उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान कादरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान कादरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

विलादत बसआदत

शहज़ादए उस्ताज़े ज़मन उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के सगे भाई उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु के दौलत कदा मौजूदा आस्ताना आलिया कादिरिया बरकातिया रज़विया के पीछे वाले हिस्से मे आप की 1310/ हिजरी मुताबिक 1893/ ईसवी में आप की पैदाइश हुई, और इसी मकान में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! 22/ ज़िल हिज्जा 1310/ हिजरी मुताबिक 7/ जुलाई 1893/ ईसवी बरोज़ जुमेरात बा वक्ते सुबहो सादिक दुनिया में तशरीफ़ लाए,

इमामुल मुता कल्लिमीन हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह! ने मोहल्ला जसूली! इमली वाली मस्जिद बरैली (जो इस वक़्त मोहल्ला ज़खीरा कहलाता है) से जब अपना मकान तब्दील किया तो उन्हों ने मोहल्ला सौदागिरान के इसी मकान में सुकूनत इख़्तियार फ़रमाई फिर ता हयात इसी मकान में रहे।

नाम मुबारक

आप का इसमें गिरामी, “मौलाना हसनैन रज़ा खान” और आप के वालिद मुहतरम का इसमें गिरामी “उस्ताज़े ज़मन शहंशाहे सुखन, हज़रत अल्लामा “हसन रज़ा” खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! है।

नसब नामा

हज़रत मौलाना हसनैन रज़ा खान बिन, हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान बिन, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नकी अली खान बिन, अल्लामा रज़ा अली खान बिन, हाफ़िज़ काज़िम अली खान बिन, मुहम्मद आज़म खान बिन, सआदत यार खान बिन, शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्ल्ह खान रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

तालीमों तरबियत

उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने क़ुरआने पाक और दीगर इब्तिदाई तालीम घर पर ही हासिल की और “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” बरैली में दाखिल हुए, यहाँ के जय्यद उल्माए किराम और माहिर मुफ्तियाने इस्लाम से इक्तिसाबे उलूमो फुनून किया,
हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप के हम सबक रुफ्क़ाए खास (खास साथी) में थे और उमर में उन से सिर्फ छेह 6/ माह बड़े थे आप ने माकुलात की कुछ किताबें रामपुर! जा कर मदरसा इर्शादुल उलूम! में पढ़ीं।

इम्तिहान में आला कामयाबी

उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! काफी ज़हीन थे, तमाम असातिज़ाए किराम और सालाना मुम्तहिन् (इम्तिहान लेने वाला) आप से बेहद खुश रहते, “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” बरैली के 1323/ हिजरी मुताबिक 1905/ ईसवी की सालाना रिपोर्ट में इम्तिहान ले ने वाले ने आप को और हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द! को इन की मेहनते शाक्का व खुश उस्लूबी की दादो तहसीन दी है, उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! और हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! एक ही जमात के तालिबे इल्म थे, इम्तिहान लेने वालों में हज़रत अल्लामा वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति पीलीभीती, हज़रत मुफ़्ती अब्दुस्सलाम जबलपुरी, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शाह सलामतुल्लाह मुजद्दिदी रामपुरी, हज़रत मौलाना इरशाद अली रामपुरी, मौलाना हकीम शफीक रामपुरी, और हाफिज़ो कारी बशीरुद्दीन जबलपुरी रदियल्लाहु अन्हुम थे।

फरागत दस्तारबंदी

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने 1328/ हिजरी मुताबिक 1910/ ईसवी में बा उमर 18/ साल खुदा दाद ज़हानत, ज़ोके मुताला, लगन और मुहब्बत और असातिज़ाए किराम की शफकत व राफत, वालिदैन व चचा की कामिल तवज्जुह और शैख़े मुकर्रम के रूहानी फैज़ के नतीजे में जुमला उलूमो फुनून में मन्क़ूल व माकुलात हासिल कर के “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” बरैली से दस्तार बंदी व तकमीले फरागत पाई।

असातिज़ाए किराम

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! दौराने तालीम बरैली शरीफ और रामपुर के असातिज़ाए किराम दर्स में ज़ैल के नाम ही मिल सके:
(1) मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु!
(2) हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान बरेलवी
(3) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती इरशाद हुसैन मुजद्दिदी फारूकी रामपुरी
(4) हज़रत अल्लामा व मौलाना रहम इलाही मंगलोरी
(5) हज़रत अल्लामा व मौलाना हिदायतुल्लाह खान जौनपुरी
(6) हज़रत अल्लामा व मौलाना ज़हूरुल हुसैन फारूकी रामपुरी
(7) हज़रत अल्लामा व मौलाना अब्दुल अज़ीज़! तिलमीज़ मौलाना अब्दुल हक़ खैराबादी,
(8) हज़रत अल्लामा व मौलाना नुरुल हुसैन मुजद्दिदी फारूकी रामपुरी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

दरसो तदरीस

फरागत के बाद हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दरसो तदरीस की मसनद को ज़ीनत बख्शी, और एक अरसए दराज़ तक तिश्निगाने उलूमे दीनिया को फ़ैज़याब करते रहे, इस तदरीस का सिलसिला तकरीबन दस तक मुसलसल चलता रहा, आप से इक्तिसाबे इल्म करने वालों में नामवर उल्माए किराम व मशाइख़ीन, और मुनाज़िर हैं।

बैअतो खिलाफत

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! सिलसिलए आलिया कादिरिया में सिराजुस सालिकीन हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी बरकाती मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! से बैअत थे, और मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने चारों सलासिले तरीकत और अहादीसे मुबारिका की इजाज़त से नवाज़ा था।

शोक का खून

आप ने दरसो तदरीस के ज़माने में “माह नामा अर रज़ा” बरैली से जारी किया, जिस के साथ मेहनत और वक़्त की ज़रूरत थी, मगर तदरीस की मसरूफियत की वजह से “माह नामा अर रज़ा” को वक़्त नहीं दे पाते थे, जिस की वजह से वो वक़्त पर नहीं छपता था, “माह नामा अर रज़ा” की इशाअत की खातिर आप ने दरसो तदरीस के उहदे से अस्तीफा दे दिया, और अपना कामिल वक़्त “माह नामा अर रज़ा” और हसनी प्रेस! व दीगर इशाअते क़ुतुब में सर्फ़ करने लगे,
हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने तदरीस के उहदे से अस्तीफा देने की वजह खुद अपने एक मज़मून में तहरीर फरमाते हैं: दरसो तदरीस का मुझे एक ज़माने से शोक है, मुझे अपने इस शोक में अपने कदीमी मुहसिन मदरसा अहले सुन्नत “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” का पहला मशहूर नाम से बड़ी मदद मिलती है इस बा बरकत दारुल उलूम! ने अपनी ज़रूरत से पिछले दिनों मुझे दो दर्जे का मुदर्रिस कर दिया था, जिससे बा ज़ाहिर बार बढ़ा हुआ था, मगर हकीकत मेरे शोक की तकमील होती थी अब जब में ने पर्चे “माह नामा अर रज़ा” के कामो में उलझन देखि तो में एक दर्जा के दर्स से अभी इस ज़िल हिज्जा 1338/ हिजरी में दस्तकश (हाथ खींचना, तर्क करना) हो गया, में इस पर्चे को जारी रखने के लिए अपने शोक का खून किया है, हम ने बिल्कुललिया तौर पर दरसो तदरीस को तर्क नहीं किया, जो तलबा घर आएं उनको मुकर्राहा या गैर मुकर्राहा ओकात में पढ़ाते रहते हैं इन तलबा की भी एक अच्छी तादाद थी।

आप का इल्मी मक़ाम

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का सीना इल्म का गन्जीना था, हज़रत अमीने शरीअत मौलाना सिब्तैन रज़ा खान, हज़रत मौलाना गुलाम जिलानी आज़मी के हवाले से तहरीर फरमाते हैं के:
जिस ज़नामे में हज़रत! दर्स देते थे, माकूलात की बड़ी बड़ी किताबें आप के पास रहा करती थीं, कभी कभी ऐसा होता के किसी ज़रूरत से बाहर तशरीफ़ ले जाते हफ्ता अशरा दस दिन बाद शब् में वापस आते, और सुबह को बगैर मुताला किए दर्स गाह में तशरीफ़ ले आते, और पढ़ाना शुरू कर दिया, मुश्किल से मुश्किल सबक होता, तलबा जो उस वक़्त मेहनती और ज़हीन होते थे हर तरफ से ऐतिराज़ात की बौछार करते और आप सब को यके बाद दीगर मुसकित और तसल्ली बख्श जवाब देते थे, और सबक के दौरान महसूस ना होने देते के बगैर मुताला पढ़ा रहे हैं, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत मुक़द्दसा, आप के अख़लाके हसना, औलियाए किराम के हालाते ज़िन्दगी, और तारीखी वाक़िआत को इस खूबी से बयान फरमाते हैं के आप के पास बैठने वाले वुक्ला, बेरिस्टरांन, भी होते थे वो भी आप की गुफ्तुगू पूरे इनहिमाक के साथ सुनते, और इससे मुतअस्सिर हुए बगैर ना रहते, पाकिस्तान! के मशहूर कलमकार! जनाब मुख़्तार जावेद लाहोरी ने हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को मशहूर इल्मी रूहानी खानदान का “चश्मों चिराग” और मिल्लत के लिए दर्द मंद दिल बतलाया हैं।

सियासी बसीरत

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! जय्यद आलिमे दीन, फकीहो मुदब्बिर के साथ साथ बुलंद ख्याल सियासत दां थे, सियासत के पेच व ताब से खूब वाकिफ थे, आप ने सालेह सियासत इख़्तियार की और वो भी कोमो मिल्लत के लिए, आप का हल्काए अहबाब बहुत वसी था, जिस में उल्माए किराम व मशाइख़ीन के अलावा वुक्ला, शहर व बैरूने शहर के रुऊसा, बेरिस्टर, नीज़ सियासी लीडर, ज़िले के हुक्काम, आला अफसरान, अमीरो गरीब गर्ज़ के हर तबके के लोग शामिल थे मगर आप के इल्मो फ़ज़ल के मोतरिफ थे, और आप का पूरी तरह अदब किया करते थे,

एक ज़माने में मुस्लिम लीग का ज़ोर हुआ, और मुल्क भर में और तूफानी तहरीकें चलीं, आप नज़रयाती ऐतिबार से मुस्लिम लीग के हामी थे, मुस्लिम लीग की तंज़ीम के इंतिखाब में आप को ज़िम्मेदारान ने ज़िला बरैली का जर्नल सिक्रेटरी! मुन्तख़ब किया, मुसिलम लीग के शबाब के दौर में मौलाना अज़ीज़ अहमद खान! ने इलेक्शन लड़ा जिस में वो कामयाब भी हुए, मगर बाद में अपनी तमाम तर ज़िम्मेदारियों और उहदों से अस्तीफा दे दिया।

इत्तिबाए शरीअत और इल्मे दीन की तब्लीग

इत्तिबाए शरीअत और हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्ची मुहब्बत आप की हयाते मुबारिका का बेहतरीन सरमाया थी, आप को बेशुमार अहादीस ज़बानी याद् थीं, जिन्हें वक्तन फवक्तन अवामी नशिश्तों में बयान फरमाते थे, और अक्सर ऐसा भी होता के हदीस शरीफ बयान करते हुए आप के क्लब मुबारक पर रिक्कत तारी हो जाती और आंसुओं से आँखें पुरनम हो जातीं, हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को इल्मे दीन ख़ुसूसन क़ुरआने पाक और हदीस शरीफ से गहरी मुहब्बत थी, इस दावे का सुबूत इस बात से मिलता है के आप ने अपने तीनो फ़रज़न्दों को आलिमे दीन! बनाया, जब के बेहतरीन मवाक़े आप के लिए थे, मगरिबी तालीम के लिए फॉरेन कंट्री भी भेज सकते थे, मगर आप ने स्कूल की इब्तिदाई तालीम तक नहीं दिलवाई और आज अल्हम्दुलिल्लाह तीनो साहब ज़ादगान आलिम, मुफ़्ती, मुहद्दिस, और पीरे तरीकत हैं, जिन से एक आलम फ़ैज़याब हो रहा है, अमीने शरीअत हज़रत अल्लामा सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! अपने वालिद माजिद का एक वाक़िआ बयान करते हैं:

अज़ीज़ अहमद खान साहब! एडवोकेट जो शहर बरैली के एक मशहूर और काबिल वकील थे, आप के यहाँ के हाज़िरबाश और क़द्रे बे तकल्लुफ थे, वो कभी कभी कहदिया करते थे के मौलाना आप ने सब बच्चों को मौलाना बना देते हो, कम अज़ कम एक को तो अंग्रेजी पढ़ाइए, तो आप खुश उस्लूबी से टाल देते और फरमाते के हाँ इन्हें बस मौलाना ही बनाना है, और इसी में फलाहो कामयाबी है आप की अपनी औलाद के लिए खुसूसी दुआ ये होती के ऐ रब्बे करीम! तू इन सब को दीन का सच्चा खादिम और सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु का इल्म का वारिस बना दे, और इन से दीन की वो खिदमत ले, जिससे तू और तेरे रसूल राज़ी हों, और इस के साथ ही अपने अइज़्ज़ा और अहबाब और दुनिया भर के मुसलमानो की फलाह व बहबूद के लिए दुआ फरमाते थे,

इशाअते उलूमे नबविया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खातिर आप ने तमाम असरात व तअल्लुक़ात और मवाक़े को बालाए तक रख दिया काश के यही जज़्बा आज के उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम के पास रहे, एक साहब आप के पास आए और कहा के मेरी अहलिया एक बड़े घराने की शादी में जा रही है, फलां ज़ेवर की कमी है, आप मकान के अंदर तशरीफ़ ले गए और मेरी वालिदा साहिबा से वो ज़ेवर ले जा कर उन्हें दे दिया, फिर ताज़िन्दगी उन्होंने वापस ना किया, और आप ने भी नहीं माँगा, अहबाब में से किसी की मामूली सी दिल शिकनी गवाना ना फ़रमाई।

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा से आप की रिश्तेदारी

हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! जहाँ मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के शागिर्द, खलीफा, और भतीजे थे, वहीँ आप दामाद भी थे, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की चौथी साहबज़ादी कनीज़े हसनैन! उर्फ़ छोटी बेगम हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! के निकाह में थीं खुद मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने निकाह पढ़ाया जिन से सिर्फ एक लड़की शमीम बानो! पैदा हुईं, शमीम बनो जनाब जरजीस रज़ा खान को मंसूब हुईं, छोटी बेगम के इन्तिकाल के हो जाने पर आप ने दूसरी शादी मुनव्वरी बेगम! (दुख्तर अब्दुल गनी खान पोलिस इन्स्पेक्टर मोहल्ला कांकर टोला बरैली) से हुई जिन से चार औलाद हुईं तीन लड़के और एक लड़की जिन के नाम ये हैं:
(1) अमीने शरीअत हज़रत अल्लामा मौलाना सिब्तैन रज़ा खान
(2) सदरुल उलमा मुहद्दिसे बरेलवी अल्लामा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान
(4) ताजुल असफिया मुफ़्ती हबीब रज़ा खान
(5) मुहतरमा सलीम फातिमा! ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,

आप की तसानीफ़

  1. दश्ते कर्बला
  2. निज़ामे शरीअत
  3. असबाबे ज़वाल
  4. सीरते आला हज़रत
  5. वसाया शरीफ
  6. गैर मतबूआ नातिया दीवान

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा से खुसूसी तक़र्रूब और वसीयत नाम के मोहर्रिर

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! अलालत की वजह से भवाली तशरीफ़ ले गए थे, 14/ मुर्रामुल हराम 1340/ हिजरी मुताबिक 1921/ ईसवी को भवाली से वापस बरैली तशरीफ़ लाए मुसलमानाने बरैली ने बड़ा शानदार इस्तक़बालिया दिया, लोग ईयादत व बैअत के लिए दूर दराज़ से आते, आप अक्सर मजलिसों में तज़्कीरो नसाहे की बात फरमाते, हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र शरीफ खूब फरमाते, फाज़ले बरेलवी! ने तमाम बिरादराने इस्लाम व अहबाब अहले सुन्नत व जमात और औलाद को दो वसीयतें फ़रमाई, जिस में, आप ने खिदमते इफ्ता से मुतअल्लिक़ फ़रमाया के इस घर से फतवा निकलते नव्वे 90/ साल से ज़ाइद हो गए, इस के बाद दादा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह! वालिद हज़रत मुफ़्ती नकी अली खान रहमतुल्लाह अलैह! फिर अपना ज़िक्र फरमा कर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को मुतवज्जेह फ़रमाया कर के फ़रमाया:
जब उन्होंने विसाल फ़रमाया तो मुझे छोड़ा, और अब में तुम तीनो को छोड़ता हूँ, तुम हो (हामिद रज़ा खान) मुस्तफा रज़ा हैं, तुम्हारा, भाई हसनैन! है, सब मिल कर काम करोगे तो खुदा के फ़ज़्लो करम से कर सकोगे, अल्लाह पाक तुम्हारी मदद फरमाइए, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को इतना अज़ीज़ रखते थे, जिसे मालूम हो के फाज़ले बरेलवी के तीन फ़रज़न्द हैं, इस खुसूसी तक़र्रूब की बय्यन व रोशन मिसाल मज़कूरा वसीयत के अल्फ़ाज़ से बढ़कर और क्या हो सकती है,
मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने अपने विसाल 25/ सफारुल मुज़फ्फर 1340/ हिजरी बरोज़ जुमा 12/ बजकर 31/ मिनट विसाल शरीफ से दो घंटा 17/ मिनट पहले हिदायात व वसीयत पर मुश्तमिल मकबूत! वसाया! हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ही से लिखवाया इस के बाद आखिर में हम्द व दुरूद शरीफ और दस्तखत खुद अपने दस्ते मुबारक से तहरीर फ़रमाया, जो इन की आखरी तहरीर थी मकतूब वसाया के 14/ वे पैरागिराफ़ में फरमाते हैं:

रज़ा हुसैन “हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह” और तुम मुहम्मद रज़ा खान! अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान! मुस्तफा रज़ा खान! सब मुहब्बत व इत्तिफाक से रहो और हत्तल इमकान इत्तिबाए शरीअत न छोड़ो,
बारहा लोगों ने बताया के हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! जब भी पुराना शहर तशरीफ़ ले जाते, तो मौलाना! के घर मुहल्लाह कांकर टोला! ज़रूर तशरीफ़ ले जाते कुछ ना मुसाइद हालाते के पेशे नज़र आप ने अपना मकान मुहल्लाह सौदागिरान से कांकर टोला मुन्तक़िल कर लिया था, जहाँ पर आज फज़ंदगाने गिरामी ने सुकूनत इख़्तियार करली।

विसाले पुरमालाल

उल्माए किराम का उस्ताज़, इल्म का आफ़ताबो माहताब हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! 91/ साल की ज़िन्दगी पाकर 5/ सफारुल मुज़फ्फर 1401/ मुताबिक़ 14/ दिसम्बर 1981/ ईसवी बरोज़ हफ्ता को इन्तिकाल हुआ, हज़रत मौलाना सय्यद ऐजाज़ हुसैन रज़वी जो एक मुअम्मर और दियानतदार आदमी थे, आप के ग़ुस्ल में शरीक थे, कसम खा कर कहा के दौराने ग़ुस्ल हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की ज़बान! पर लफ़्ज़े अल्लाह! जारी था, जो में ने एक दफा खुद सुना।

मज़ार मुबारक
आप का मज़ार मुकद्द्स आस्ताना आलिया कादिरिया बरकातिया रज़विया में दरवाज़े से अंदर दाखिल होते वक़्त बाएं तरफ दरवाज़े के पास है, दूसरी जानिब आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह! के खादिम खास हाजी किफ़ायतुल्लाह खान बरेलवी! का मज़ार मुहल्लाह सौदागिरान बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • मौलाना हसनैन रज़ा खान बरेलवी हयात और खिदमात

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