विलादत शरीफ
हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद मुकर्रम हज़रत अलाउल हसनी रहमतुल्लाह अलैह क़स्बा जैदपुर ज़िला जौनपुर यूपी के रहने वाले थे, वहां से सुकूनत (रिहाइश) छोड़ कर दक्कन के इलाके में रहने लगे थे, हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश वहीँ 832/ हिजरी में हुई, और वहीँ आप ने तालीम हासिल की आला तालीमों तरबियत हासिल करने के बाद कामिल हो गए,
बैअतो खिलाफत
हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत ख्वाजा शैख़ बंदानवाज़ गेसूदराज़ रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों से किसी मुरीद से आप बैअत व मुरीद थे।
हज्जो ज़ियारत
हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! तालीम मुकम्मल हासिल करने के बाद गुजरात तशरीफ़ ले गए, वहीँ से आप मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफउं व तअज़ीमा की ज़ियारत करने के लिए चले गए, हज से फारिग होने के बाद अपने वतन तशरीफ़ लाए, इस के बाद खान खाना मुहम्मद बेरम खां शहीद रहमतुल्लाह अलैह जो के सूफ़ियाए किराम दुवेशों से बहुत मुहब्बतों अकीदत रखते थे, और उल्माए किराम मुफ्तियाए उज़्ज़ाम के कद्रदान थे, और जिन के दिल में अल्लाह पाक की मखलूक पर मेहरबानी करने की मुहब्बत थी, उन्ही से आप मशवरा लेते, फिर आप दिल्ली तशरीफ़ ले आए, दिल्ली में आप तकरीबन दो साल तक रहे, आप की उमर शरीफ काफी हो गई थी, आखिर में आप पर आजिज़ीयो इंकिसारी और तसव्वुफ़ सूफ़ियत का ग़लबा हो गया था,
आप की इल्मी खिदमात
हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! तमाम उलूमे अक़्ली, व नकली, रस्मी, व हकीकी, जय्यद आलिमो फ़ाज़िल, मुफ़्ती, फकीह, और अज़ीम दानिशमंद थे, आप के क़ुतुब खाने में हर तरह की किताबें मौजूद थीं, आप ने बहुत से उलूम में खुद किताबें तहरीर फ़रमाई, बुखारी शरीफ! की शरह “फैज़ुल बारी” आप ही ने लिखी थी, इल्मुल फ़राइज़! की किताब सिरजी! को नज़्म में कर के इसपर शरह लिखी, तहकीके नफ़्से मारफत, पर फ़ारसी ज़बान में निहायत तहक़ीक़ से एक किताब तहरीर फ़रमाई, सफरुस सआदत! का इंतिखाब कर के सीरते मुबारिका पर कुछ किताबें लिखीं नीज़ अक्सर किताबों पर शुरूह, हवाशी, व तअलीकात लिखीं।
हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम की रूहे मुबारक
हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपने “रिसाला तहकीके नफ़्से मारफत” में एक जगह तहरीर फरमाते हैं, नीज़ हकीकत ये है के हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम तमाम अरवाह की अबुल अरवाह मआदने अनवार (अनवर की कान) और मंशाए मौजूदात हैं, इस वजह से तमाम रूहें बा मंज़िला जिस्म के हैं, और हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम जान हैं, आप को तमाम रूहों से वही तअल्लुक़ है जो जान को जिस्म से होता है, नीज़ आक़ाऐ काइनात हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम को रूहे अल्वी तमाम मौजूदात और उनके बाहिमी तअल्लुक़ात पर कामिल क़ब्ज़ाओ तसर्रुफ़ और इख़्तियार व इक्तिदार हासिल है, अरबाबे कशफो शूहूद, जो बयान किया है के रूहे इंसानी के ऊपर एक रूहे क़ुद्सी भी है इस का यही मतलब है के वो हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम की रूहे पाक है।
विसाल
हज़रत अल्लामा सय्यद मीर अब्दुल अव्वल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने बादशाह अकबर के दौरे हुकूमत में 998/ हिजरी में हुआ।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ सी बिलाक के पास बिजली ऑफिस के बराबर, सिवालिक रोड, सराए, शाहजी, बेगमपुर, मालवीय नगर, दिल्ली 17/ में है, मज़ार शरीफ के चारों तरफ झाड़ी वगेरा के दरख़्त हैं, लोग गलाज़त गन्दगी वगेरा डालते हैं, कोई भी पुरसाने हाल देख रेख करने वाला नहीं, अहले खेर हज़रात सुन्नी उल्माए किराम को सख्त तवज्जुह देने की ज़रूरत है, अगर इसपर धियान नहीं दिया, वरना मज़ार मुबारक का निशान भी बाकी नहीं रहेगा।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली