विलादत शरीफ
मुजद्दिदे वक़्त क़ुत्बे ग़ौसुल अक्ताब, वल औताद, मज़हरे कमालाते ख़फियो जली, बदरुल उलमा, फखरुल अतकिया, ज़ुब्दतुल आरफीन, वहीदे अस्र, आफ़ताबे विलायत, शैखुल मशाइख, हज़रत अब्दुल्लाह शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत 1156/ हिजरी मुताबिक 1743/ ईसवी पटियाला पंजाब हिन्द में हुई।
इस्मे गिरामी
आप रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत मुबारक से पहले आप के वालिद मुहतरम को ख्वाब में हज़रते मौला अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम की ज़ियारत हुई के आप फरमाते हैं, “अपने बेटे का नाम मेरे नाम पर रखना” चुनांचे उन्होंने आप की पैदाइश के बाद आप का नाम मुबारक “अली” रखा, जब आप सने तमीज़ को पहुंचे तो खुद को अदब के लिहाज़ से “गुलाम अली” कहिल वाया,
आप की वालिदा माजिदा ने ख्वाब में एक बुज़रुग को देखा, जिन्होंने फ़रमाया के अपने बेटे का नाम अब्दुल कादिर! रखना, आप के चचा बुज़रुग शख्सीयत थे, और उन्होंने एक माह में कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ किया था, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से आप का नाम “अब्दुल्लाह” रखा, आप अपनी तालिफ़ात में अपना नाम “फ़कीर अब्दुल्लाह उर्फ़ गुलाम अली” लिखते थे, लेकिन खासो आम में आप की शुहरत “हज़रत शाह गुलाम अली देहलवी” के नाम से मशहूर है।
तालीमों तरबियत
हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हाफिज़े कुरआन थे, और मआ तजवीद के साथ कुरआन पढ़ते थे, कयास है के आप की इब्तिदाई तालीम पंजाब ही में हुई होगी, क्यों के आप सोला साल की उमर तक यहीं रहे, आप के वालिद माजिद ने दिल्ली शरीफ में रहा करते थे, उन्होंने आप को वहां अपने पीरो मुर्शिद हज़रत नासिरुद्दीन कादरी रहमतुल्लाह अलैह जो के हज़रते खिज़र अलैहिस्सलाम के हम सुहबत थे, इन से बैअत कराने के लिए आप को भेजा, लेकिन वहां से फैज़ आप के मुकद्दर में ना था, लिहाज़ा जब आप पर बरोज़ हफ्ता 11, रजब 1174/ हिजरी को दिल्ली शरीफ पहुंचे तो तो इत्तिफाक से इसी शब् हज़रत नासिरुद्दीन कादरी रहमतुल्लाह अलैह दुनिया से तशरीफ़ ले गए,
आप के वालिद माजिद ने फ़रमाया: में ने तो तुम्हे इन से बैअत के लिए तलब किया था, लेकिन खुदा की मर्ज़ी ये नहीं थी, अब तुम जहाँ अपना फ़ाइदा देखो और जिस जगह तुम्हे कलबी इत्मीनान हो वहां मुरीद हो जाओ,
1174/ हिजरी से 1178/ हिजरी तक आप चार साल दिल्ली शरीफ ही में इल्मे दीन हासिल करते रहे, और उसी दौरान आप ने हज़रत शाह ज़ियाउल्लाह, और हज़रत शाह अब्दुल अद्ल, खुलफाए हज़रत ख्वाजा मुहम्मद जुबेर सरहिंदी, मुतवफ़्फ़ा 1151/ हिजरी हज़रत ख्वाजा मीर दर्द, हज़रत शाह फखरुद्दीन, हज़रत शाह नानू चिश्ती देहलवी, और हज़रत शाह गुलाम सादात चिश्ती रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन से भी इल्मी फ़ैज़ो बरकात हासिल किए,
और हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इन हज़रात से तफ़्सीरे कुरआन इल्मे हदीस का इल्म हासिल किया, और हदीस की सनद मुजद्दिदे वक़्त सिराजुल हिन्द हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह मुतवफ़्फ़ा 1139/ हिजरी मुताबिक 1824, ईसवी से ली और आप ही से बुखारी शरीफ पढ़ी और अपने मुर्शिद से भी हदीस की सनद हासिल की।
बैअतो खिलाफत
जब आप की उमर बाईस साल थी, आप हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह मुतवफ़्फ़ा 1195/ हिजरी! की खिदमत में तशरीफ़ लाए और बैअतो इरादत की ख्वाइश पेश की, इस पर आप के मुर्शिद ने फ़रमाया: जहाँ ज़ोको शोक पाओ, वहां मुरीद हो जाओ, यहाँ तो बगैर नमक के पथ्थर चाटना होगा, आप ने अर्ज़ की, मुझे यही पसंद है, हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: तो मुबारक हो और फिर आप को बैअत कर लिया, हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने आप को सिलसिलए आलिया कादिरिया में मुरीद फ़रमाया और तल्कीनों नसाहे तरीका नक्शबंदिया मुजद्दिया फ़रमाया, बाद अज़ाँ आप शबो रोज़ ज़िक्रो इबादत में मसरूफों मशगूल हो गए और पंदिरा 15/ साल तक पीरो मुर्शिद के ज़िक्रो मुराकिबा के हल्के में शिरकत करते रहे।
रियाज़तो मुजाहिदा
एक मर्तबा आप ने फ़रमाया के जब में ने तरीकत में कदम रखा तो इब्तिदा में मुझे मआश (कारोबार कामकाज) की बहुत तंग्गी थी, जो कुछ था वो भी छोड़ कर तवक्कुल इख्तियार कर लिया, एक पुरानी बोरी बिस्तर और ईंट का सिहाना तकिया बना लिया, एक मर्तबा शिद्दत ज़ोफ़ से मेने ने एक हुजरे में दाखिल हो कर दरवाज़ा बंद कर लिया के यही मेरी कब्र है, उस ज़ात पाक ने किसी के हाथ फुतूह नज़राना भेजा, अब पचास साल से में इसी गोशए कनाअत में बैठा हूँ,
एक दफा आप ने दरवाज़ा बंद कर लिया के अगर में मरूंगा तो इसी हुजरे में, आखिर अल्लाह पाक की, मदद हुई, एक शख्स आया और उसने कहा के दरवाज़ा खोलो आप ने ना खोला तो उसने फिर कहा के मुझे आप से कुछ काम है दरवाज़ा खोलो, आप ने फिर भी दरवाज़ा न खोला, वो कुछ रूपये बज़रीए शिगाफ़ (सूराख) अंदर फेंक कर चला गया, पस उसी दिन से फुतूह नज़राना का दरवाज़ा खुल गया।
गौसे पाक की बशारत
बैअतो तरीकत के बाद आप पंदिराह साल तक अपने पीरो मुर्शिद की खिदमत में रहकर ज़ुहदो मुजाहिदा और रियाज़त में मसरूफ रहे, हल्काए ज़िक्र और मुराकिबा में शरीक रहकर फैज़ लेते रहे और आला शरफ़ पाया, आप खुद फरमाते हैं के शुरू में मुझे तरद्दुद हुआ के अगर में तरीकाए नक्शबंदिया में शुगल इख़्तियार करूँ तो कहीं हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु नाराज़ न हो जाएं, इसी इस्ना में एक रात ख्वाब में देखा एक मकान में हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए हुए हैं, और आप के सामने एक और मकान है, जिस में हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह रौनक अफ़रोज़ हैं, में ने हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर होना चाहा तो हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु फरमाने लगे, खुदा की मर्ज़ी यही है, जाओ इस में कोई मुज़ाइका नहीं।
जानाशिनी खानकाहे मज़हरिया
आप हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की शहादत के बाद उन के जानशीन हुए, और तालिबान। खुदा की तालीमों तरबियत में मसरूफ हो गए, अगरचे आप ने सिलसिलए आलिया कादिरिया में की थी लेकिन सब सलासिल की इजाज़त से मुशर्रफ हुए, लिहाज़ा आप ने ज़िक्रो अज़कार व औराद तरीकाए आलिया नक्शबंदिया में जारी किया और इसी सिलसिले की तरवीजो इशाअत फ़रमाई।
तेरवी सदी के मुजद्दिद
हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप अपने वक़्त के शैख़ुश शीयूख और साहिबे इरशाद, आप के खलीफा हज़रत मौलाना अब्दुर रऊफ राफ्त रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत पीर दस्तगीर, क़ुत्बे दौरां, कय्यूमे ज़मा, मिहरे सिपहरे विलायत, मज़हरे असरारे इलाही, महबते अनवारे ना मुतनाही, फैज़े सुब्हानी, मसदरे बरकाते सुब्हानी, काशिफे असरारे ख़लकतो मुहब्बत, बने और तल्कीनों इरशाद सिलसिला अपने पीरो मुर्शिद के रूबरू जारी फ़रमाया,
आप का अपने ज़माने मे इतना शुहरा था अकीदतमंद मुहिब्बीन उलमा ने आप को तेरवी सदी का मुजद्दिद कहते थे और अगर इस रूहानी इन्किलाब का अंदाज़ा करें, जो आप के खलीफा हज़रत खालिद रूमी रहमतुल्लाह अलैह की बदौलत बिलादे तुरकी, मुल्के शाम, रूम व ईराक और कुर्दिस्तान मे हुआ तो ये इज़हारे अकीदत बिलकुल सच दिखाई देती है, हिंदुस्तान मे भी आप का बड़ा असरो इक्तिदार था और दिल्ली शरीफ मे आप की खानकाह मुजद्दिदे वक़्त सिराजुल हिन्द हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे का मद्दे मुक़ाबिल समझी जाती थी, एक मे वलियुल्लाही तरीके की मियाना रवि और इल्मो इरफ़ान था और दूसरे मे मुजद्दिदी मशरब का अहयाए ज़ोको शोक और मुताशररे यानि शरीअतो तरीकत तसव्वुफ़ था।
खानकाहे मज़हरिया नक्शबंदिया मे दूरदराज़ से लोगों का आना
तरीक़ए नक्शबंदिया मुजद्दिदीय की आलमगीर नशरो इशाअत आप के लिए मुकद्दर थी, आप को सिलसिलए मुजद्दिदीय का मुजद्दिद बल्के तेरवी सदी हिजरी मे सुलूक इलल्लाह और तज़किया नफ़्स व एहसान का मुजद्दिद माना गया है, जिस पर अरबो आजम के तालिबीन ने परवानो की तरह हाज़िर हुए, हिन्दुस्तान का कोई ऐसा शहर न होगा, जहाँ आप का खलीफा ना हो,
आप की ज़ात मुबारक से तमाम जहाँ मे फैला मुल्कों दूरदराज़ से लोगों ने आ कर बैअतो इरादत की, आप की खानकाह शरीफ मे मुल्के रूम, बाग्दाद् शरीफ, मिस्र, चीन, और हब्श, के लोग आ कर बैअत मुरीद हुए, और उन्होंने खानकाहे मज़हरिया शरीफ की खिदमत को सआदते अब्दी समझा और आप के करीब के शहरों का मिस्ल हिंदुस्तान, पंजाब और अफगानिस्तान, का तो कुछ ज़िक्र नहीं के लोग टिड्डी दल की तरह आते थे, आप की खानकाहे मज़हरिया शरीफ! कम से कम पाँचसों फ़कीर रहते थे, और सब का रोटी कपड़ा लिबास खाना खर्च आप ही के ज़िम्मे था, ये सब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त गैब से काम चलाता था,
हज़रत शाह अब्दुर रऊफ मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 1253/ हिजरी मुताबिक 1837/ ईसवी) ने एक रोज़ के तालिबीन मे समरकंद, बुखारा, गज़नी, ताशकंद, हिसार, कंधार, काबुल, पिशावर, मुल्तान, लाहौर, सरहिंद, अमरोहा, सम्भल, रामपुर, बरैली शरीफ, लखनऊ, जाइस, बहराइच, गोरखपुर, अज़ीमा आबाद, ढाका, हैदराबाद पूना वगेरा के नाम लिखे हैं, 27/ अप्रेल 1816/ ईसवी को खानकाहे मज़हरिया शरीफ! मे आप की खिदमत मे फ़ैज़ो बरकात हासिल करने के लिए हाज़िर थे,
आप की फय्याज़ी
हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की फय्याज़ी सख्वात इस क़द्र थी के कभी साइल को महरूम नहीं फ़रमाया: जो उसने मानगा व्ही दिया, जो चीज़ उम्दा और तोहफा आप के पास आता उस को बेच कर फुकरा गुरबा मसाकीन पर सर्फ़ करते और जैसा गाड़ा मोटा कपड़ा तमाम फकीरों को मयस्सर होता, वैसा ही आप भी पहिनते और जो खाना सब को मिलता व्ही आप कहते थे।
आप पर फ़ज़्ले खुदा
सैंकड़ों उल्माए किराम मशाईखे उज़्ज़ाम, और सुल्हा, आप की खिदमत में फैज़ लेने के लिए हाज़िर हुए, उन में से बाज़ तो हुज़ूर रह्मते नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख्वाब में हुक्म करने से खिदमत में पहुंचे, मसलन हज़रत मौलाना खालिद रूमी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना शैख़ कुर्दी रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत सय्यद इस्माईल मदनी रहमतुल्लाह अलैह, और बाज़ ने बुज़ुर्गों के शोक दिलाने से बैअत की थी, मसलन हज़रत मौलाना जान मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह और कुछ ने आप को ख्वाब में देखा तो हाज़िरे खिदमत हो गए, आप ने सिलसिलए नक्शबंदिया मुजद्दिदीय की तरवीजो इशाअत व तरक्की में बहुत मेहनत व रियाज़त की और आखिर कार आप से इस क़द्र फैज़ आप की ज़िन्दगी मुबारक में जारी हुआ शायद ही किसी शैख़ से जारी हुआ हो,
हज़रत अल्लामा व मौलाना गुलाम मुहीयुद्दीन कसूरी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 1270/ हिजरी मुताबिक 1853/ ईसवी) अपनी किताब में तहरीर फरमाते हैं के एक रोज़ में असर के बाद हाज़िर था, हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया अल हम्दुलिल्लाह हमारा फ़ैज़ा दूर दूर तक पहुंच गया है, मक्का शरीफ में हमारा हल्का बैठता है, मदीना मुनव्वरा में हमारा हल्का बैठता है, बग्दाद् शरीफ, रूम, मराकश मुरक्को, हमारा हल्का जारी है और फिर मुस्कुरा कर फ़रमाया के बुखारा तो हमारे बाप का घर ही है।
इबादतों रियाज़त
हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बहुत कम सोते थे, अगर तहज्जुद के वक़्त लोगों को ख्वाबे गफलत में पाते तो उन्हें जगाते थे, खुद तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते और फिर मुराकिबा और तिलावत कुरआन पाक में मसरूफ हो जाते और रोज़ाना दस पारे पढ़ते थे, मगर ज़ोफ़ की हालत में कम कर देते थे,
सुबह की नमाज़ अव्वल वक्त में जमात के साथ अदा कर के अशराक़ तक मुराकिबा में रहते, इस के बाद आप तफ़्सीरे कुरआन पाक और हदीस मुबारक का दरस देते थे।
ज़ाएरीन के साथ हुसने सुलूक
जो कोई भी आप से मुलाकात के लिए आता, उसे कुछ वक़्त दे कर रुखसत कर देते और माज़रत करते के फ़कीर इन दिनों गोरो फ़िक्र में मसरूफ है, और उसे मिठाई या तोहफा भी देते, नवाब मुहम्मद मीर खान जो हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की औलाद, और हज़रत सय्यदना ख्वाजा बाकि बिल्लाह नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के नवासे थे और आप इन्ही बुज़रुग की वजह से इनकी बहुत इज़्ज़त करते थे,
ज़वाल के करीब आप थोड़ा सा खाना खाते, उमरा रुऊसा अमीरो के घरों का मुकल्लफ़ खाना जो आप के लिए अक्सर अत था, खुद भी ना खाते बल्कि उसे तालिबों इल्म के लिए भी पसंद नहीं फरमाते, फिर अपने पीराने उज़्ज़ाम ख़ुसूसन हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 791/ हिजरी) की नियाज़ के लिए हलवा वगेरा तय्यार करवा कर फकीरों में तक्सीम करते और अपने वालिद माजिद की भी नियाज़ करते थे।
सीरतो ख़ासाइल
हज़रत शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फुकरा से मुहब्बत करते थे, बाज़ लोग आप की किताबें चुरा कर ले जाते और व्ही बेचने के लिए आप के पास ले आते, तो आप उस किताब की तारीफ फरमाते और उसकी कीमत दे देते, अगर कोई कहता के हज़रत ये किताब आप ही के क़ुतुब खाने की है, तो आप नाराज़ हो कर मना फरमाते के साहब एक कातिब की कई किताबें होती हैं,
आप दोपहर का खाना खा कर कैलूला फरमाते थे, फिर दीनी क़ुतुब मसलन नफ़्हातुल उन्स! और आदाबुल मुरीदीन! वगेरा का मुताला में मसरूफ हो जाते, ज़ोहर की नमाज़ अदा करने के बाद तफ़्सीरे कुरआन पाक व हदीस शरीफ का दर्स देते, फिर असर की नमाज़ पढ़ते और फिर हदीस और तसव्वुफ़ की किताबें पढ़ाते, मसलन मक्तूबाते इमामे रब्बानी, अवारिफुल मआरिफ़! और रिसाला कुशेरिया, इसी तरह शाम तक ज़िक्रो अज़कार में मशगूल रहते, शाम को नमाज़ के बाद ख़ास खास मुरीदों से मुलाकात करते थे,
रात का खाना खा कर इशा की नमाज़ पढ़ते, और अक्सर रात में ज़िक्रो अज़कार और मुराकिबा में गुज़ार देते, अगर नींद ज़ियादा आती तो मुसल्ले पर ही दाएं करवट पर ही लेट जाते, कभी चार पाई पर भी सोते थे, फ़ुतूह नज़राना जो नज़राना आता था, आप उसे गरीब फुकरा में तकसीम फरमा देते थे, आप ने अपने पाऊं कभी दराज़ नहीं किए, अक्सर एहतियात के तौर पर उस हालत में रखते थे, जो हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मनकुल है और औलियाए किराम से जो साबित है उसी हालत में मुराकिबा में बैठते थे,
लिबास:
आप खुद मोटा लिबास पहिनते थे, अगर कोई नफीस लिबास भेजता तो उसे बेच कर कई कपडे खरीद लेते और उन्हें गुरबा में तकसीम कर देते थे, और इसी तरह दूसरी चीज़ों के बारे में भी करते थे, सखावत! आप आला दर्जे के सखी थे, ये सखावत ख़ुफ़िया तौर पर करना बहुत पसंद था, लोगों के सामने कम करते थे, आप पर ह्या इस कदर ग़ालिब थी के लोगों की शक्ल देखना तो दरकिनार कभी अपना चेहरा मुबारक भी आइना में नहीं देखता था, आप मोमिनो पर शफकत इस कदर फरमाते थे, के अक्सर रात को उनके हक में दुआ फरमाते थे, हमसाए के साथ हुस्ने सुलूक भी करते, हकीम कुदरतुल्लाह खान जो के आप का हमसाया पडोसी था, और अक्सर आप की ग़ीबत में अपना वक़्त सर्फ़ करता था, एक मर्तबा किसी वजह से कैद हो गया, आप ने इसकी रिहाई के लिए बेहद कोशिश फ़रमाई, अगर कोई आप की ग़ीबत करता तो फरमाते वाकई बुराई मुझ में है, आप ग़ीबत सुन्ना तक पसंद नहीं करते थे, आप की मजलिस शरीफ में दुनिया का ज़िक्र नहीं होता था, और नाही उमरा रुऊसा का ज़िक्र होता था, गोया ये हज़रते सय्यदना सुफियान सौरी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस थी,
अम्र बिल मारूफ नहीं अनिलमुनकर! आप का शेवा था, आप जिसमे भी बुराई देखते फ़ौरन रोक देते और हमेशा अच्छे का हुक्म देते थे, आप को कुरआन शरीफ का निहायत ही ज़ौक़ था, अव्वाबीन और तहज्जुद की नमाज़ में हज़रत शाह अबू सईद मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह से खत्मे कुरआन मजीद सुनते थे, आप को हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इश्क का मर्तबा हासिल था, जब आप हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इस्मे गिरामी लेते तो बेताब हो जाते थे, आप की तबियत मुबारक इस कद्र नाज़ुक थी के अगर कोई दूर तम्बाकू का धुँआ छोड़ता (हुक्का) पीता तो आप इस को पसंद नहीं करते थे।
कशफो करामात
गुमशुदा लड़का मिल गया
एक शख्स आप रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ की के हज़रत! मेरा बेटा दो माह से गुम है, आप दुआ फरमाएं के वो मिल जाए, आप ने फ़रमाया के तेरा बेटा तो तेरे घर में है, वो हैरान हुआ, के में तो अभी घर से आ रहा हूँ, लेकिन हज़रत फरमाते हैं के वो घर में है, लिहाज़ा वो हज़रत के फरमाने पर घर गया तो देखा के वाकई लड़का घर में बैठा हुआ है।
बिमारी से शिफा मिल गई
गरीबुल्लाह नामी सक्का जो के आप के हमसाये में रहता था, एक रोज़ शदीद बीमार हुआ और मोत के करीब होने लगा, उस के रिश्तेदार रात के आखरी हिस्से में उसे हज़रत के पास ले गए, आप ने तवज्जुह और दुआ फ़रमाई, तो उसे अल्लाह के करम से सेहते कामिला मिल गई।
हर एक का उसकी तमन्ना के मुताबिक पाना
एक बार आप के चंद खुलफ़ा बहुत दूर से आप के पास आए, वो रास्ते में एक दसरे से कहने लगे के हज़रत का मामूल है के कदम बोसी के वक़्त आप तबर्रुक देते हैं, एक ने कहा के मुझे इस मर्तबा मुसल्ले की ख्वाइश है, दूसरे ने कहा के में कुलाह चाहता हूँ, तीसरे ने भी किसी चीज़ की तलब का ख़याल किया, जब वो हज़रत की बारगाह में हाज़िर हुए तो आप ने हर एक को उसकी तमन्ना के मुताबिक व्ही चीज़ इनायत फ़रमाई।
तुम्हारे घर बेटा पैदा होगा
एक सालेहा ज़ईफ़ औरत का जवान बेटा फौत हो गया, आप उस की ताज़ियत के लिए तशरीफ़ ले गए, दौरान ताज़ियत फ़रमाया के अल्लाह पाक तुम्हे इसका नेमल बदल अता फरमाए, उस औरत ने कहा हज़रत में अब बूढ़ी हो गई हूँ, और मेरा शोहर भी बूढा हो गया है, अब औलाद कहाँ होगी, आप ने फ़रमाया के अल्लाह पाक कादिर है, इस के बाद आप मस्जिद में तशरीफ़ लाए और वुज़ू कर के दो रकअत नमाज़ पढ़ी और उस औरत के यहाँ फ़रज़न्द! होने के लिए दुआ की, दुआ के बाद आप अपने साथी मियां अहमद यार से फ़रमाया के इस औरत की औलाद के लिए मेने दुआ की है कुबूलियत का असर ज़ाहिर होगा और इंशा अल्लाह इस के यहाँ बेटा ही होगा, चुनांचे जैसा आप ने कहा था अल्लाह पाक के करम से उस औरत के घर बेटा ही हुआ
गैर मुस्लिम का ईमान लाना
एक रोज़ एक हिन्दू बरहमन का खूबसूरत लड़का आप की मजलिस मुबारक में इत्तिफाक से आ गया, तमाम अहले महफ़िल की निगाहें उस की तरफ उठीं, आप ने उस पर नज़रे करम फ़रमाई, उसी वक़्त उसने ज़ुन्नार उतार दी और फ़ौरन कलमा शरीफ पढ़ कर मुस्लमान हो गया और अपने हुस्न को नूरे इस्लाम से मुनव्वर किया,
दर्द का ख़त्म होना
मौलवी करामतुल्लाह जो आप के खादिम थे, एक रोज़ उन के पहलू में शदीद दर्द हुआ, आप ने अपना हाथ मुबारक दर्द की जग रखा और दुआ फ़रमाई उसी वक़्त अल्लाह पाक ने शिफा नसीब फ़रमादि।
हिदायत नसीब होना
एक औरत आप के पास आई और अर्ज़ की हज़रत मेरा बेटा फौज में नौकर था, उसकी नौकरी जाती रही, उसने तमाम लिबास तर्क कर के लंगोट पहिनली है, और दीनो मज़हब से हट गया है और भांग पीता है, आप ने फ़रमाया के बैठ जाओ, जिससे उसके तमाम लताइफ जारी हो गए, उस के बाद आप ने उस के बेटे के हाल पर तवज्जुह नज़रे करम फ़रमाई, जिस की बरकत से वो तमाम गलत बातों को छोड़ कर राहेरास्त पर आ गया।
आप के मलफ़ूज़ात शरीफ
तालिबे ख्वाइशात! फ़रमाया के जो ख्वाइशात का तालिब हो वो खुदा का बंदा कैसे हो सकता है? ऐ अज़ीज़! जब तक तो किसी चीज़ के ख़याल में है तो उसी चीज़ का गुलाम रहेगा, मुहब्बते दुनिया! फ़रमाया के दुनिया की मुहब्बत खताओं की जड़ और यही कुफ्रिया गुनाहो की असल है, सूफी और दुनिया और आख़िरत! फ़रमाया के सूफी को दुनिया व आख़िरत पसे पुश्त डाल कर मौला करीम की तरफ मुतवज्जेह हो जाना चाहिए,
मर्दों के अक्साम! फ़रमाया के लोग चार किस्म के होते हैं: नामर्द, मर्द, जवांमर्द, और फर्द, इन में दुनिया के तालिब नामर्द, आख़िरत के तालिब मर्द, आख़िरत व मौलाना करीम के तालिबे जवाँमर्द, और मौला करीम के तालिब फर्द यानि यगाना होते हैं, अक्सामे बैअत! फ़रमाया के बैअत तीन किस्म की होती है: पहली पीराने उज़्ज़ाम की वसीले के लिए, दूसरी गुनाहों से तौबा और तीसरी निस्बत बातनि हासिल करने के लिए, मखदूम बनने का राज़! फ़रमाया के जो मखदूम बनना चाहे वो मुर्शिद की खिदमत करे, यानि जिस ने खिदमत की वो मखदूम बन गया, तसफ़िया क्लब! फ़रमाया के इस ज़माने में तसफ़िया क्लब के लिए कोई अमल औलिया अल्लाह के अज़कार की किताबों के मुताला से बेहतर नहीं है, हर रोज़ ज़िक्र इस्मे ज़ात! फ़रमाया के हर रोज़ पचीस हज़ार मर्तबा ज़िक्रे इस्मे ज़ात “अल्लाह अल्लाह” दिल के साथ करना ज़रूरी है।
आप की तसनीफ़ात
- अहवाले बुज़ुर्गान फ़ारसी
- दारुल मआरिफ़ फ़ारसी
- इज़ाहुत तरीका फ़ारसी
- रिसाला अज़कार फ़ारसी
- रिसाला दर ज़िक्र मक़ामात व मआरिफ़
- रिसाला दर ऐतिराज़ात शैख़ अब्दुल हक बर हज़रत शैख़ मुजद्दिद फ़ारसी
- रिसाला दर मुख़ालिफ़ीन हज़रत मुजद्दिद फ़ारसी
- कमालाते मज़हरिया फ़ारसी
- रिसाला दर तरीकाए नक्शबंदिया फ़ारसी
- मक़ामाते मज़हरी
- मक्तूबात गिरामी
आप के चंद मशाहीर खुलफाए किराम
- हज़रत मौलाना शाह अबू सईद मुजद्दिदी
- हज़रत मौलाना शाह अहमद सईद
- हज़रत मौलाना सय्यद अहमद कुर्दी
- हज़रत मौलाना सय्यद इस्माईल मदनी
- हज़रत मौलाना बशारतुल्लाह
- हज़रत मौलाना खालिद शहरोज़ी कुर्दी
- हज़रत मौलाना शाह रफ़्त मुजद्दिदी
- हज़रत शैख़ सआदुल्लाह
- हज़रत अखुन्द शेर मुहम्मद
- हज़रत शाह अब्दुर रहमान मुजद्दिदी जालंधरी
- हज़रत मौलाना अब्दुर रहमान शहजानपुर
- हज़रत मुल्ला अब्दुल करीम तुर्किस्तानी
- हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह मगरिबी
- हज़रत अल्लामा गुलाम मुहीयुद्दीन कसूरी पाकिस्तान
- हज़रत मियां मीर कमरुद्दीन समरकंदी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
वफ़ात
आप की वफ़ात 22/ सफारुल मुज़फ्फर 1240/ हिजरी मुताबिक 1824/ ईसवी को हुआ।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में चितली कबर से आगे उलटे हाथ की तरफ खानकाह शाह अबुल खेर के नाम से मशहूर है, तुर्क मान गेट पर मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- ख़ज़ीनतुल असफिया
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
- दिल्ली के बाईस ख्वाजा
- मक़ामाते मज़हरी
- तज़किरा मशाईखे नक्शबंदिया
- मक़ामाते मज़हरी
- तारीखों तज़किरा खानकाहे मज़हरिया दिल्ली