खिलाफ़तो इजाज़त
हज़रत ज़ियाउद्दीन चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के ख़ास मुरीदों में से थे, हुमायूँ के मकबरे के पीछे जो हज़रत की खानकाह और चिल्ला शरीफ है, इस को आप ही ने तामीर करवाया था,
गैबी इशारा
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी मर्ज़ी से किसी जगह क़याम नहीं फ़रमाया और ना खुद अपनी मर्ज़ी से किसी मकान के खरीदने या खानकाह बनाने की कोशिश फ़रमाई, जब गैबी इशारे से आप गालिबन 686/ हिजरी मुताबिक 1271/ ईसवी के करीब शहर की रिहाइश तर्क कर के गियासपुर के जमना के किनारे एक गाँव था, इस में तशरीफ़ लाए और छप्परों के मकान किराए पर लिए, आप और आप के तमाम मुरीदीन व लिवाहिक़ीन भी इन्ही मकानों में रहते थे, आप के रुऊसा, उमरा, और मुरीदीन ने बहुत कोशिश की के आप के लिए, खानकाह तामीर करवा दें मगर आप ने किसी को इजाज़त नहीं दी और मना फरमाते रहे, यहाँ तक के एक रोज़ हज़रत इमादुल मलिक ज़ियाउद्दीन वकील ने जो आप के खास मुरीदों में से थे, तन्हाई में अर्ज़ किया मेरी तमन्ना ये है के में आप के लिए इस जगह खानकाह तामीर काराओं ताके आप और मुरीदीन व मुख्लिसीन आराम से रहें, हज़रत ने मना फरमा दिया तब आप ने हज़रत ख्वाजा इकबाल और सय्यद हुसैन से जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मंज़ूरे नज़र थे इस बारे में सिफारिश कराइ और निहायत मिन्नतों समाजत की,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ऐ ज़ियाउद्दीन! इस जगह एक राज़ है जिस की वजह से में खानकाह तामीर करने की इजाज़त नहीं देता हूँ और वो राज़ ये है के जो इस ज़मीन पर इमारत बनाएगा वो ज़िंदा नहीं रहेगा, ज़ियाउद्दीन! ये सुन कर अर्ज़ किया के मुझ को ज़िन्दगी इतनी अज़ीज़ नहीं है जितना आप का आराम अज़ीज़ है, अगर में ज़िंदा नहीं रहूँ कोई बात नहीं है, हज़रत! की ज़ाते बा बरकात को अल्लाह पाक हमेशा मुसलमानो के सरों पर साया फ़िगन फरमाए ताके दोनों जहां की फलाहो बहबूद, खानकाह की तामीर की मुझ को इजाज़त मिलनी चाहिए, हज़रत! ने फ़रमाया के ख़ैर जब तुम अपनी मोत खुद इख्तियार करते हो, तो तुम जानो लेकिन ये ज़रूर के जो कुछ ईमारत खानकाह के मुतअल्लिक़ तुम बनाना चाहते हो वो एक महीने में तय्यर हो जाए, ज़ियाउद्दीन! ने अर्ज़ किया हज़रत ऐसा ही होगा,
चुनांचे खानकाह की तामीर शुरू हो गई उन अय्याम हज़रत किलोखड़ी तशरीफ़ ले गए, क्यों के वहां की जमा मस्जिद के करीब आप की एक क़याम गाह थी, हर शबे जुमा आप नमाज़े जुमा के लिए उस में रौनक अफ़रोज़ होते थे, जब ज़ियाउद्दीन वकील खानकाह की तामीर से फारिग हो गए तो चार सो अशरफी से महफिले सिमअ का इनइकाद किया और उसी रोज़ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह मआ अपने मुरीदीन मुतअल्लिक़ीन मुहिब्बीन खानकाह में रौनक अफ़रोज़ हुए और उसी रोज़ ज़ियाउद्दीन को महफिले सिमआ में ऐसा वज्द आया के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के ज़ानूए मुबारक पर सर रख कर अल्लाह को प्यारे हो गए,
ये खानकाह शरीफ अब तक हुमायु के मकबरे के पूरब की जानिब शुमाली की तरफ मौजूद है, अगरचे बहुत सा हिस्सा इस का गिर गया है मगर ख़ास हज़रत का मकान और क़ुतुब खाना व खल्वत का हुजरा अब भी मौजूद है, इस हुजरे में आप का विसाल हुआ और यहीं आप को ग़ुस्ल मिय्यत दिया गया, अभी कुछ दिनों पहले कुछ शर पसंदों ने इस पर कब्ज़ा करना चाहा था मगर बर वक़्त खुद्दामे दरगाह अगरचे सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को इस की इत्तिला हो गई तो इन हज़रात ने कुछ बा हिम्मत लोगों के ताव्वुन से इस की मरम्मत वगेरा करदी है और खुद्दाम हज़रात भी वहां आते जाते हैं, हर माह की 5/ तारिख को हज़रत ज़ियाउद्दीन चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की फातिहा ख्वानी होती है, लंगर तकसीम होता है, दूरदराज़ से ज़ायरीन भी आते हैं, और खिदमत करने वाले हज़रात भी वहां रहते है, अल्हम्दुलिल्लाह वहां की हाज़री से दिल को बहुत सुकून मिलता है।
मज़ार मुबारक
आप का रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार, हुमायु मकबरे के पीछे सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह व चिल्ला शरीफ के सेहन में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली