हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रज़वी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रज़वी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

विलादत व नसब

मुहसिने मिल्लत, हज़रत मौलाना अश्शाह साजिद अली खान बिन, हज़रत मौलाना वाजिद अली खान बिन, मौलाना वारिस अली खान, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के चहीते दामाद! और मोतमद ख़ास थे, आप की पैदाइश मोहल्ला सौदागिरान ज़िला बरैली शरीफ में 1911/ ईसवी को हुई, आप मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! की सगी बहन के पोते हैं, और आप की फूफी साहिबा हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान की अहलिया! हैं, आगे जा कर आप का नसब मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के आबाओ अजदाद से मिल जाता है, लिहाज़ा आप भी अफगानी बड़हेच पठान हैं।

तालीमों तरबियत

हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! जब आप की उमर शरीफ चार साल चार महीने चार दिन की हुई तो मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने बिस्मिल्लाह ख्वानी कराइ, दीनी तालीम के साथ साथ मुरव्वजा दुनियावी तालीम में भी महारत हासिल थी, बहुत दिनों तक फौज में मुलाज़िमत की फिर घर तशरीफ़ लाए, और मुस्तकिल क़याम पज़ीर हुए।

आप की खिदमाते जलीला

हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने लंगरे नूरी, “दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम” का एहतिमाम इनसिराम, महमानो का इंतिज़ाम वगेरा की ज़िम्मेदारी अता फ़रमाई, और मलिकुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती ज़फरुद्दीन बिहारी रहमतुल्लाह अलैह! से एक खत में फ़रमाया:
“आप अपनी आफ़ियत के साथ किताब आफिया भेज दें” ये किताब हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! को मसाइल सर्फ़ समझाने के लिए, मंगाई गई थी, फिर हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने रज़ा मस्जिद की इमामत, उर्से रज़वी! का एहतिमाम व इनसिराम भी आप के ज़िम्मे कर दिया था, जिस को आप ने बा खूबी निभाया, बल्कि हिंदुस्तान के चारों अतराफ़ के गाऊं गाऊं में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के तब्लीगी अस्फार हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! की बे लोस खिदमत और हज़रत को उमूरे ख़ाना दारि से बेनियाज़ कर देने की वजह से ही मुमकिन हुआ, तभी हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया:
“अल्लाह पाक साजिद मियां सल्लामाहु को शिफ़ाऐ कामिल वा आजिल अता फरमाए, अल्लाह पाक उन को जज़ाए खेर दे, मदरसा की बहुत अच्छी खिदमत की और पाबंदी से रज़ा मस्जिद की इमामत फ़रमाई”।

बा रोअब शख्सीयत

हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! को खिदमते हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! और शख्सीयत मुफ्तिए आज़म! ने ऐसा निडर, बेबाक, दिलेर शेर, बना दिया था, जो वक़्त की किसी आंधी से नहीं घबराए, 1976/ ईसवी में इमरजंसी के आशोब व भयानक दौर में नसबंदी हराम होने का मुफ्तिए आज़म हिन्द! का तारिख साज़ फतवा के नसबंदी हराम है, इसे हज़ार हिम्मत व कोशिश से शाए कराना, डी, एम, की तलब पर उल्माए किराम के साथ तशरीफ़ ले जाना, अंग्रेज़ी मुकालिमा में डी, एम, पर सबक़त ले जाना और फिर बरजस्ता जवाब देना, के हम अपनी सरकार के पाबंद हैं तुम अपनी सरकार के मुलाज़िम हो जो चाहो करो,
आप की तकरीर दिल पज़ीर का ऐसा असर हुआ के हुकूमते वक़्त को अपना फैसला वापस लेना पड़ा, गोरमेंट को घुटने टेकने पड़े, क्यों न हो के आप मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के मुरीद, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दामाद व खलीफा थे।

अख़लाक़ो आदात

हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! के अख़लाक़ो किरदार का हर शख्स मद्दाह है, आमो ख़ास पर आप का यकसां असर था, इसी लिए तो हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने खुद तारीफ फ़रमाई, बड़े बड़े उल्माए किराम जैसे सरकार अल्लामा गुलाम जिलानी मेरठी, मुनाज़िरे अहले सुन्नत मुफ़्ती मुहम्मद हुसैन सम्भली, रईसे आज़म ओड़िसा हज़रत अल्लामा मुजाहिदे मिल्लत, शमशुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शमशुद्दीन जाफरी रज़वी जौनपुरी “मुसन्निफ़ कानूने शरीअत”, हज़रत ख्वाजा मुज़फ्फर हुसैन पूरनवी, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन वगेरा आप के एहतिमाम मदरसा को देख कर फरमाते के “हिंदुस्तान भर में आप जैसा नाज़िम नहीं देखा” ज़ियारत को आने वाले कहते आप जैसा मुन्तज़िम नहीं देखा! गर्ज़ के हज़रत मौलाना साजिद अली खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! सैंकड़ों खूबियों के जामे थे।

विसाले पुरमलाल

20/ सफारुल मुज़फ्फर 1399/ हिजरी मुताबिक 19/ जनवरी 1979/ ईसवी बरोज़ बुद्ध को हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक सिटी कब्रिस्तान ज़िला बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

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