विलादत शरीफ
मज़हरे कमालाते अनवारे इलाही वहीदे अस्र, शैख़े तरीकत, मख़्दूमे मिल्लत, आलिमे दीन, बहारे बागे विलायत, किब्लए अहले सफा, उल्माए दहर, आली मक़ाम, हामिए शरीअते इस्लामिया, हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश मुबारक जुमा के दिन फजर के वक़्त माहे रमज़ानुल मुबारक 1111/ हिजरी या 1113/ हिजरी मुताबिक 13, मार्च 1699, ईसवी को अल्वी सादाते किराम में हुई।
इस्मे गिरामी
आप का सिलसिलए नसब हज़रत मुहम्मद बिन हनफ़िया की वसातत से हज़रते मौला अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम तक पहुँचता है, आप के वालिद माजिद “मिरज़ा जान! हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के दरबार में साहिबे मनसब ओहदेदार थे, हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह को जब आप की विलादत की खबर मिली तो आप ने कहा बेटा बाप की जान होता है, चूंके वालिद का नाम मिरज़ा जान! है, हमने इन के बेटे का नाम “जाने जान” रखा है, लेकिन अवाम में “मज़हरे जाने जाना! के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं,
आप का असल नाम “जाने जान” लक़ब, शम्सुद्दीन! और हबीबुल्लाह, हैं, और तखल्लुस मज़हर! है, आप के वालिद माजिद मिरज़ा जान! जो सिलसिलए कादिरिया में हज़रत शाह अब्दुर रहमान कादरी रहमतुल्लाह अलैह से मुरीद थे, आप की पैदाइश मुबारक के बाद दुनिया से किनारा काश हो गए और बाकी उमर फ़क्ऱो कनाअत में गुज़ारी।
वालिदैन
आप के वालिदैन के सिलसिले में कुछ ज़ियादा वज़ाहत नहीं मिलती, लेकिन इतना ज़रूर मालूम होता है के वालिदा माजिदा शहर बीजापुर की शैख़ ज़ादी अमीर खानदान से तअल्लुक़ रखती थीं, और बड़ी नेक पारसा तदय्युन खातून थीं, और आप के वालिद माजिद का नाम “मिर्ज़ा जान” था, जो फ़ज़्लो कमाल इल्मो फन मे बुलंद मकाम रखते थे।
तालीमों तरबियत
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद मुहतरम ने आप की तालीमों तरबियत के लिए निहायत आला एहतिरामो इनसिराम फ़रमाया, इब्तिदा में रसाइल मुहावरा फ़ारसी अपने वालिद माजिद मिरज़ा जान! से पढ़ीं, क़ुरआने पाक मआ तजवीद व किरात हज़रत कारी अब्दुर रहीम साहब! और इल्मे हदीस व इल्मे तफ़्सीर हज़रत हाजी मुहम्मद अफ़ज़ल सियालकोटि रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द शैखुल मुहद्दिसीन हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह बिन सालिम मक्की रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की, इन उलूम के अलावा हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! को दीगर उलूमे ज़ाहिरी व बातनी फुनून में भी ऊबूर, दस्त गाह हासिल थी, बिलख़ुसूस फन्ने सिपाह गिरी में आप को इस कदर महारत हासिल थी, फरमाते थे के अगर बीस आदमी तलवारें खींच कर मुझ पर हमला करें, और मेरे पास हाथ में लाठी हो तो एक आदमी भी मुझे ज़ख्म नहीं पंहुचा सकता, नीज़ फरमाते हैं के एक बार मस्त हाथी राह में आ रहा था, में घोड़े पर सवार सामने से आ गया, फील बान ने शोर मचाया के हट जाओ, दिल ने गवारा नहीं किया, के एक बेजिगर हैवान के मुकाबले से हट जाऊं, चुनांचे हाथी ने निहायत गज़ब की हालत में मुझे सूंड में लपेट लिया, में ने खंजर निकाल कर उसकी सूंड में मारा, उस ने चीख मार कर मुझे दूर फेंक दिया और में अल्लाह पाक के फ़ज़्ल से महफूज़ रहा।
आसारे रुश्दो हिदायत
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते थे के शोरे इश्को मुहब्बत और रग़बते इत्तिबाए शरीअतो सुन्नत मेरी तीनत के खमीर में था, जब मेरी उमर नो साल की थी उस वक़्त में ने हज़रते सय्यदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ख्वाब में देखा के बाकमाल इनायत पेश आए, उन्ही अय्याम में जब कभी हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु का ज़िक्र मुबारक आता था तो उनकी सूरते मुबारक मेरे सामने आ जाती थी, में ने बारहा उनको चश्मे ज़ाहिरी से देखा और अपने हाल पर बहुत करम करने वाला पाया,
एक मर्तबा आप के वालिद आप को अपने मुर्शिद हज़रत शाह अब्दुर रहमान कादरी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में ले गए, आप फरमाते हैं के शाह साहब से करामाते ज़ाहिर होती थी, मगर नमाज़ में तसाहुल फ़रमाया करते थे, मुझे डर था के मुबादा मेरे वालिद साहब मुझे उन से बैअत ना करवा दें, एक दिन में ने पूछा के हज़रत अब्दुर रहमान रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ में तसाहुल किस लिए करते हैं, वालिद साहब ने फ़रमाया उनपर सुक्र (बेहोशी) ग़ालिब है वो माज़ूर हैं, में ने अर्ज़ किया के नमाज़ के वक़्त में सुक्र ग़ालिब हो जाता है, मगर दूसरे उमूर में होशियार रहते हैं, ये सुन कर मेरे वालिद साहब खफा हो गए, मगर मेरे दिल से बैअत कराने का खटका निकल गया,
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! की उमर मुबारक जब सोला साल की हुई तो आप के वालिद मुहतरम ने इस जहाँ फानी से इन्तिकाल कर गए,
वालिद साहब की वफ़ात के बाद आप के रिश्तेदार शाही मनसब उहदे के हुसूल के लिए मुग़ल बादशाह फर्ख सेर! के दरबार में ले गए, इत्तिफाक से बादशाह को ज़ुकाम था, वो दरबार में नहीं आया, उसी रात आप ने ख्वाब देखा के एक दुर्वेश ने अपने मज़ार शरीफ! से निकल कर अपनी कुलाह (टोपी) आप के सर पर रख दी इस ख्वाब के बाद मंसबो जगह की रगबत आप के दिल से निकल गई, और दुरवेशों की ज़ियारत का शोक पैदा हुआ,
जहाँ कहीं भी में किसी सूफी साहिबे कमाल का नाम सुनता उस की ज़ियारत को जाता, चुनांचे मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाह जहाँ आबादी चिश्ती देहलवी, हज़रत शाह मुज़फ्फर कादरी, और हज़रत शाह गुलाम मुहम्मद मवाहिद, और मीर हाशिम जलेसर रहमाहुमुल्लाहु तआला अलैहिम की खिदमत में हाज़िर हो कर फैज़ पाया।
इजाज़तो खिलाफत
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! अठ्ठारा साल की उमर में कुछ एहबाब से आरिफ़े कामिल, आलिमे रब्बानी हज़रत सय्यद नूर मुहम्मद बदायूनी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! के फ़ज़ाइल सुनकर आप की खिदमत में हाज़िर होने का क़स्द किया, हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के: हज़रत सय्यद नूर मुहम्मद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! के औसाफ़ मुबारक सुनकर मेरा दिल बे इख़्तियार उनकी कदम बोसी का मुश्ताक हो गया, अगरचे मुर्शिद की आदत थी के बगैर इस्तिखारा मस्नूना के किसी को तल्कीनों नसीहत फरमाते थे, मगर उस वक़्त बगैर दरख्वास्त के मुझ से फ़रमाया के आँखें बंद कर के क्लब की तरफ मुतवज्जेह हो जाओ और एक ही तवज्जोह में मेरे लताइफे खम्सा को ज़ाकिर बनाकर रुखसत किया,
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मुर्शिद को मुताशररे यानि शरीअत पर और सुन्नतों पर अमल करने वाला और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के अख़लाक़ का पैकर पाया, आप की सुहबत के अनवार मुबारक दिल के लिए सुकून और जान के लिए राहत अफ़ज़ा थे, यकीन की आँख से देख लिया के शायद मक़सूद इसी जगह है, और मुर्दा दिल को इत्मीनान हुआ के शूहूदे हक यहीं जलवा फरमा है, किस के लिए आए हो? हज़रत! ने पूछा अर्ज़ किया इस्तिफ़ादा के लिए, अगरचे इस्तिखारा के बगैर तल्कीनों नसीहत आप की आदत के खिलाफ था, लेकिन फ़ज़्ले खुदा से बंदे के हाल पर बिला तवक़्क़ुफ़ आप पर नज़रे करम की, जिससे मेरे लताइफे खम्सा इस्म ज़ात का ज़िक्र करने लगे,
ये आप के ख़ासाइस में से है के आप की पहली तवज्जोह से लताइफे खम्सा ज़िक्रे इलाही करने लगते और सालिक तजल्ली सिफ़ात का मक़ाम बन जाता है, आप की तवज्जोह की तासीर से बातिन में इस किस्म का रंग आया के आईना में अपनी सूरत आप की हय्यत शरीफ की मिस्ल पाता था, जिससे मुहब्बत बढ़ गई और अक़ीदा मज़बूत हो गया, और फिर चार साल आप ने मुआमला को विलायते उलिया तक पंहुचा दिया और मुझे मुरीद किया और बैअतो खिलाफत अता फ़रमाई,
हज़रत सय्यद नूर मुहम्मद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! के विसाल के बाद हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! ने छेह साल तक आप के मज़ार मुकद्द्स से फ़ैज़ो बरकात हासिल किए, फिर इस के बाद आप ने वक़्त के बुज़ुर्गाने दीन की तरफ रुजू किया, हज़रत हाफ़िज़ सअदुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में कई सालों रह कर उलूमे बातनी से फ़ैज़याब होते रहे, आखिर में आप ने हज़रत शैख़ मुहम्मद आबिद नक्शबंदी सुनामी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह आप खलीफा है हज़रत शैख़ अब्दुल अहद सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह! के आप की बारगाह में तशरीफ़ लाए, और सात साल तक फ़ैज़ो बरकात हासिल करते रहे, हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! को हज़रत शैख़ मुहम्मद आबिद नक्शबंदी सुनामी रहमतुल्लाह अलैह से सिलसिलए कदीरिया के अलावा सिलसिलए चिश्तिया सोहरवर्दिया में भी इजाज़त हासिल थी।
सिलसिलए शीयूख
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! आप मुरीदो खलीफा हैं, आरिफ़े कामिल हज़रत सय्यद नूर मुहम्मद बदायूनी सुम्मा देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से, आप मुरीदो खलीफा हैं, हज़रत शैख़ सैफुद्दीन नक्शबंदी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से, आप मुरीदो खलीफा हैं, उरवतुल वुसका हज़रत ख्वाजा शैख़ मुहम्मद मासूम नक्शबंदी सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से, आप मुरीदो खलीफा हैं, इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह से,
और आप को बैअतो खिलाफत हज़रत शैख़ हाफिज़ मुहम्मद मुहसिन रहमतुल्लाह अलैह से भी हासिल थीं, और आप मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की औलाद से थे।
इरशादो तलकीन
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत शैख़ मुहम्मद आबिद नक्शबंदी सुनामी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पूरे 11/ साल तक रहे, इनकी वफ़ात के बाद मसनदे खिलाफत को ज़ीनत बख्शी, तालिबाने खुदा ने हर तरफ से आप की खिदमत में आने लगे, उल्माए किराम व सुल्हा कसाबे फ़्यूज़ के लिए आप की खानकाह में जमा हो गए और आप के फ़ज़ाइलो कमालात शुहरत दूर दूर तक पहुंच गई, इब्तिदा में आप की तवज्जुह की तासीर से लोगों में बेताबी बेकरारी पैदा हो जाती थी, और इस्तगराक के सबब बेखुद हो जाया करते थे, तालिबों की तहज़ीबे नुफ़ूस जैसा की आप की खिदमत में होती थी, मशाईखे किराम आप की निस्बत फरमाते थे के जो फैज़ तालिबे खुदा को फ़क्त आप की सुहबत से पहुँचता था वो दूसरों की हिम्मत व तवज्जुह से भी नहीं मिलता था,
चुनांचे एक शख्स आप की खिदमत में हाज़िर हो कर हज़रत ख्वाजा मीर दर्द रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत के लिए गया, तो आप ने देखते ही फ़रमाया, तुम शायद हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीद हो गए हो क्यों के तुम्हारा बातिन निस्बते मुजद्दिदीय के अनवार से मामूर है, उस ने कहा हज़रत में तो सिर्फ उन की खिदमत में हाज़िर हुआ हूँ,
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे अल्लाह पाक ने हमे कश्फ़ सही अता किया है, के रूए ज़मीन के तमाम हालात हम से पोशीदा नहीं और हथेली के मानिंद अयाँ ज़ाहिर हैं, इस वक़्त हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! का मिस्ल किसी अकलीमे शहर में नहीं है, आप के जैसा कोई नहीं, जिस शख्स को राहे सुलूक के मक़ामात की आरज़ू हो वो उनकी खिदमत में जाए,
चुनांचे हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह के अहबाब ने आप के हुक्म पर अमल किया हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में इस्तिफ़ादा के लिए तशरीफ़ भी लाया करते,
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! की तवज्जुह आली इस पर मसरूफ थी के सिलसिलए मुजद्दिदीय की तमाम आलम में फ़ैल जाए और सारा आलम मुनव्वर हो जाए, चुनांचे हज़ारहा आदमी आप से बैअत मुरीद हो कर ज़िक्रे खुदा में मशगूल हुए और तकरीबन दो सो नेक हज़रात ने आप से इजाज़तो तालीम इसलाहो तब्लीग खल्के खुदा की हिदायत में मशगूल हुए, गर्ज़ के हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! तीस साल अपने मशाइख की खिदमत में कसबे अनवार व बरकात कर के निहायत कमालो तकमील के मर्तबे पर पहुंच गए और 35, साल तालिबाने खुदा की तलकीन में मशगूल रहकर रोशन आसार सफ्हे हस्ती पर छोड़ गए।
अख़लाक़ो आदात
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! ज़ुहदो तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, तवक्कुल से मुत्तसिफ़ थे, दुनिया और अहले दुनिया से मुहब्बत नहीं करते थे, इल्मो अमल में, आदाबे शरीअतो तरीकत में, फ़साहतो बलाग़त में रियाज़तों मुजाहिदा में अपनी मिसाल आप थे, इल्मे ज़ाहिर व सुलूक बातिन में आला दर्जा रखते थे, क़ुत्बे वक़्त थे और पीरे कामिल थे, और दुनिया दारों के हदिऐ तोहफे कबूल न फरमाते, एक दफा मुहम्मद शाह मुग़ल बादशाह ने अपने वज़ीर कमरुद्दीन की ज़बानी कहला भेजा के अल्लाह पाक ने हम को मुल्क अता फ़रमाया है, जिस कदर दिल में आए बतौर हदिया कबूल फरमाएं, आप ने फ़रमाया के अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है: अल्लाह तआला ने हफ्त अकलीम को क़लील फ़रमाया है, तुम्हारे पास इस क़लील का सातवां हिस्सा यानि एक अकलीम हिंदुस्तान है, इस में से क्या कबूल करूँ,
नवाब निजामुल मलिक! ने तीस रूपये बतौरे नज़राना पेश किया, आप ने कबूल न किया, नवाब ने अर्ज़ किया, आप राहे खुदा में तकसीम कर दो, फ़रमाया के में तुम्हारा खानसामा नहीं, यहाँ से तकसीम करना शुरू कर दो घर तक ख़त्म हो जाएगा, फरमाते थे के अगरचे हदिया के रद्द करने से मना किया गया है, लेकिन इस के कबूल करने को ज़रूरी भी नहीं बताया गया, जो माल यकीनी तौर पर हलाल हो उस के लेने में बरकत है, फ़कीर! अपने असहाब के तहाईफ़ जो इखलास से लाते हैं उसे कबूल करता हूँ, अमीरो का माल अक्सर मुश्तबह होता है और लोगों के हुकूक उससे मुतअल्लिक़ होते हैं, क़यामत के दिन इस का हिसाब होगा,
एक दफा एक अमीर ने आमो का तोहफा आप की खिदमत में भेजा, आप ने वापस कर दिया, उसने बड़ी मिन्नत समजत के बाद दोबारा भेजे, आप ने दो आम रख लिए, और बाकी वापस कर दिए और फ़रमाया के फ़कीर का दिल इस हदिया को कबूल करने से इंकार करता है, उसी वक़्त एक बागवान आप की खिदमत में शकायत लाया के फलां अमीर ने मेरे आम ज़ुल्म कर के ले लिए, इन में से कुछ आप की खिदमत में भेजे हैं, मेरी मदद कीजिए, आप ने फ़रमाया सुबहानल्लाह ये ना आक़िबत अन्देश लोग छीने हुए हदियों से फ़कीर का बातिन सियाह करना चाहते हैं।
कशफो करामात
गुमशुदा घर आ गया
मुहम्मद कासिम के भाई ने हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! को बताया कि मुहम्मद कासिम अज़ीमाबाद में कैद हो गया है, उसकी रिहाई के लिए दुआ फरमाएं, आप कुछ देर चुप रहे, फिर फ़रमाया के उन्हें कैद नहीं किया गया है, दलालों से कुछ झगड़ा हो गया था, खैरियत गुज़री, उसने एक खत अपने घर भेजा है, कल या परसों पहुंच जाएगा चुनांचे ऐसा ही हुआ।
हजरत के खलीफा गुलाम मुस्तफा खान की अहलिया आप की तवज्जुह में बैठा करती थीं, और हर रोज़ एक शख्स को इत्तिला के लिए, आप की खिदमत में भेजा करती थीं, एक रोज़ उस शख्स ने बिला इजाज़त आ कर हज़रत! से अर्ज़ किया के बीबी साहिबा तवज्जुह की मुन्तज़िर बैठी हैं, आप ने कुछ देर खामोश रह कर फ़रमाया झूट ना बोलो, तू बिला इजाज़त आया है, वो अभी सो रही है, उस शख्स ने अपने कुसूर का ऐतिराफ़ किया।
कुफ्र की ज़ुल्मत
एक रोज़ खलीफा गुलाम हसन को आप ने तवज्जुह के बाद फ़रमाया के शायद तूने कुफ्फार की परिस्तिश का खाना खाया है, के तेरे बातिन से कुफ्र की ज़ुल्मत मालूम होती है उसने अर्ज़ किया के में ने हिन्दू के हाथ से कुछ खा लिया, ये मेरी बातनी कुदूरत इसी सबब से है।
अज़ाबे कब्र से निजात
एक दिन हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! एक फाहिशा औरत की कब्र पर मुराकिबा में बैठ गए फ़रमाया के इस की कब्र में दोज़ख की आग जल रही है, और वो औरत शोलो के साथ ऊपर जाती है नीचे आती है, उसके ईमान में मुझे शक है, में कलमा शरीफ पढ़ कर उसकी रूह को बख्शता हूँ अगर ईमान के साथ ख़त्म हुई है तो बख्शी जाएगी, चुनांचे कलमा शरीफ के ख़त्म का सवाब पहुंच कर फ़रमाया के अल हम्दुलिल्लाह ईमान के साथ मरी थी इस कलमा शरीफ की बरकत से अज़ाब से निजात मिल गई।
कब्र का हाल
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! से एक बे अदब शख्स ने आप के इल्मे कश्फ़ व करामात से इंकार कर के बतौरे इम्तिहान अर्ज़ किया के ये मेरे एक दोस्त की कब्र है, इस का हाल दरयाफ्त कीजिए, आप खामोश रहे फिर फ़रमाया के झूट न बोलो ये तो एक औरत की कब्र है तुम्हारे दोस्त की नहीं।
लड़के की बशारत
एक रोज़ जब हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! मुराकिबा से फारिग हुए, तो गुलाम अस्करी खान की वालिदा ने आप का दमन पकड़ लिया, और अर्ज़ किया के जब तक आप मेरी लड़की के बारे में बेटे की बशारत ना देंगें, आप का दामन ना छोडूंगी, हज़रत ने कुछ सुकूत के बाद फ़रमाया तसल्ली रखो, अल्लाह पाक तुम्हारी बेटी को लड़का अता फरमाएगा, अल्लाह पाक के करम से ऐसा ही हुआ।
दोस्तों पर बारिश बंद हो गई
एक रोज़ हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! बियाबान में अपने साथियों के साथ जा रहे थे, अचानक शदीद बारिश होने लगी, मौसम ठंडा हो गया, साथियों को तकलीफ हुई, जब ये देखा तो दुआ के लिए हाथ उठाए और कहा के ऐ अल्लाह! में चाहता हूँ के मेरे यारों पर बारिश ना पड़े और में अपने साथियों समीत खुश्क ही अपने घर पहुंच जाऊं, चुनांचे ऐसा ही हुआ के इन के आस पास शदीद बारिश होती रही मगर इन पर एक क़तरा भी नहीं पड़ता था।
आप की शहादत
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के अल्लाह पाक ने अपनी इनायतों से फ़कीर के दिल में कोई ऐसी आरज़ू नहीं छोड़ी जो हासिल न हुई हो, इल्म से भी नवाज़ा, नेक अमल पर इस्तेक़ामत बख्शी, लिवाज़िमे तरीका यानि कशफो तसर्रुफ़ करामात अता किए, सालिहीन को कसबे फैज़ के लिए, मेरे पास भेजा, दुनिया और अहले दुनिया से अलैहदा रखा, अब सिर्फ शहादत ज़ाहिरी के कोई आरज़ू बाकी नहीं, फ़कीर के अक्सर बुज़रुग शहीद हुए हैं, मगर फ़कीर निहायत कमज़ोर व ज़ईफ़ है क़ुव्वते जिहाद नहीं रखता, बज़ाहिर इस मर्तबे का हुसूल मुश्किल है, लेकिन अल्लाह पाक ने आप की ये खवाइश भी पूरी कर दी और आप को बातनि शाहदत के साथ साथ ज़ाहिरी शहादत से भी सरफ़राज़ फ़रमाया,
किस्सा! शहादत:
कुछ इस तरह है मुग़ल बादशाह शाह आलम के दौर में ईरानी शीआ पार्टी ने इतना उरूज हासिल कर लिया के ईरानियों के क़ाइद नजफ़ खान को दिल्ली की मसनदे वुज़ारत पर फ़ाइज़ कर दिया, नजफ़ खान के बरसरे इक्तिदार आने से जहाँ बहुत से इख़्तिलाफ़ात पैदा हुए वहां शीआ सुन्नी भी झगड़ा भी अपने उरूज को पहुंचा, उस दौर में उल्माए अहले सुन्नत को काफी परेशानी व तकालीफ़ का सामना करना पड़ा, बिल्खुसुस दो अज़ीम हस्तियां यानि हज़रत शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाहें जो सुन्नी ताकतों का मरकज़ थीं, नजफ़ खान के ज़ुल्मो सितम का निशाना बनी, हज़रत शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की जाएदाद को ज़ब्त कर के मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत मौलाना शाह रफीउद्दीन देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को दिल्ली से निकाल दिया गया, अब दिल्ली में सिर्फ हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! की ज़ाते पाक सुन्नियों की दाद रसी के लिए बाकी रह गई, बिला आखिर आप को भी रास्ते से हटाने की मंसूबा बंदी की गई,
7/ मुहर्रम 1195/ हिजरी को जब के कुछ ही रात गुज़री थी, चंद आदमियों ने आप के घर के दरवाज़े पर दस्तक दी, खादिम ने जा कर बताया के कुछ लोग ज़ियारत के लिए आए हैं, आप की इजाज़त से तीन आदमी अंदर आए, उनमे से एक ईरानी नज़्ज़ाद मुग़ल भी था, आप ख्वाब गाह से निकल कर उनके बराबर खड़े हो गए, मुग़ल ने पूछा के हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! आप हैं, पस इसपर ईरानी मुग़ल बदबख्त ने गोली दाग! दी जो आप के दिल के बाएं जानिब लगी, आप नातवानी ज़ईफ़ी के बाइस गिरपड़े और कातिल फरार हो गए, लोगों को खबर हुई तो जर्राह (सिविल सर्जन डॉक्टर) को बुलाया गया, सुबह नजफ़ खान ने एक जर्राह को भेजा और कहा के कातिल मालूम नहीं, अगर मालूम होगा तो क़िसास लिया जाएगा, आप ने फ़रमाया अगर इरादा इलाहीया में शिफा है तो हो जाएगी, दूसरे जर्राह की ज़रूरत नहीं, अगर कातिल मालूम हो जाए तो हमने माफ़ किया तुम भी माफ़ कर देना, कातिलाना हमले के बाद आप तीन रोज़ ज़िंदह रहे,
गरज़ के दस मुहर्रम को जिसे शहादत की रात कहा जाता है, आप ने तीन बार ज़ोर ज़ोर से साँस लिया और वासिले बहक हो गए यानि इन्तिकाल हो गया, आप के खलीफा मुल्ला नसीम की ख़ानख़ाह वाके नूर महल! ऊच रियासते देर सूबा सरहद पाकिस्तान में अब भी वो खून आलूद कपड़े मौजूद हैं जो आप ने शहादत के वक़्त पहिन रखे थे, उसके अलावा खून आलूद धज्जियाँ भी महफूज़ हैं जिन से हज़रत का खून पूछा गया था।
तज्हीज़ो तकफीन
आप की तज्हीज़ो तकफीन आप की अहलिया मुहतरमा की निगरानी में हुई, आप को बीबी साहिबा की हवेली में जो चितली कबर के पास् दिल्ली में दफ़न किया गया, आप के मज़ार मुबारक जिस चबूतरे पर है उसी पर आप के साथ सिलसिलए नक्शबंदिया की तीन और अज़ीम हस्तियां भी मेहवे ख्वाब हैं, यानि हज़रत अल्लामा व मौलाना गुलाम अली शाह नक्शबंदी, हज़रत अल्लामा व मौलाना शाह अबू सईद मुजद्दिदी, हज़रत मौलाना शाह अबुल खेर मुजद्दिदी रहमतुल्लाह अलैहिम अजमईन,
खानकाह के मौजूदा सज्जादा नशीन हज़रत मौलाना ज़ैद अबुल हसन फारूक ने उस चबूतरे पर 1980/ में एक खूबसूरत गुंबद बनवाया था।
आप की चंद नसीहतें
आप फरमाते हैं के तक्वा और परहेज़गारी इख़्तियार करो, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुताबीअत पैरवी दिलो जान से करो, अपने अहवाल का किताबों सुन्नत से तकाबुल करो अगर मुवाफिक हैं, तो कबूल करो, अक़ीदए अहले सुन्नत व जमात का इल्तिज़ाम कर के, हदीस और फ़िक़्ह की तालीम हासिल करो और उलमा की सुहबत इख्तियार कर के उखरवी सवाब हासिल करो अगर मुमकिन हो तो हदीस पर अमल करने में मुदावमत करो, वरना कभी कभी हदीस पर अमल ज़रूर करना चाहिए ताके तुम उस के नूर से महरूम न रहो,
दिलो को दोनों जहानो की अगराज़ से पाक कर लो, इबादत और ज़िक्रे खुदा में मशगूल रहो, आज का काम कल पर न छोड़ो, मशाईखे उज़्ज़ाम की मुहब्बत में अपनी अकीदत को मज़बूत करो, क्यों के दोस्ताने खुदा की दोस्ती अल्लाह से करीब करती है।
शेरो शायरी
हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! एक ज़िंदा दिल इंसान सूफी मिज़ाज शख्सीयत, और आशिकाना तबियत के मालिक थे, आप शेरो शायरी से काफी शग़फ़ लगाओ रखते थे, चुनांचे इसी का असर था के आप की शायरी में शऊर एहसास का एक बहरे बेकरां मौजूद है, इससे ये भी वाज़ेह होता है, के हज़रत ख्वाजा मिरज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़ारसी और उर्दू ज़बान में शायरी की है, कमो बेश फ़ारसी और उर्दू शायरी में खयालात व जज़्बात एक ही जैसे हैं, इस लिए इनकी शायरी में भी इश्क हकीकी की तड़प वारफतगी शोक की कसरत वारदात कलबी की बुहतात और पाकीज़ह खयालात की फ़रावानी पाई जाती है। चंद अशआर मुलाहिज़ा करें:
चली अब गुल के हाथों से लुटा कर कारवां अपना
ना छोड़ा हाए बुलबुल ने चमन में कुछ निशान अपना
ये हसरत रह गई किया किया मज़े से ज़िन्दगी करते
अगर होता चमन गुल अपना बागबां अपना
आप के खुलफाए किराम
- हज़रत अल्लामा शाह गुलाम अली नक्शबंदी देहलवी
- हज़रत अल्लामा क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपती
- हज़रत मीर नईमुल्लाह
- हज़रत मौलाना सनाउल्लाह संभली
- हज़रत मीर अबुल बाकी
- हज़रत मौलाना अब्दुल हक
- हज़रत शाह रहमतुल्लाह
- मौलाना कुतबुद्दीन
- हज़रत मौलाना गुलाम मुहीयुद्दीन
- मौलाना नईमुल्लाह बहराइची रहमतुल्लाह अलैहिम अजमईन।
आप की तसानीफ़
(1) दीवाने मज़हरी
(2) खरीताए जवाहर
(3) मकतीब के मुख्तलिफ मजमूए
(4) मुतफ़र्रिक़ और मुख़्तसर नसरी तहरीर
(5) मलफ़ूज़ात
(6) मजमूआ उर्दू अशआर
विसाले पुरमालाल
आप रहमतुल्लाह अलैह ने 7/ मुहर्रमुल हराम 1195/ हिजरी को रफ़्ज़ियों ने आप पर हमला किया और दस मुहर्रमुल हराम को 1195/ हिजरी मुताबिक जनवरी 1781/ ईसवी की शब् आप ने जामे शहादत नोश किया।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में चितली कबर से आगे उलटे हाथ की तरफ खानकाह शाह अबुल खेर के नाम से मशहूर है, तुर्क मान गेट पर मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
- ख़ज़ीनतुल असफिया
- रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
- औलियाए दिल्ली की दरगाहें
- दिल्ली के बाईस ख्वाजा
- तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान
- दिल्ली के बत्तीस 32, ख्वाजा
- मक़ामाते मज़हरी
- तज़किरा मशाईखे नक्शबंदिया