हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी बरेलवी मद्दा ज़िल्लुहुल आली

हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी बरेलवी मद्दा ज़िल्लुहुल आली

विलादत बसआदत

11/ सफारुल मुज़फ्फर मुताबिक 1/ अगस्त 1993/ ईसवी को हुई,

इस्म शरीफ

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “मुहम्मद अरसलान रज़ा है,

अल्काबात

मज़हरे हुज्जतुल इस्लाम, सरमायाए फैज़ुर रसूल (लक़ब दहिंदा साहिबे सज्जादा बराओँ शरीफ यूपी) चश्मों चिरागे खानदाने रज़ा,

शजरए नसब

मुफ़्ती मुहम्मद अरसलान रज़ा खान इबने, मौलाना उस्मान रज़ा खान (उर्फ़ अंजुम मियां) इबने, रेहाने मिल्लत, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती रेहान रज़ा खान उर्फ़ रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह, इबने मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द, हज़रत अल्लामा इबराहीम रज़ा खान उर्फ़ जीलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह, इबने हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा मुफ़्ती हामिद रज़ा खान इबने, इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हुम,

तालीमों तरबियत

हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद अरसलान रज़ा साहब ने कुरआन मजीद नाज़रा, और उर्दू की इब्तिदाई तालीम घर ही पर अपनी वालिदा माजिदा से हासिल की, और इन्ही की आग़ोशे मुहब्बत और सायए करम में इस्लामी तहज़ीबो तमद्दुन और अदब शनाशी जैसे औसाफ़े हमीदा से आरासताओ पैरास्ता हो गए, असरी तालीम दुनियावी उलूम, हासिल की, इस के बाद आलमे इस्लाम की अज़ीम दीनी दरसगाह यादगारे आला हज़रत, मरकज़े अहले सुन्नत, “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” में दाखिल हो कर, दरसे निज़ामी (आलिम कोर्स) की इब्तिदाई किताबें हज़रत मौलाना नईमुल्ला खान साहब क़िबला, साबिक सदारुल मुदर्रिसीन जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम से पढ़ीं, फिर चूँके यहाँ खानकाह में अकीदतमंदों की भीड़ और मिलने वालों की कसरत रहती जिस के सबब पढ़ने लिखने में खलल होता और तालीम मुतअस्सिर होती लिहाज़ा तालीम में यकसूई और दिलजमई हासिल करने के लिए घर के बड़ों के ईमाओ इशारे पर बरैली शरीफ से बराओँ शरीफ का सफर किया और वहां हिंदुस्तान की मशहूर दीनी दर्स गाह “दारुल उलूम फैज़ुर रसूल” में दाखिला ले कर बा ज़ाब्ता तालीम शुरू करदी,

और वहां मुतअद्दिद उल्माए किराम से उलूमे मुरव्वजा मसलन इल्मे नहो इल्मे सर्फ़, अरबी अदब, मंतिको फलसफा, बलागतो मुआनी व बयान, इल्मे हदीस उसूले हदीस, फ़िक़्ह व उसूले फ़िक़्ह, तफ़्सीर व उसूले तफ़्सीर वगेरा की क़ुत्बे मुतादावला का दर्स लिया,

दस्तार बंदी

22/ मुहर्रमुल हराम 1439/ हिजरी मुताबिक 13/ अक्टूबर 2017/ ईसवी बरोज़ जुमा को सालाना जलसाए दस्तार बंदी में उल्माए इस्लाम व मशाइखे किराम के मुक़द्दस हाथों से फ़ज़ीलत की ताजे ज़र्री से नवाज़े गए,

असातिज़ाए किराम

आप ने दरसे निज़ामी अज़ इब्तिदा ता इंतिहा जिन उल्माए किराम से पढ़ा उन के असमाए गिरामी ये हैं: हज़रत मौलाना मुफ़्ती नईमुल्लाह खान साहब साबिक सदारुल मुदर्रिसीन जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम बरैली शरीफ, हज़रत मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद मुस्तकीम मुस्तफ़वी रहमतुल्लाह अलैह, साबिक मुफ्तियों मुदर्रिस “दारुल उलूम फैज़ुर रसूल” बराओँ शरीफ यूपी, हज़रत मुफ़्ती शहाबुद्दीन साहब क़िबला, मुदर्रिस “दारुल उलूम फैज़ुर रसूल” बराओँ शरीफ यूपी, हज़रत मुफ़्ती निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह साबिक उस्ताज़ “दारुल उलूम फैज़ुर रसूल” बराओँ शरीफ, शहज़ादए हुज़ूर बदरे मिल्लत हज़रत मौलाना राबे नूरानी साहब क़िबला, उस्ताज़ “दारुल उलूम फैज़ुर रसूल” बराओँ शरीफ, हज़रत अल्लामा व मौलाना मुहम्मद इस्माईल साहब क़िबला,

हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह से इल्मी इस्तिफ़ादा

छुट्टियों व दीगर मवाक़े (औकात, जगहें) पर जब भी मौका मिलता तो हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह से इल्मी इस्तिफ़ादा फरमाते गाहे बा गाहे, मुश्किल इबारात, दक़ीक़, मुआनी व मफ़ाहीम, पुर पेच मसाइल हज़रत की बारगाह में पेश करते और उन का इत्मीनान बख्श जवाब व हल पाते, तो इस तरह असातिज़ा में खुसूसी उस्ताज़ की हैसियत से हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह का नामे नामी इस्मे गिरामी भी सिरे फहरिस्त है,

मिस्र का तालीमी सफर

मादरे इल्मी दारुल उलूम फैज़ुर रसूल” बराओँ शरीफ, से फरागत के बाद आला तालीम के हुसूल और फ़िकरो तदब्बुर की नोको पलक सवारने के लिए 2017/ के इख़्तितामि अय्याम में आप ने आलमे इस्लाम की कदीम इस्लामी दीनी यूनिवर्सिटी जामिया अज़हर मिस्र का तवील सफर किया, और 2018/ के आगाज़ से ले कर 2023/ के वस्त तक बा इस्तसनाए 2020/ (जो करोना काल की नज़र हो गया) तकरीबन पांच साल जामिया अज़हर मिस्र, से मुनसलिक रह कर पूरी मेहनत और लगन के साथ वहां का तालीमी निसाब मुकम्मल किया और कुल्लिया उसूलुद्दीन, कसामुल हदीस, उलूमा, से बी ऐ, कर के फारिग हुए,

यूं तो हिन्दो पाक व दीगर ममालिक से बहुत सारे तलबा जामिया अज़हर, जाते हैं और वहां तालीम अखज़ करते हैं, मगर जामिया अज़हर के हवाले से मौसूफ़ का तर्ज़े अमल और रविश आम तलबा से जुदा और मुमताज़ थी, बल्के फि ज़माना कुछ तलबा तो ऐसे भी नज़र आते हैं, जो यहाँ से सेहते अमल व दुरुस्तगी नज़रो फ़िक्र और तसल्लुब व इस्तिकामत जैसी दौलत ले कर जाते हैं, मगर वहां की चका चोंध, रोशन ख़याली, आज़ाद ज़हनीयत वगेरा बुराईयों में मुलव्विस हो कर अपने फ़िकरो अमल, तसल्लुबो इस्तिकामत की दौलतो गंजे गिरां माया (कीमती खज़ाना) को गवां देते हैं, मगर मौसूफ़ () अपने खानदान की जो अमानत, ज़ुहदो तक़वा, तसल्लुबो इस्तिकामत ले कर जिस तरह गए थे इसी तरह कुनूज़ हाए (ज़खीरे ज़खाएर) बे बहा, को ले कर वापस लोटे, वहां की चका चौंद आप की आँखों को खीरा न कर सकी (बे हया, बेबाक,) ये सब अल्लाह पाक का फ़ज़्ल है, हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा मद्दा ज़िल्लुहुल आली की एक ख़ुसूसियतो इम्तियाज़ ये भी है के आप ने दुसरे तलबा की तरह वहां के हर दुकतूर के सामने ज़ानूए

तलम्मुज़ तय नहीं किया, बल्के जिस के ज़ाहिरो बातिन को सुन्नत से मुज़य्यन पाया सिर्फ उसी से रिश्तए तलम्मुज़ी जोड़ा, यही वजह है के आम तौर पर तर्ज़े तालीम ये रखा, के साल का अक्सर हिस्सा अपने वतने अज़ीज़ में रहकर मुतालए क़ुतुब, फतवा नवेसी, दरसो तदरीस, तसनीफो तकलीफ, दावतों तब्लीग वगेरा उमूर में मसरूफ रहते, इम्तिहानात से कुछ अय्याम क़ब्ल मिस्र, जाते जामिया अज़हर, से अलैहदा रूम लेकर तन्हाई में मुतअय्यना निसाब और सेलेबस का बा नज़रे गाइर (गहरा) मुताला फरमाते और औक़ाते मुक़र्ररा पर इम्तिहान दे कर वतन वापस आ जाते,

इधर उधर के रेहलात, सेरो सियाहत और घूमने घामने से मतलब नहीं रखते, यही सिलसिला पूरे तालीमी सफर में जारी रहा, इस की वजह ये थी, के चूँके वहां के मौजूदा दुकातिरह में अक्सर सुन्नत से मुन्हरिफ़ (फिर जाने वाला, फिर हुआ) आज़ाद ख़याल मगरिबी सकाफतो तमद्दुन से मुतअस्सिर बल्के मुलव्विस, मगारिबा (मराकश, या मगरिबी अफ्रीका के बाशिंदे, मोरक्को) फुज्जार के लिबास में मलबूस रोशन ख़याली से महज़ूज़ (मसरूर खुश) हैं, हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली की तबीयत में चूँके पाक तीनति, ज़ुहदो तक़वा इत्तिबाए सुन्नतों रविशे अस्लाफ, बचपन से ही रची बसी थी, और ये औसाफ़े जमीला आप को वरासत में मिले थे, ऐसे में आप के क्लब ने हरगिज़ गवारा न किया ख़्वाही न ख़्वाही सभी के सामने ज़ानूए तलम्मुज़ तय करें, हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली पर फ़ज़्ले यज़दानी व करमे रसूले सानी व फ़ैज़ाने उल्माए रब्बानी (आप के आबाओ अजदाद) इस कद्र रहा के कुल्लीया शोअबा, के पहले तालीमी साल में ही अपने दर्जे के टॉपटेन में शामिल हुए जब के उस साल आप के सिवा हिंदुस्तान पाकिस्तान का कोई तालिबे इल्म “कुल्लीया उसुलुद्दीन” में ये ऐजाज़ हासिल ना कर सका, आप को ऐजाज़ी अवार्ड से भी नवाज़ा गया था, इस साल यानि अपने मिस्र के तालीमी सफर के इख़्तितामि (आखरी) साल में %92, परसेंट तकदीर के साथ इम्तियाज़ी हैसियत से फरागत हासिल की,

दरसो तदरीस

हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली ने अभी तक अगरचे बाक़ाइदा तौर पर कहीं दर्स गाह से मुनसलिक हो कर दर्स नहीं दिया मगर भरपूर दरसी सलाहियतों के मालिक हैं, और दरसो तदरीस का खूब ज़ोको शोक रखते हैं, मगर कुछ नाग़ुफ्ता बिही, (वो बात जिसका ना कहना ही बेहतर हो) रुकावटें बा ज़ाब्ता तदरीस से माने हैं, मगर बहरहाल अपने ज़ोकोशोक की तस्कीन की खातिर ये इंतिज़ाम कर रखा है, के गाहे बगाहे कभी दारुल इफ्ता! में तो कभी अपने घर पर ही जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम के बाज़ बा जोक तलबा को इल्मे फ़िक़्ह और इल्मे हदीस का दर्स देते हैं, जिस ने भी आप से दर्स लेने का शर्फ हासिल किया, आप के अंदाज़े तफ़हीम, इबारात की इल्मी तहक़ीक़, शुबहात ऐतिराज़ात के शाफी व हल जवाबात अता फरमाते हैं,

तसनीफो तकलीफ

हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली की अब तक कई किताबें मन्ज़रे आम पर आ चुकी हैं, और कुछ आने वाली हैं, जिन के नामो की फहरिस्त ये है: 1/ “अल वरदा फी शरह फ़र्दा” ये सरकार ताजुश्शरिया रदियल्लाहु अन्हु की कसीदा बुरदा शरीफ की अरबी शरह “अल फ़र्दा” के उर्दू तर्जुमा और क़द्रे तशरीह पर मुश्तमिल है, 2/ रिसालातान राईअतान, ये किताब असल में रद्दे वहाबिया से मुतअल्लिक़ दो अज़ीम रिसालों पर मुश्तमिल है, जिन में से एक रिसाला अस सवाइकुल इलाहीया फी रद्दे अलल वहबिया, है, जो इमामुल वहबिया मुहम्मद इबने अब्दुल वहाब नजदी के बिरादरे हकीकी शैख़ सुलेमान इबने अब्दुल वहाब अलैहिर रहमा, का है, जो हज़रत अल्लामा शैख़ अहमद ज़ैनी दहलान मक्की अलैहिर रहमा का है, जिस पर मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द हज़रत अल्लामा इब्राहीम रज़ा खान जिलानी मियां अलैहिर रहमा का उर्दू तर्जुमाओ तशरीह है, हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली ने रकम किया है, 3/ तरबियत लहो कलम, ये मौसूफ़ के मुख्तलिफ मौज़ूआत पर लिखे गए इल्मी व तहक़ीक़ी मज़ामीन का महिकता हुआ गुलदस्ता है, फिलहाल मौसूफ़ फ़तवा नवेसी के कारे अज़ीम में मसरूफ हैं, और अपने बुज़ुर्गों की फतवा नवेसी की दो सौ साला तारीख़ को बा हुसने खूबी जारी रखे हुए हैं, मुल्को बैरूने मुल्क से आने वाले सवालात के जवाबात और इन के शरई हल की खिदमात अंजाम दे रहे हैं, जिस के लिए मौसूफ़ ने अब से तकरीबन तीन साल क़ब्ल दरगाह शरीफ के बिलकुल सामने रज़वी दारुल इफ्ता! के नाम से आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत कुद्दीसा सिररुहु के कदीम रज़वी दारुल इफ्ता! की गोया निशाते जदीदा फ़रमाई जिस में मुतअद्दिद मुफ्तियाने किराम मसरूफ़े अमल रह कर खिदमाते दीन अंजाम दे रहे हैं,

खिताबत

अल्लाह पाक ने मौसूफ़ को इस फन में मलका कमाल अता फ़रमाया है के कम सिनी ही से इल्मी जवाहर पारे खिताबत की शकल में अवामो ख्वास अहले सुन्नत के हुजूम में लुटाने लगे और वक़्त के गुज़र ने के साथ साथ इस कमाल में इज़ाफ़ा होता गया, फ़क़त 11/ साल की छोटी से उमर में जद्दे अमजद सय्यदना सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु के उर्से मुबारक की तक़रीब में ऐसा लाजवाब खिताब फ़रमाया के मिम्बर पर बैठे अहले इल्म हैरान व अंगुश्त बदन्दा थे, और जब इस खिताब की कैसिट हुज़ूर ताजुश्शरिया रदियल्लाहु अन्हु ने सुनी तो इज़हारे मसर्रत फ़रमाया बल्के आप को तलब फरमाकर अपनी जेबे ख़ास 100/ रूपये का नोट निकाल कर देते हुए फ़रमाया के “ये तुम्हारा इनआम है” फिर जब दोबारा उर्से रज़वी में ख़िताब किया तो पहले से ज़ियादा पज़ीराई हुई और मिम्बर पर मौजूद उलमा व मशाइख किराम ने बढ़ कर सीने से लगा कर बहुत सारी दुआओं से नवाज़ा,

बैअतो इरादत

शीर ख्वारगी की उमर में खानवादए रज़विया का अज़ीम पीर खाना, मरजए अहले मारफअत, मारहरा मुक़द्दसा के अज़ीम बुज़रुग मुर्शिदे आज़म हिन्द हुज़ूर अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में आप को बैअत के लिए पेश किया गया, मुर्शिदे आज़म ने उसी तरह उंगली चुसा कर आप को दाखिला सिलसिला किया जिस तरह सरकार नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह को बैअत किया था, मुर्शिदे आज़म की इस इनायत और गायत दर्जा की तवज्जुह और मुहब्बत की बरकत आज पूरी दुनिया अपनी आँखों से देख रही है और इंशा अल्लाह देखती रहेगी, मुर्शिदे आज़म ने अपनी उंगली चुसा कर इल्मो मारफअत, तकवाओ तहारत, फ़िक्रों तदब्बुर की लाज़वाल दौलत अता फ़रमादी,

खिलाफ़तो इजाज़त

हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली को हुज़ूर तजुशशरीया रहमतुल्लाह अलैह से न सिर्फ अक़ीदतो शरफ़े तलम्मुज़ बल्के शरफ़े इजाज़तो खिलाफत भी हासिल है, 96/ वि में उर्से रज़वी के पुरबहार मोके पर अपने काशानए अक़दस में अज़ खुद आप को बुला कर उल्माए किराम व मशाईखे इज़ाम और हाज़रीन की मौजूदगी में मसलके आला हज़रत की पाबन्दी की शर्त के साथ खिलाफत! अता फ़रमाई, एक मोके पर अपने नवासे नबीरए हुज़ूर अमीने शरीअत हज़रत सुफियान मियां साहब से खुद फ़रमाया था के अरसलान पढ़ लिख गया है, इससे कुछ उम्मीद है, बी हम्दिही तआला मुर्शिदे इजाज़त की अमानतों दियानत और शराइत का पूरा लिहाज़ व ख़याल आप की रविशों किरदार में मौजूद है, और हुज़ूर तजुशशरीया रहमतुल्लाह अलैह के नुकूशे कदम का इत्तिबाअ करते हुए, अल हुब्बु फिल्ल्लाह वल बुग़्ज़ू फिल्लाह, के जज़्बए सादिका से सरशार होकर खिदमते ख़ल्क़, हिमयतो मज़हबो मसलक तबलीग़े दीनो सुन्नियत और फरोगे सिलसिला में मशग़ूलो मसरूफ हैं,

अक़्द मसनून (निकाह)

जिस साल हज़रत मुफ़्ती अरसलान रज़ा कादरी मद्दा ज़िल्लुहुल आली अपने मादरे इल्मी दारुल उलूम फैज़ुर रसूल से दरजए फ़ज़ीलत से फारिग हुए उसी साल क़ब्ल दस्तार बंदी 6/ रमज़ानुल मुबारक 1438/ हिजरी मुताबिक 2/ जून 2017/ ईसवी को आप के अम्मे मुहतरम (चचा जान) शहज़ादए रेहाने मिल्लत हज़रत मौलाना कारी तस्लीम साहब क़िबला की दुख्तरे नेक बख्त से आप का निकाह हुआ, इस निकाह की ख़ुसूसीयत ये थी के ये अक़्द मसनून (निकाह) बरोज़ जुमा मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफउं व तअज़ीमा की मस्जिदे नबवी शरीफ में गुम्बदे ख़ज़रा के साए में हुआ, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप को औलाद की नेमत से भी सरफ़राज़ फ़रमाया है, आप की दो साहबज़ादियाँ हैं, “उसवाह फातिमा” जिन की उमर साढ़े तीन साल है, और छोटी साहबज़ादी “उरवा फातिमा” जिन की उमर दो साल है, अल्लाह पाक आप को औलादे नरैना से भी नवाज़े, अमीन शहज़ादए बाला तबार के हालातो कवाइफ़ ज़िन्दगी में, फ़कीर ने ये चंद सतरें सिर्फ इस नियत से तहरीर की हैं के अच्छे और अल्लाह पाक के नेक बन्दों के हालाते ज़िन्दगी मुरत्तब करना भी सआदतमंदी और नेक बख्ती है, अल्लाह पाक इन सुतूर को शरफ़े कबूल बख्शे और हुज़ूरे बाला के सदके इस फ़कीर को भी अच्छा और किसी काम के लाइक बनाए,

रेफरेन्स हवाला

तज़्कारे गुलिस्ताने रज़ा

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