर्द करता हूँ, मोजूद लोगों से मुख़ातब हो कर हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: आप लोग अब “अख्तर मियां” से रुजू करें, उन्हीं को मेरा काइम मकाम और जानशीन जाने, उसी दौरान से लोगों का रुझान हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की तरफ हो गया, इल्मी मशागिल फ़िक़्ही बारीकियां, फतावा! के इजरा और इशाअते इस्लामो सुन्नियत के लिए दूर दराज़ मक़ामात का सफर और मुख्तलिफ इजलास की सदारत के लिए, दावतों का अम्बार लगने लगा।

फतवा नवेसी का आगाज़

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को अल्लाह पाक ने वदीअत के तौर पर इल्मी व फ़िक़्ही सलाहियतों और जुज़ियात फ़िक्हीया पर कामिल दस्तरस, इल्मे कुरआन व हदीस पर मुकम्मल इदराक अता फ़रमाया, आप ने सब से पहले फतवा 1966, ईस्वी 1386, हिजरी में तहरीर फरमा कर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद अफज़ल हुसैन रज़वी मूंगिरि सुम्मा पाकिस्तान रहमतुल्लाह अलैह! “सदर दारुल इफ्ता मन्ज़रे इस्लाम” को दिखया आप ने फ़रमाया के अब मेने देख लिया है अपने नाना मुहतरम को देखा दीजिये, फिर आप ने अपने नाना जान हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया, हज़रत ने मुलाहिज़ा फरमा कर आप को दादो तहसीन से नवाज़ा, हौसला अफ़ज़ाई की के “दारुल इफ्ता” में आ कर फतवा लिखा करो, और मुझे दिखाया करो, इस से पहले फतवे में सवालात के शाफी व काफी जवाबात दिए, ये इस्तिफता मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से आया था, जिस में तलाक, निकाह, मीरास, से मुतअल्लिक़ मसाइले शर अय्या दरयाफ्त किए गए थे, आप ने तफ्सील से दलाइलो बराहीन के साथ फतवे को मुज़य्यन कर के उस्तादे मुहतरम नाना जान से दादो तहसीन हस्सिल की।

नबीरए उस्ताज़े ज़मन हज़रत मौलाना मुफ़्ती हबीब रज़ा खां बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं के: कभी कभी नागा हो जाता तो हज़रत की अहलिया मुहतरमा पीरानी अम्मा साहिबा दरयाफ्त फ़रमातीं के आज “अख्तर मियां” नहीं आए हैं, उन से कहो के रोज़ाना आया करें, हज़रत उन को बहुत पसंद फरमाते हैं,

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी भी फतवा की इस्लाह के लिए हाज़िरे खिदमत होते तो हज़रत आप को अपने करीब बिठाते, फतावा मुलाहिज़ा फरमाते और ज़रूरत के तहत कुछ इज़ाफ़ा तरमीम व तब्दील फरमा कर दस्तखत फरमा देते, ये मामूल रहा, और हज़रत ने अय्यामे अलालत दफ्तरी कामो, “दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम! और सनद खिलाफत व इजाज़त पर दस्तखत करने और मुहर की तमाम तर ज़िम्मे दारियाँ आप के सुपुर्द फरमा दीं, जिस को आप ने बा हुस्ने खूबी अंजाम दिया आप खुद अपने फतवा नवेसी की इब्तिदा यूं तहरीर फरमाते: में बचपन ही से हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह से दाखिले सिलसिला हो गया हूँ जामिया अज़हर मिस्र! से वापसी के बाद में में ने अपनी दिल चस्पी की बिना पर फतवा का काम शुरू किया, शुरू शुरू में में हज़रत मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन मूंगिरि सुम्मा पाकिस्तान रहमतुल्लाह अलैह और दूसरे मुफ्तियाने किराम की निगरानी में ये काम करता रहा, और कभी कभी हज़रत की खिदमत में हाज़िर हो कर फतवा दिखाया करता था, कुछ दिनों के बाद इस काम में मेरी दिल चस्पी ज़ियादा बढ़ गई, और फिर में मुस्तकिल हज़रत कि खिदमत में हाज़िर होने लगा, हज़रत! की तवज्जुह से मुख़्तसर मुद्दत में इस काम में मुझे वो फैज़ हासिल हुआ के जो किसी के पास मुद्दतों बैठने से भी ना होता।

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के में ने “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम में पढ़ा और पढ़ाया: जामिया अज़हर मिस्र! में भी पढ़ा, शुरू से ही मुझे मुताला का बहुत शोक था, अपनी दरसी किताबों के अलावा शरह व हवाशी और गैर मुतअल्लिक़ किताबों का रोज़ाना कसरत से मुताला करता, और ख़ास खास चीज़ों को डायरी पर नॉट कर लिया करता था, इस के अलावा सब से अहम बात ये है के मुझे जो कुछ भी मिला वो हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! की सुहबत व इस्तिफ़ादा से हासिल हुआ, उन के एक घंटे की सुहबत, इस्तिफ़सार और इस्तिफ़ादा सालो की मेहनत व मशक्कत पर भारी पड़ते थे, में आज हर जगह हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह! का इल्मी व रूहानी फैज़ान पाता हूँ, आज जो मेरी हैसियत है वो उन्हीं की सुहबते कीमिया असर का सदक़ा है, तकरीबन बयालीस साल से मुसलसल हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के उस मनसब को बा हुस्ने खूबी अंजाम दे रहे हैं हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के फतावा! आलमे इस्लाम में सनद का दर्जा रखते हैं।

मरकज़ी दारुल इफ्ता का क़याम

1981, ईस्वी में हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के इन्तिकाल के बाद आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के दौलत कदे पर (जहाँ ताजुश्शरिया की मुस्तकिल सुकूनत है) मरकज़ी दारुल इफ्ता की बुनियाद डाली, 1982, ईसवी में घर पर ही मसाइल के जवाबात इनायत फरमाते थे, बाज़ाब्ता तौर पर किसी इदारा की बुनियाद नहीं पड़ी थी, मगर उलमा व मशाइख इज़ाम और अवामे अहले सुन्नत की ज़रूरत का ख्याल करते हुए, “मरकज़ी दारुल इफ्ता” के क़याम का फैसला किया,

हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी रोज़ाना “दारुल इफ्ता” तशरीफ़ लाते और आप हज़रत मुफ़्ती क़ाज़ी अब्दुर रहीम बस्तवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद नाज़िम अली कादरी बारह बंकवी मद्दा जिल्लाहुल आली, हज़रत मौलाना मुफ़्ती हबीब रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह को मुफ़्ती की हैसियत से “मरकज़ी दारुल इफ्ता” में मुकर्रर फ़रमाया, फतावा को रजिस्टर में नकल की खिदमत के लिए हज़रत मौलाना अब्दुल वहीद खान बरेलवी को मामूर किया गया, हज़रत मौलाना अब्दुल वहीद खान बरेलवी ने 1983, ईस्वी से 2005, ईस्वी तक फतावा की नकल का काम किया, आज “मरकज़ी दारुल इफ्ता” में मौलाना! के हाथ से मुन्दरिज फतावा के 80, रजिस्टर होंगें, मौजूदा वक़्त में “मरकज़ी दारुल इफ्ता” बरैली शरीफ से जारी फतावा की हैसियत मुल्क व बैरूने ममालिक में हरफ़े आखिर का दर्जा रखते हैं और सभी सरे तस्लीम ख़म करते हैं।

आप की शादी मुबारक

हज़रत का अक़्द मसनून तालीमों तरबियत और इरादत व सुलूक की मंज़िलें तय करने के बाद और जामिया अज़हर मिस्र! से वापसी पर तकरीबन दो साल तदरीसी खिदमात अनजाम देने के बाद खानवादा ही में हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की साहबज़ादी “सलीम फातिमा, उर्फ़ अच्छी बी” से शाबानुल मुअज़्ज़म 1388, हिजरी मुताबिक 3, नवम्बर 1968, ईस्वी बरोज़ इतवार हुआ, हज़रत की अहलिया मुहतरमा हुस्नो किरदार, तकवाओ तहारत, मेहमान नवाज़ी, गुरबा परवरी, इंसाफो दियानत, सख़ावतो पाबन्दी शरीअत में अनोखी शान रखती हैं, हल्काए इरादत में “पीरानी अम्मा” से मश्हूरो मारूफ हैं, मसरूफियत के बावजूद किताबों के मुताला की आदी हैं, हज़रत पीरानी अम्मा! नेक सीरत खातून हैं फी ज़माना रबिराए अस्र हैं, डॉकटर शौकत सिद्दीकी आप की अहलिया! की बाबत लिखते हैं:

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह की सब से छोटी साहबज़ादी जानशीने मुफ्ती आज़म हिन्द हज़रत अल्लामा मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह से मंसूब हुईं, अरबी व फ़ारसी की तालीम घर ही पर वालिद माजिद से हासिल की, सोमो सलात की सख्ती से पाबंद, निहायत ही खुश अख़लाक़, इंतिहाई मेहमान नवाज़, निहायत ही मतीन व संजीदह हैं, सारे घर का नज़्बो ज़ब्त, माह नामा सुन्नी दुनिया, की इशाअत की फ़िक्र, मरकज़ी “दारुल इफ्ता” के मुफ्तियान का ख़याल, अर्रज़ा मरकज़ी दारुल इशाअत, से किताबों की इशाअत और आल इण्डिया जमात रज़ाए मुस्तफा की सरगर्मियों के लिए माली तअव्वन करती हैं, बड़ी मुआमला फ़हम और ज़ीरक हैं, अल्लाह पाक ने हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के घर के लिए आप का इंतिख्वाब जिस की वजह से हज़रत ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को बड़ी आसानियाँ हैं|

आप फ़िक़्ही मसाइल से वाकिफ और दीने हनफ़िया की शानदार मुबल्लिगा हैं, उर्दू नसर में शानदार मज़ामीन तहरीर करती हैं, “माह नामा आला हज़रत” बरैली और सुन्नी दुनिया, में चंद मज़ामीन शाए भी हुए हैं,

अल्लाह पाक ने आप को “पांच साहबज़ादियाँ और एक साहबज़ादाह” अता फ़रमाया है, आप ने सभी की बहतरीन दीनी तरबियत की और तालीम से आरास्ता किया, और सभी की शादियां भी कर दीं, आप की साहबज़ादियाँ मुन्दर्जा ज़ैल हज़रात से मंसूब हैं और माशा अल्लाह सभी साहिबे औलाद हैं,

(1) आसिया फातिमा: आली जनाब इंजिनियर मुहम्मद बुरहान रज़ा साहब बीसलपुर से मंसूब हैं, एक साहब
ज़ादा मुहम्मद अलवान रज़ा, और एक साहबज़ादी हिना फातिमा, हैं, फ़िलहाल दिल्ली में मुकीम हैं,
(2) सादिया फातिमा: अली जनाब अल हाज मुहम्मद मंसूब रज़ा खान, बहेड़ी को मंसूब हुईं एक साहबज़ादी
लजीन फातिमा, और एक साहबज़ादा मुहम्मद मिन्हाल रज़ा, हैं, बहेड़ी ज़िला बरैली में इक़ामत पज़ीर हैं,
(3) कुदसिया फातिमा: हज़रत मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद शोएब रज़ा कादरी, नजीबाबादी बिजनौर को मंसूब हुईं
एक साहब ज़ादे खुबैब रज़ा, और एक साहब ज़ादी नवार फातिमा, हैं, बरैली में मुकीम हैं, अफ़सोस के हज़रत
मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद शोएब रज़ा कादरी, नईमी अब हमारे दरमियान ना रहे, अल्लाह पाक उनकी बे
हिसाब मगफिरत फरमाए,
(4) अतिया फातिमा: हज़रत मौलाना मुहम्मद सलमान रज़ा खान, कांकर टोला बरैली शरीफ से मंसूब हुईं, दो
सबज़ादे मुहम्मद सुफियान रज़ा, और मुहम्मद शाज़ान रज़ा, और मुहम्मद मल्हान रज़ा, हैं, एक साहबज़ादे
का बचपन ही में इन्तिकाल हो गया, बरैली और रायपुर में रहते हैं,
(5) सारिया फातिमा: आली जनाब मुहम्मद फरहान रज़ा, ख्वाजा क़ुतुब, बरैली को मंसूब हुईं एक साहब ज़ादा
नबहान रज़ा, और एक साहबज़ादी फलजज़्ज़ा फातिमा, हैं, बरैली शरीफ में रहते हैं|
(6) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती “असजद रज़ा” खान कादरी मद्दा ज़िल्लाहुल आली! आप का निकाह हज़रत अमीने शरीअत मुफ़्ती मुहम्मद सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह, मुफ्तिए आज़म एम, पी, की छोटी साहब ज़ादी मुहतरमा राशिदा नूरी साहिबा से 2, शाबान 1411, हिजरी मुताबिक 17, फ़रवरी 1991, ईस्वी बरोज़ इतवार को हुआ, माशा अल्लाह इस वक़्त आप के दो साहब ज़ादे मुहम्मद हुस्सम अहमद रज़ा, और मुहम्मद हुमाम अहमद रज़ा, चार साहब ज़ादियाँ, अरीज फातिमा, आमिर फातिमा, जुबैरिया फातिमा, मुज़ीना फातिमा, हैं|

रेफरेन्स हवाला

  • मुफ्तिए आज़म हिन्द और उन के खुलफ़ा
  • सवानेह ताजुश्शरिया
  • तजल्लियाते ताजुश्शरिया
  • हयाते ताजुश्शरिया
  • अनवारे ताजुश्शरिया
  • करामाते ताजुश्शरिया

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