हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश हज़रत औरंगज़ेब आलम गीर रहमतुल्लाह अलैह के दौरे हुकूमत 1046/ ईसवी में हुई, आप ने उलूमे ज़ाहिरी हज़रत मौलाना हाफ़िज़ बसीर अहमद रहमतुल्लाह अलैह से हासिल किए, जो बादशाह शाह जहाँ के दौरे हुकूमत के एक बड़े आलिमे दीन थे, इन के अलावा हज़रत ख्वाजा खुर्द बिन ख्वाजा बाकी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह। से भी इल्म हासिल किया।

हुज़ूर गौसे पाक से तालीम हासिल करना

आप हज़रत मौलाना शाह अब्दुर रहीम नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के भाई और हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह के चचा! और हज़रत ख्वाजा खुर्द बिन ख्वाजा बाकी बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द थे, आप ने इत्तिबाए सुन्नत का तरीका और सूफ़ियाए किराम के अहवाल को इस अंदाज़ से इख्तियार फ़रमाया था के इससे ज़ियादा इंसानी ताकत से बाहर था, हालते बेदार में एक मर्तबा इमामुल औलिया हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म बगदादी रदियल्लाहु अन्हु! ने बड़े बड़े असरारो रुमूज़ तालीम फरमाए थे।

मुजाहिदा व रियाज़त

हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने आग़ाज़े मुजाहिदा में आप ने अपना आबाई घर छोड़ दिया था और मस्जिद फ़िरोज़ा आबाद के करीब एक हुजरा बना कर रहने लगे थे, उन दिनों में अक्सरो बेश्तर दो दो तीन तीन रोज़ लगातार फाके से रहते थे, अगर कुछ ग़िज़ा मिल जाती तो जों की रोटी के चंद टुकड़े और दही होती जिस को आप के नियाज़ मंद लाते थे और इस खाने को तमाम फकीरों पर बराबर कर देते थे, आप के घर में ना कोई देगची पतीली थी, ना चूलह, ना चक्की,और ना दूसरा सामान यहाँ तक के अल्लाह पाक ने खूब बरकत दी और अपने बंदों के दिलों को आप की तरफ माइल कर दिया।

बैअतो खिलाफत

हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह एक मर्तबा हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदारे पुर अनवार से मुशर्रफ हुए, और अर्ज़ किया या सय्यदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मेरी ख्वाइश है के आप के मुकद्द्स तरीके से फ़ैज़याफ्ता किसी मर्दे हक से बैअत मुरीद हो जाऊं, मुझे किसी ऐसे मर्दे खुदा का पता दीजिये, जो इस का अहिल हो, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के तेरी बैअत हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम से होगी, कुछ दिनों के बाद आप कहीं तशरीफ़ ले जा रहे थे के बीच रास्ते में एक मर्द को बैठा हुआ देखा, आप ने उन से रास्ता मालूम किया तो उन्होंने हाथ के इशारे से आप को बुलाया और फ़रमाया ऐ बस्त रफ़्तार! में अली हूँ और मुझे हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भेजा है ताके में तुझे उनकी बारगाह में ले चलूँ, चुनांचे हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम आप को हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में ले गए और आप ने हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम के दस्ते मुबारक पर बैअत की,
इस मोके पर हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने फ़रमाया ऐ अबू रज़ा मुहम्मद! में इसी तरह औलियाए किराम के हक में वसीलाए बैअत रहता हूँ, वरना तमाम सिलसिलों की हस्तियों का मर्कज़ तो हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ाते पाक है।

कशफो करामात

हम तेरे दिल की बात जानते हैं

हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह आप का एक खादिम किसी बुरी आदत में मुब्तला था, आप ने उसे कई मर्तबा इशारों किनायों में नसीहत फ़रमाई मगर वो फिर भी नहीं माना और नाही इस बुरी आदत से बाज़ आया, आखिर कार आप ने उसे तन्हाई में बुला कर कहा तुझे बारहा इशारों किनायों में समझाया मगर तूने कोई परवाह नहीं की, शायद तू समझता है के हम तेरे करतूतों से बेखबर हैं, खुदा की कसम ज़मीन के निचले तबके में रहने वाली किसी चियोंटी के दिल में भी सो खयालात आ जाएं तो उन में से निन्नावे 99/ खयालात को में जानता हूँ और अल्लाह पाक उस के सो के सो खयालात से बा खबर है, ये सुन कर खादिम ने अपनी बुराई से तौबा की।

मुझे ये बहुत पसंद आई

हज़रत इमाम शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह ने सय्यदी उमर हिसारी से सुना है के एक दिन हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह एक खूबसूरत चादर ओढ़े हुए हिरन की खूबसूरत खाल पर बैठे हुए थे, और वो चादर और खाल मुझ को पसंद आई और ऐसी चादर और खाल की में तलाश में था, ये ख़याल मेरे ज़हन में ऐसा बैठा के हटाने के बावजूद नहीं हटता था, हज़रत जब मजलिस से उठे तो मुझ से फ़रमाया के बैठो तुम से काम है, इस खाल पर इस खाल पर शेरनी के धब्बे लगे हुए थे, उन्हें अपने हाथ से धुय, चादर और हिरन की खाल की तह कर के अपने हाथ से मुझे इनायत फरमाएं और और औलियाए किराम की मजलिसों में ऐसे खयालात दिल में नहीं लाने चाहिए।

वफ़ात

हज़रत शैख़ अबू रज़ा नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अक्सर फ़रमाया करते थे, के हमारी उमर 50/ 60/ के दरमियान होगी, चुनांचे ऐसा ही हुआ, आप ने हज़रत औरंगेज़ आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के दौरे हुकूमत 17, मुहर्रम 1101/ हिजरी मुताबिक 1657/ ईसवी को वफ़ात पाई।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक ओबराए होटल के अंदर है, लाल बहादुर शास्त्री रोड, दिल्ली 3, में मरजए खलाइक है । रहमतुल्लाह अलैह।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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