हज़रत ख्वाजा शैख़ नूरुद्दीन मलिक यारे पर्रां रहमतुल्लाह अलैह
आप का इसमें गिरामी “शैख़ नूरुद्दीन” है, लेकिन “मलिक यारे पर्रां” के नाम से मशहूर हुए, मलिक यारे पर्रां नाम की शुहरत के बारे में “अख़बारूल अखियार” में मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के आप लार! के रहने वाले थे, और अपने पीरो मुर्शिद के हुक्म के मुताबिक दिल्ली तशरीफ़ लाए और हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह के करीब अपना मसकन बनाया, हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैह अपनी खानकाह के करीब इन के मसकन को देख कर बहस करने लगे के तुम यहाँ कैसे आए हो? आप ने कहा के मेरे पीर ने मुझे यहाँ भेजा है, हज़रत ख्वाजा शैख़ अबू बक्र तूसी हैदरी रहमतुल्लाह अलैह, ने कहा के इस बात का क्या सुबुत है? आप ने जल्द ही अपने मुर्शिद से जा कर अपना खिलाफत नामा और वहां क़याम करने के हुक्म की सनद ले आए, इतने कम वक़्त में फरमान ले कर चले आना एक तअज्जुब ख़ेज़ अमल था, क्यों के आप के पीरो मुर्शिद तक आने जाने में कई दिन लगते, इसी वाकिए के बाद आप को मलिक यारे पर्रां! के नाम से याद किया जाने लगा और आप इसी नाम से मशहूर भी हुए,
आप अपने वक़्त के मश्हूरो मारूफ वलिए कामिल बुज़रुग हैं, हज़रत ख्वाजा शैख़ नूरुद्दीन मलिक यारे पर्रां रहमतुल्लाह अलैह! सुल्तान गियासुद्दीन बलबन 1266/ ईसवी के ज़माने के शैख़े वक़्त! थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह आप के मज़ार शरीफ पर हमेशा आया करते थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में किलोखड़ी गाँव की जामा मस्जिद में नमाज़े जुमा पढ़ने जाया करता था, एक दिन जामा मस्जिद जा रहा था और उस दिन रोज़ा था मेरा, गरम लू चल रही थी, गर्मी के असर से मुझे चक्कर आने लगा और में एक दुकान में बैठ गया, उस वक़्त मेरे मन में ये बात आई के अगर मेरे पास एक सवारी होती तो उस पर बैठ कर चला जाता, फिर हज़रत शैख़ सआदि रहमतुल्लाह अलैह का एक शेर पढ़ कर अपने इस ख़याल पर तौबा की, इस वाकिए के तीन दिन बाद हज़रत ख्वाजा शैख़ नूरुद्दीन मलिक यारे पर्रां रहमतुल्लाह अलैह! का एक खलीफा आया अपने साथ एक घोड़ी लाया और कहा के इसे कबूल करें,
में ने कहा तुम खुद एक फ़कीर आदमी हो, में तुम से ये घोड़ी कैसे लू यानी मेने घोड़ी कबूल करने की पेश कश को ठुकरा दिया, उस आदमी ने कहा के कल रात हज़रत ख्वाजा शैख़ नूरुद्दीन मलिक यारे पर्रां रहमतुल्लाह अलैह! ने ख्वाब में कहा के ये घोड़ी सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को तोहफे में दे दो, मेने कहा के, ये हुक्म तुम्हारे शैख़ का है, अगर मेरे शैख़ ने मेरे लिए उसे भेजा है तो में उसे कबूल कर लूँगा, फिर दूसरी मजलिस में दो घोड़ी लाया और में तुहफाए खुदावन्दी समझ कर उसे कबूल कर लिया, इस के बाद मेरे घर में घोडियों की तादाद बढ़ती चली गई,
इस मक़ाम को काफी अहमियत और अज़मत हासिल है, कुछ लोगों का कहना है के यहाँ परियां रहती हैं,
वफ़ात
हज़रत ख्वाजा शैख़ नूरुद्दीन मलिक यारे पर्रां रहमतुल्लाह अलैह ने गियासुद्दीन बलबन के दौरे हुकूमत 18/ जमादीयुल उखरा 680/ हिजरी मुताबिक 1225/ ईस्वी को वफ़ात पाई।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार शरीफ दरगाह सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह से पुरानी दिल्ली आते हुए पुराना किला के बाद उलटे हाथ को हज़रत मटके शाह रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह के सामने ही में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए माज़राते दिल्ली
दिल्ली के 32/ ख्वाजा
औलियाए दिल्ली की दरगाहें