हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत बसआदत

हज़रत शरफ़े मिल्लत! अपने वालिद माजिद शैखुल मशाइख, अहसनुल उलमा, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश मुबारक के बारे में बड़े ही दिलनशीन अंदाज़ में फरमाते हैं:
आप की पैदाइश 10, शाबानुल मुअज़्ज़म 1345, हिजरी मुताबिक 13/ फ़रवरी 1927/ ईसवी में हज़रत सय्यद शाह बशीर हैदर आले इबा मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के घर हुई, पैदाइश के वक़्त आप सर से पैर तक एक कुदरती गिलाफ में लिपटे हुए थे, और इस गिलाफ के ऊपरी हिस्से पर ताज की शकल बनी हुई थी, दाई ने ज़मीन पर हाथ मार कर अपना कड़ा तोड़ा और उस की नोक से गिलाफ को काटा, और गिलाफ से हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने नूरानी वुजूद के साथ दुनिया में तशरीफ़ लाए।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक हज़रत “सय्यद शाह बशीर हैदर आले इबा कादरी” और आप के दादा जान का नाम हज़रत सय्यद शाह हुसैन हैदर कादरी रहमतुल्लाह अलैह है, आप के वालिद माजिद हज़रत “सय्यद शाह बशीर हैदर आले इबा कादरी! वलद सय्यद शाह हैदर हुसैन ख़ातिमुल अकाबिर हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह अलैह! के नवासे थे।

नाम व लक़ब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन” और लक़ब “अहसनुल उलमा” है।

तालीमों तरबियत

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने कुरआन शरीफ की तालीम अपनी वालिदा माजिदा और हाफ़िज़ अब्दुर रहमान, मारहरवी से हासिल की, उर्दू की इब्तिदाई तालीम मुंशी सइदुद्द्दीन साहब से हासिल की, अंगेरजी के कुछ सबक मास्टर समीउद्दीन साहब! से पढ़ा, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह ने अंग्रेजी लिखाई भी बहुत उमदह करते थे, और बोलने समझने में भी माहिर थे, दरसे निज़ामी की तालीमात अपने मामू ताजुल उलमा सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां रहमतुल्लाह अलैह, बड़े भाई सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा मुहम्मद मियां रहमतुल्लाह अलैह, ख़लीलुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती खलील अहमद खां रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अल्लामा व मौलाना गुलाम जिलानी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती हशमत अली खां पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह, से दीनी उलूमो फुनून हासिल किए,
और राहे सुलूक की तालीम अपने नाना जान मुजद्दिदे बरकतियात हज़रत सय्यद शाह इस्माईल हसन उर्फ़ शाहजी मियां रहमतुल्लाह अलैह! के ज़ेरे तरबियत हासिल की,

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह एक बेहतरीन हाफिजों कारी आलिमो मुफ़्ती थे, आप के सीने में क़ुरआने पाक आखरी सांसों तक जियों का तियों वैसा का वैसा ही था, अपनी हयाते मुबारिक में बहुत मेहराबें सुनाई, मुंबई में तनहा दो शबीने सुनाए, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह को इन के अकाबिर से इल्मे शरीअत, मारफत, तदब्बुर, इंकिसारी, सादा मिजाज़ी, आला दिमागी, सख़ावतो फ़य्याज़ी, खूब खूब वरसे में मिली थी, आप अपने जद्दे आला साहिबे बरकतुल्लाह! की तरह हुकूमत, हाकिमो, और सियासत दानो से बहुत दूर रहते थे, कभी किसी का रोब दबदबा कबूल नहीं किया, बड़े बड़े मनिस्टर गवर्नर आप से मारहरा आ कर मिलना चाहते थे, लेकिन हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह माज़रत कर लेते।

आप की तसानीफ़

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह खानकाही तब्लीगी मसरूफियात के बावजूद तस्नीफो तालीम के लिए भी वक़्त निकाला करते थे, आप की चंद तस्नीफ़ ये हैं: (1) अहलुल्लाह फि तफ़्सीर गैरुल्लाह, दवाए दिल, (2) मदाहे मुर्शिद, (3) अहले सुन्नत की आवाज़, (4) 1973/ ईसवी के मुख्तलिफ तब्लीगी दौरों की रूदाद, इस के अलावा कई मज़ामीन, आप ने रकम फरमाए हैं, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह अपने अकाबिर की तरह शायरी का आला ज़ोक रखते थे।

आसेब को भगाना

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द हज़रत शरफ़े मिल्लत ने इन के नामे नामी सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी के हुरूफ़ की निस्बत से जो इन की सीरत का नक्शा खींचा वो लाइके सद इज़हारे तहसीन है,
जहाँ बात सियादत से शुरू हुई है और आगे यादे इलाही, दिल जोई, शीरीं बयानी, उल्फ़ते रसूल, हिम्मतों मुहब्बत औलियाए किराम, सुदूरे कशफो करामात, तरीक़ए अजदाद पर अमल, फुज़्ला की इज़्ज़त, यगाना आम्मा, हिल्म, यकीन की दौलत, दीन की खिदमत, रियाकारी से नफरत, हिकमत की बातें करने की आदत, सरदारी, नेमतों की तकसीम, मेहमानवाज़ी, इंसान नवाज़ी, नमाज़ों से उल्फत, कादिरियत से इश्क दरिया दिली, यकीन मुहकम और अमल पैहम की तफ़्सीर ये सब खूबियां चमक रही थीं, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह की ज़ात मुबारक में,
हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह तमाम खानदानी आमाल व अशगल के बहुत पाबंद थे, मशाइखे खानदाने बरकातिया का आधी रात के बाद वज़ीफ़ा तिलावत करने का मामूल कभी नागा न हुआ, जिस रात विसाल फरमाने वाले थे, इस रात भी आप ने वो वज़ीफ़ा दिन में तिलावत फरमा लिया था, अल्लाह पाक ने आप के हाथ में रूहानी शिफा बहुत कसरत से अता फ़रमाई थी, तावीज़ ऐसा पुर असर होता था जिस को अता फरमा दिया उस शख्स की सारी तकलीफें हुक्मे खुदा से फ़ौरन रफा दफा हो जातीं, जिन्नात, असर, आसेब, को तो हाज़िर कर के सज़ा दे कर दफा फरमाते, बदायूं शरीफ के एक मुरीद अनवर कासमी साहब! के यहाँ सख्त आसेब का असर हुआ और बंदरों की शक्ल में हमला आवर होता था, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह अपने खानदानी चिराग के साथ तशरीफ़ ले गए, आसेब को हाज़िर किया और उस के सामने बैठ कर उस को सख्त तम्बीह की जब वो ना माना तो सज़ाएं दे कर दफा किया,
हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह में राहे सुलूक व दुरवेशी के इशारे बचपन ही से ज़ाहिर थे, आप की बहन सय्यदह ज़ाहिदा खातून रहमतुल्लाह अलैहा आप के बचपन को बयान करते हुए फरमाती हैं के अहसनुल उलमा, को बचपन ही से खेल कूद या शरारतों में दिलचस्पी ना थी, इन में मतानत और संजीदगी बचपन ही से हाज़िर थी, पालतू जानवरों का खूब ख़याल रखते, इन का दाना पानी और तकलीफ पहुंचने वाले जानवरों से बचाने के लिए खुद को बहुत मसरूफ रखते ।

वालिदा माजिदा की खिदमत

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिदैन के बहुत सआदत मंद बेटे थे, अपनी वालिदा के लिए रोज़ाना रात को पानी रखते, लोटे की टोंटी बंद कर देते के कोई कीड़ा मकोड़ा इस में ना दाखिल हो जाए, एक दिन इन की वालिदा ने किसी बात पर ये हुक्म दिया के मोढ़ा को उल्टा कर के खड़े हो जाओ, वालिदा अपने कामो में मसरूफ हों गईं, बहुत वक़्त गुज़र जाने के बाद देखा के हज़रत वैसे ही खड़े हैं, वालिदा ने पूछा: अब तक क्यों? खड़े हो तो फ़रमाया आप का हुक्म मुझे नहीं हुआ था के में हट जाऊं, आज हम को भी अपने मखदूम की इस फरमा बरदारी और वालिदैन की इताअत के वाकिए से सबक लेना चाहिए,
हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह के चेहराए मुबारक में अल्लाह पाक ने वो कशिश अता फ़रमाई थी के देर रात तक मजमा सिर्फ आप के दीदार को बैठा रहता, मेहमानवाज़ी, सखावत फय्याज़ी, हिकमत, उलमा नवाज़ी, मदरसों, मस्जिदों और इल्मी कामो में मदद इज्ज़ो इंकिसारी और इबादतों रियाज़त आप की खास खूबियां थीं, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह को जब फुर्सत मिलती तो “मदरसा कासिमुल उलूम अल बरकात” में तशरीफ़ ला कर दरसो तदरीस की खिदमात अंजाम देते थे,

आप 54/ साल तक मस्जिद बरकाती! में नमाज़े जुमा से पहले वाइज़ो नसीहत का गुलदस्ता महकाते रहे, खिताब ऐसा होता था के अगर तकरीर को छाना जाए तो 90/ फीसद क़ुरआनो हदीस की बातें और बाकि बुज़ुर्गों के वाक़िआत आप के तकरीरों के रिकॉर्डिंग महफूज़ हैं, एक एक लफ्ज़ इल्म और मारफत का खज़ाना महसूस होता है, ज़बानो अदब पर आप की इल्मी गिरफ्त मज़बूत थी अरबी और फ़ारसी गिरामर में आप को मलका हासिल था, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के कलाम पर अथॉर्टी रखते और हैदाइके बख्शिश! के हाफिजों मुफ़स्सिर थे, आला हज़रत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के कलाम को जिस तफ्सील से बयान फरमाते वो उनका ही हिस्सा था ।

हुज़ूर रफ़ीके मिल्लत सय्यद नजीब हैदर नूरी को वसीयत

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! आप के मुर्शिदाने किराम “चश्मों चिरागे खानदाने बरकात” कहते थे, और बेपनाह लगाओ भी था, और खुद सिराजुस सालिकीन हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने भी “चश्मों चिरागे खानदाने बरकात” के नादिरो नायाब लक़ब से भी नवाज़ा था, और दिन में कई कई बार मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! और हुज़ूर सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफरज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह का तज़किरा चर्चा करना आप की आदत थी, हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह अक्सर फरमाते थे के “मेरा जो मुरीद मसलके आला हज़रत से ज़रा सा भी हट जाए तो में उस की बैअत से बेज़ार नाखुश हूँ और मेरा कोई ज़िम्मा नहीं है” और अपने बच्चों से फरमाते थे के ये मेरी ज़िन्दगी में नसीहत और मेरे विसाल के बाद मेरी फ़र्ज़ियत है, इन्तिकाल से चंद रोज़ क़ब्ल आप ने अपने फ़रज़न्द हुज़ूर रफ़ीके मिल्लत सय्यद नजीब हैदर नूरी साहब क़िबला! से फ़रमाया के बेटा “इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के मसलके हक को हमेशा मज़बूती से थामे रहना, दर हकीकत मसलके आला हज़रत! कोई नई चीज़ नहीं है यही मसलक शाह बरकतुल्लाह का है, मसलके गौसे आज़म है!

मसलके इमामे आज़म है! और मसलके सिद्दीकी अकबर है, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की शाने अक़दस में अदना सी तौहीन करने वाले से मिलना पसंद नहीं करते ख़्वाह उसका तअल्लुक़ कितने ही बड़े खानदान से हो, कितना ही बड़ा आलिम मुकर्रिर हो या पीर हो आप की कसौटी मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत! और मसलके आला हज़रत थी, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! और हुज़ूर सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफरज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह का ज़िक्र मेरे आला हज़रत मेरे मुफ्तिए आज़म कहकर फ़रमाया करते थे और आला हज़रत को “रज़ाए आले रसूल” फरमाते थे,
मौजूदा दौर में सिलसिलए आलिया कादिरिया बरकातिया बड़ी मुहतरम निगाहों से देखा जाता है इस सिलसिले से वाबस्ता होने वाले सिलसिलए बरकातिया के बानी साहिबुल बरकात सुल्तानुल आशिक़ीन हज़रत “सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्कि” मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह की मुनासिबत से अपने नाम के साथ “बरकाती” लिखते हैं, ये बड़ा कदीम सिलसिला है बदायूं शरीफ! और बरैली शरीफ! यहीं से सिलसिलए कादिरिया बरकातिया का फैज़ान पहुंचा है।

बैअतो खिलाफत

आप को बैअतो खिलाफत अपने नाना जान मुजद्दिदे बरकातीयत हज़रत सय्यद शाह इस्माईल हसन शाहजी मियां रहमतुल्लाह अलैह से थी, आप के हकीकी मामू ताजुल उलमा हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां रहमतुल्लाह अलैह ने भी आप को खिलाफ़तो इजाज़त अता फ़रमाई ।

तंज़ीम जमाअते आलिया

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह सिर्फ ज़बानो बयान के ही धनि नहीं थे बल्कि फ़िक्र की पुख्तगी और ख़याल की बुलंदी में भी आप का कोई जवाब ना था, आप की फ़िक्र मिल्लत की फलाहो बहबूद के इर्द गिर्द हमेशा गर्दिश करती, अपनी फ़िक्र रसा तबियत को मिल्लते इस्लामिया की सियासी व समाजी हालत को सुधार ने से मुतअल्लिक़ ही इस्तेमाल करते, तक़सीमे हिन्द के मोके पर हिंदुस्तान में बेशुमार तंज़ीमे काइम हुईं कई एक नज़रियात व खयालात उभर कर सामने आए आप की अपनी एक जुदागाना राय थी आप ने उस पुर आशोब दौर में मिल्लते इस्लामिया की सलाह और फलाह के लिए “जमाअते आलिया मरकज़े अहले सुन्नत” के नाम से एक तंज़ीम काइम की जिस के बानी सदर ताजुल उलमा हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां रहमतुल्लाह अलैह सिक्रेटरी, सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा सय्यद मियां! और नायब सदर खुद आप हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह नामज़द किए गए, इस तंज़ीम की क्या कार करदगी रही और इस ने क्या कारहाए नुमाया अंजाम दिये इस का सही अंदाज़ा तो उस वक़्त के अखबारात व रसाइल के मुताला से ही लगाया जा सकता है, लेकिन तक़सीमे हिन्द से मुतअल्लिक़ इस तंज़ीम का सियासी मौक़िफ़ तकरीबन वही था जिस के अलंबर दार हुज़ूर शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली खान पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह थे,

तक़सीमे हिन्द के मोके पर उल्माए अहले सुन्नत दो जमातों में तकसीम हो गए थे, एक के सालारे काफिला सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा व मौलाना सय्यद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह थे और दूसरी जमात के अलंबर दार हुज़ूर शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली खान पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह थे, ये दोनों गिरोह तक़सीमे हिन्द हिन्द के मसले पर मुख्तलिफ राय रखते थे, अव्वल जमात, मिस्टर जिन्नाह की क़ियादत और उसकी तमाम नज़रयात की हिमायत दिलो जान से करती और दूसरी जमात मिस्टर जिन्नाह की क़ियादत से बेज़ार व नालां थी, मिस्टर जिन्नाह की शख्सीयत को लेकर इन दोनों जमातों के दरमियान काफी बहसों मुबाहिसा की भी गरम बाज़ारी रही, दोनों जमाअते अपने अपने मौक़िफ़ पर अटल रहीं, अपने नज़रिये की हिमायत में हुज़ूर शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली खान पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह ने एक साइल के जवाब में “अजमल अनवारे रज़ा” के नाम से एक रिसाला शाए किया था, इस रिसाले की ताईद में उल्माए अहले सुन्नत की ताईदी तहरीरें “फतावा अहले सुन्नत अहले फितना” के नाम से अलग शाए की गई, हुज़ूर शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली खान पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह के इस सियासी मौक़िफ़ की ताईद में हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह ने ये जुमले तहरीर फरमाए:

फ़कीर हक़ीर गुफिरालहू ने हुज़ूर शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली खान पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह का तहरीर किया हुआ मुबारक व मुक़द्दस फतवा बनाम तारीखी “अजमल अनवारे रज़ा” मुताला किया अल्हम्दुलिल्लाह बिलकुल हक व सही पाया जज़ाकल्लाहु तआला फ़िद्दारेंन, फ़कीर क़ासमी हाफ़िज़ सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह नाइब सदर “जमाअते आलिया मरकज़े अहले सुन्नत” व वली अहिद सज्जादा आलिया कादिरिया बरकातिया कासिमिया सरकारे कलां मारहरा मुक़द्दसा ज़िला एटा यूपी 22/ सफारुल मुज़फ्फर 1365/ हिजरी यक्शमबा,
हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह की इस तहरीर से तक़सीमे हिन्द के मोके से हिंदुस्तानी उलमा में “फतावा अहले सुन्नत” में पाए जाने वाले सियासी शऊर के तनाज़ुर में हुज़ूर शेर बेशए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हशमत अली रहमतुल्लाह अलैह के सियासी मौक़िफ़ की ताईद व हिमायत से आप की फ़िक्री बसीरत और सियासी आगाही का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, इस फैसले से ये अच्छी तरह साबित होता है के मिल्लते इस्लामिया की सियासी कश्मकश से वो बे खबर नहीं थे, इस लिए के मारहरा मुक़द्दसा के खानवादे! हर दौर में सुन्नी उल्माए किराम व अवाम दोनों के मरकज़े तवज्जुह रहे हैं।

अक़्द मस्नून

21/ जनवरी 1946/ ईसवी को सय्यदा महबूब फातिमा नकवी रहमतुल्लाह अलैहा बिन्ते सय्यद इस्हाक नकवी से हुआ, आप के छेह 6/ साहबज़ादगान हुए, (1) सय्यद मुहम्मद जमील, (2) सय्यद मुहम्मद खालिद, (इन दोनों का विसाल बचपन में हो गया) (3) अमीने मिल्लत हज़रत सय्यद अमीन मियां, (4) सय्यद मुहम्मद अशरफ, (5) सय्यद मुहम्मद अफ़ज़ल, (6) सय्यद मुहम्मद नजीब हैदर और एक साहब ज़ादी सय्यदह समीना हैं।

सवाल: हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के वो कौन से साहबज़ादे हैं जो मारूफ अफसाना निगार हैं?
जवाब: सय्यद मुहम्मद अशरफ मियां
सवाल: सय्यद मुहम्मद अशरफ मियां किस उहदे पर फ़ाइज़ हैं?
जवाब: सय्यद मुहम्मद अशरफ मियां I,,R, S, ऑफिसर हैं और फिलहाल चीफ इनकम टेक्स कमिश्नर हैं,
सवाल: हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के वो कौन से साहबज़ादे हैं जो पोलिस डिपार्टमेंट में आई जी हैं?
जवाब: सय्यद मुहम्मद अफज़ल मियां I, P, S, ऑफिसर हैं,
सवाल: हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के वो कौन से साहबज़ादे हैं जिन को ईमानदारी खिदमात के सबब सदर जम्हूरिया अवॉर्ड मिला
जवाब: सय्यद मुहम्मद अफज़ल मियां
सवाल: हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के वो कौन से साहबज़ादे हैं जो अदब का सब से मारूफ अवॉर्ड साहितिए अकैडमी मिला
जवाब: सय्यद मुहम्मद अशरफ मियां को
सवाल: हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के वो कौन से साहबज़ादे हैं जो अली गढ़ मुस्लिम यूनि वर्सिटी और जामिया मिल्लिया के रजिस्ट्रार रहे?
जवाब: सय्यद मुहम्मद अफज़ल मियां
सवाल: हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के वो कौन से साहबज़ादे हैं जिन्होंने सब से पहले उर्दू ज़बान से सिविल सर्विसिज़ का इम्तिहान पास किया?
जवाब: सय्यद मुहम्मद अशरफ मियां और सय्यद मुहम्मद अफज़ल मियां,

हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के अहम् कार नामे

हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह के बेशुमार अहम कार नामे हैं, (1) बेशुमार मदारिस की अमली सरपरस्ती, (2) खानकाही आदाब व रिवायात का तहफ़्फ़ुज़, (3) सिलसिलए आलिया कादिरिया बरकातिया का मुल्क व बेरूने मुल्क में आला पैमाने पर फरोग, (4) इत्तिहादे अहले सुन्नत के लिए नुमायां कोशिशें, (5) मुस्लमान बच्चों में असरी तालीम की तरग़ीब, (6) आप ने मस्जिद बरकाती खानकाह शरीफ और दरगाहे बरकातिया में भी मुतअद्दिद इमारतों की तामीर कराइ, आप ने अपनी ज़ाते मुबारिका से खानकाहे बरकातिया मारहरा मुक़द्दसा में बाक़ाइदा खानकाही निज़ाम को अपने किरदारों अमल सखावत और सुलूक से मज़बूत और दूसरों के लिए नमूनए अमल बनाया।

आप के चंद मशहूर खुलफ़ा के नाम ये हैं

(1) आप के चरों साहबज़ाद गान
(2) हज़रत सय्यद ज़ियाउद्दीन तिर्मिज़ी कालपी शरीफ रहमतुल्लाह अलैह
(3) शाहरेह बुखारी हज़रत मुफ़्ती शरीफुल हक अमजदी साबिक सदर मुफ़्ती अल्जामियतुल अशरफिया मुबारकपुर आज़मग़ढ यूपी
(2) फकीहे इस्लाम हुज़ूर ताजुश्शरिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान अज़हरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह
(2) हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां बरैली शरीफ
(6) हज़रत सूफी मुफ़्ती निज़ामुद्दीन साहब अमर डोहा यूपी
(7) हज़रत फकीहे मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी ओझा गंज ज़िला बस्ती यूपी रहमतुल्लाह अलैह
(8) बहरुल उलूम हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुल मन्नान साहब मुबारक पुर रहमतुल्लाह अलैह
(9) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुज़फ्फर अहमद साहब दाता गंज यूपी
(10) हज़रत कारी अमानत रसूल पीलीभीत रहमतुल्लाह अलैह
(11) हज़रत मौलाना जमाल रज़ा खान साहब बरैली शरीफ
(12) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती खलील अहमद बरकाती पाकिस्तान,

आप की वफ़ात

आप का विसाल दिल की बिमारी के सबब 11/ सितम्बर 1995/ ईसवी 15/ रबिउस सानी 1416/ हिजरी को दिल्ली के जे, बी, पंथ हॉस्पिटल में रात को 8/ बज कर 50/ मिनट पर हुआ, जनाज़ह शरीफ मारहरा शरीफ लाया गया, आप का मज़ार मुबारक अपने नाना, मामू, और भाई के पास है, इन्तिकाल से पहले अपने दुनिया से जाने के खुले इशारे फरमाए, अपने साहबज़ादों से मुस्कुराकर फ़रमाया: “हम चले पिया के देस” हज़रत अमीने मिल्लत से हुज़ूर गौसे पाक की शान में मनकबत सुनी और इशारे से पूछा इन्हें जानते हो? गोया के सरकारे गौसे आज़म वहां तशरीफ़ रखते हैं, हज़रत शरफ़े मिल्लत से तिलावते कुरआन पाक समाअत फ़रमाई, हज़रत रफ़ीके मिल्लत से फ़रमाया के “मसलके आला हज़रत पे मज़बूती से काइम रहना” अपने खादिम खास से चेहरे पर पानी लगवाया जो के विसाल की सुन्नत है, खुद को सीधा किया नियत बांधी और या अल्लाह, या रहमान, या रहीम, पढ़ते हुए अपने हकीकी मालिक से जा मिले।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में ज़ियारत गाहे खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

(1) बरकाती कोइज़
(2) तारीखे खानदाने बरकात
(3) तज़किरा मशाइखे मारहरा

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