हज़रत बीबी फातिमा साम देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा
हज़रत बीबी फातिमा साम देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा अपने वक़्त की सालिहा, आबिदा, ज़ाहिदा, और सबरो शुक्र करने वाली नेक खातून थीं, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत ख्वाजा नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह, और बीबी फातिमा साम, मुँह बोले भाई बहन थे, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! फ़रमाया करते थे हज़रत बीबी फातिमा साम रहमतुल्लाह अलैहा एक मर्द थे, जिन को अल्लाह पाक ने औरतों की शक्ल में भेजा था, फिर फ़रमाया के दुर्वेश जब दुआ करते हैं, तो कहते हैं बा हुरमत नेक ज़ना व नेक मरदां, पहले वो अपनी दुआओं में नेक औरतों को याद करते हैं, इस ऐतिबार से के नेक औरतें प्यारी होती हैं,
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फ़रमाया करते थे के शेर जब जंगल से निकलता है तो कोई ये नहीं पूछता के नर है या मादा, इसी तरह इंसान में से ख़्वाह वो मर्द वो या औरत अगर वो नेक या परहेज़गारी में शुहरत रखता है तो उन में फर्क नहीं करना चाहिए, फिर आप ने बीबी फातिमा साम की तारीफ करते हुए फ़रमाया के वो निहायत बूढी और सालिहा बीबी थीं, में ने खुदा उनको देखा है, वो बड़ी नेक सीरत बीबी थीं,
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेने बीबी फातिमा साम की ज़बानी खुद सुना है वो कहा करती थीं, जो कोई अल्लाह पाक के रास्ते में थोड़ी सी रोटी और पानी का गिलास किसी को देता है तो अल्लाह पाक उस पर ऐसी नेमतें निछावर करता है जो निफल नमाज़ से भी बेहतर है, फिर फ़रमाया के जिस दिन हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के यहाँ फाका होता तो हज़रत बीबी फातिमा साम रोटियां पका कर भेज देतीं, चुनांचे एक दफा हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने बतौरे खुश तबई फ़रमाया के ऐ अल्लाह! जैसा के तू इस औरत को मेरे हाल से मुत्तला फरमाता है एक मर्तबा बादशाहे वक़्त को भी मुत्तला फरमा दे, ताके वो माकूल हदीया भेजे, फिर फ़रमाया बादशाह को ये दिल की सफाई कहाँ जो बीबी फातिमा साम को है।
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अक्सर हज़रत बीबी फातिमा साम देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा के मकबरा में मशगूल इबादत रहते थे, आप ने फ़रमाया के एक दिन में हज़रत बीबी फातिमा साम देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा के मज़ार मुबारक पर गया वहां में ने एक आदमी को देखा के जो लकड़ियों की टोकरी सर पर रखे होज़ के किनारे पर आया, उसने लकड़ियां होज़ के किनारे पर रख दें, फिर उसने बड़े अच्छे तरीके से वुज़ू कर के दो रकअत नमाज़ पड़े इत्मिनानो सुकून के साथ पढ़ी, मुझ को उस के वुज़ू और ज़ोको शोक के साथ नमाज़ पढ़ने पर बड़ा तअज्जुब हुआ, उस के बाद उसने तीन मर्तबा होज़ में टोकरा धोया फिर दुरूद शरीफ पढ़ पढ़ कर एक एक लकड़ी को धोया, उसके बाद उसने वो धुली हुई, टोकरी फिर होज़ में तीन मर्तबा डबु कर निकाली और किनारे पर रख दी, ये तमाम माजरा देख कर में उस के पास गया और अपनी पगड़ी में से एक अशरफी निकाल कर इनको दी लेकिन इन्होने कबूल नहीं की और कहा मुझे माज़ूर रखिए,
में ने कहा आप दो आने की खातिर इतनी तकलीफ और मेहनत कर रहे हैं, अल्लाह पाक ने आप को अशरफी भिजवाई है, ये क्यों नहीं लेते? उन्होंने फ़रमाया के मेरे वालिद भी यही काम करते थे, इन के इन्तिकाल के बाद मेरी वालिदा ने एक पोटली से कुछ रकम निकाल कर दी के उससे यही काम करना और इसी पर गुज़र बसर करना, इस के सिवा किसी दूसरे तरीके से कुछ ना लेता, फिर उन्होंने रूपया निकाल कर दिए और फ़रमाया इस से मेरा कफ़न दफ़न वगेरा करना, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के ये बात सुनकर में समझ गया के ये अब्दाल हैं, और अब्दल किसी से कोई चीज़ बतौरे नज़र या तोहफा वगेरा कबूल नहीं करते सिर्फ मज़दूरी के ज़रिये से ही अपना खर्च चलाते हैं,
बताया जाता है के हज़रत बीबी फातिमा साम देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा के मज़ार मुकद्द्स पर रोज़ाना एक अब्दाल आते हैं देख भाल के लिए, और अक्सर बुज़ुरगों से मुलाकात भी हुई है।
वफ़ात
आप ने सुल्तान नासिरुद्दीन के दौरे हुकूमत 18, शाबानुल मुअज़्ज़म 643/ हिजरी मुताबिक 1245/ ईसवी को वफ़ात पाई।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में सुन्दर नगर के सामने काका नगर में है, मस्जिद से दाख्खिन की जानिब मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
औलियाए दिल्ली की दरगाहें