अमीने शरीअत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान खान कादरी बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत बसआदत

नबीरए उस्ताज़े ज़मन, अमीने शरीअत, मख़्दूमे मिल्लत, अल हाज, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! बिन हकीमुल इस्लाम हज़रत मौलाना हसनैन रज़ा खान बिन, उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान बिन, इमामुल मुता कल्लिमीन हज़रत मुफ़्ती नकी अली खान बरकाती अवाइल (शुरू) 2/ नवम्बर 1927/ ईसवी को मुहल्लाह सौदागिरान बरैली शरीफ में पैदा हुए,

नसब नामा

अमीने शरीअत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! बिन, हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान बिन, हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान बिन, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नकी अली खान बिन, अल्लामा रज़ा अली खान बिन, हाफ़िज़ काज़िम अली खान बिन, मुहम्मद आज़म खान बिन, सआदत यार खान बिन, शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्ल्ह खान रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

आबाई मकान

अमीने शरीअत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की परवरिश व तरबियत वालिदैन करीमैन ने फ़रमाई, जाए पैदाइश आप का आबाई मकान, जो खानकाहे आलिया कादिरिया रज़विया, के अकब पीछे वाले हिस्से में मौजूद है, और जिस में एक अरसे तक अमीने शरीअत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! जद्दे अमजद हज़रत अल्लामा हसन रज़ा रहमतुल्लाह अलैह! सुकूनत पज़ीर रहे, बाद में आप के वालिदा माजिद हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! रहते रहे, हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! किसी वजह से पुराना शहर मोहल्ला कांकर टोला बरैली में मुन्तक़िल हो गए थे, आज अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का यही मस्कन है, जद्दे अमजद हज़रत अल्लामा हसन रज़ा रहमतुल्लाह अलैह! के मकान अकब पीछे वाले हिस्से खानकाहे आलिया कादिरिया रज़विया में, आप के ताया हकीम हुसैन रज़ा खान 1947/ ईसवी तक सुकूनत पज़ीर रहे, और उस वक़्त के हांग्गामी हालात में इन की गैर मौजूदगी में, एक पंजाबी ज़बरदस्ती इस पर काबिज़ हो गया, जो कमो बेष बीस साल तक रहता रहा, जिस की आज से आठ साल क़ब्ल हज़रत मौलाना मन्नान रज़ा खान कादरी ने कोशिश कर के खाली करवाया, और इस की मरम्मत नीज़ कुछ तामीर भी कराया, और अब हज़रत मौलाना मन्नान रज़ा खान कादरी इस के मालिक और काबिज़ हैं ।

रस्मे बिस्मिल्लाह ख्वानी

खानदानी रस्मो रिवाज के मुताबिक़ जब आप की उमर शरीफ चार साल, चार माह, चार दिन की हुई, तो आप के वालिद हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने आप के मामू जान हज़रत मौलाना अब्दुल हादी रहमतुल्लाह अलैह! के मकान पर रस्मे तस्मियाँ ख्वानी की एक तक़रीब का इनईकाद किया जिस में आप के छोटे दादा हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ससुर, मुहतरम और सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह! के छोटे भाई हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ाकर आप की रस्मे तस्मिया ख्वानी की अदायगी फ़रमाई, और इस तक़रीब में बहुत से अइज़्ज़ा और वालिद माजिद के बहुत से अहबाब जिन का हल्का बहुत वसी था, जो सभी शरीक थे ।


तालीमों तरबियत

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का बचपन वालिदैन की बेपनाह शफ्कतो मुहब्बत के साए में, निहायत खेर खूबी से गुज़रा, हज़रत मौलाना हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने तालीमों तरबियत और नशो नुमा की तरफ खुसूसी तवज्जुह फ़रमाई, मुहल्लाले के शरीर और खिलाड़ी बच्चों से मिलने की सख्त मुमानिअत थी, इस की निगरानी रखी जाती थी, एक तरफ वालिद माजिद का यही मकान जो उस वक़्त उनकी मर्दाना नशिश्त गाह थी, अगर वालिद माजिद न होते तो उन का खादिम जिसे उन्होंने बचपन में पाला था, उस को हुक्म था के मेरी गैर मौजूदगी में इन की निगरानी रखो और ये घर से बाहर ना जाने पाएं, इस के अलावा एक जानिब नाना जान की बैठक, तो दूसरी जानिब मामू साहब की नशिश्त गाह और ये सब बुज़रुग बतौरे ख़ास निगरानी करते,

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की तालीम का आगाज़ घर ही से हुआ, इब्तिदाई उस्ताद वालिदैन हैं, नीज़ क़ुरआने पाक हाफ़िज़ सय्यद शब्बर अली रज़वी बरेलवी से पढ़ा, इब्तिदाई फ़ारसी उर्दू और खुश नवेसी की मश्क, खुद वालिद माजिद ने कराई, खुतूत नवेसी और कुछ फ़ारसी मामू मरहूम से भी पढ़ी, शमशुल उलमा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद रज़वी जाफरी जौनपुरी रहमतुल्लाह अलैह! (मुसन्निफ़ कानून शरीअत) से मीज़ान, मुन्शाअब, वगेरा किताबें पढ़ीं, अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! शमशुल उलमा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद रज़वी जाफरी जौनपुरी रहमतुल्लाह अलैह! के हमराह रोज़ाना मदरसा जाया करते थे, इन की सुह्बते कीमिया असर ने इल्म का कुंदन बना दिया, बचपन से इल्मे फ़िक़्ह! वगेरा में महारत हासिल कारली थी,
अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने कुछ दिनों बाद, “दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम” में दाखिला लिया और इब्तिदा से इंतिहा तक जुमला क़ुतुब मुतादाविला की पूरी तालीम यहीं हासिल की, दो साल के लिए आप अपने रफ़ीके दर्स मौलाना फैज़ान अली रज़वी बीसलपुरी (इब्ने मौलाना इरफ़ान अली रज़वी बीसलपुरी) के हमराह यूनि वर्सिटी अली गढ़ तशरीफ़ ले गए, और जदीद उलूम से इक्तिसाबे फैज़ किया ।

असातिज़ाए किराम

  1. सद रुश्शारिया अल्लामा मुफ़्ती अमजद आली रज़वी आज़मी
  2. हकीमुल इस्लाम हज़रत अल्लामा मौलाना हसनैन रज़ा खान बरेलवी
  3. शैखुल अदब हज़रत अल्लामा मौलाना गुलाम जिलानी रज़वी आज़मी
  4. हज़रत अल्लामा मौलाना हाफ़िज़ अब्दुर रऊफ बलयावी
  5. शमशुल उलमा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद रज़वी जाफरी जौनपुरी
  6. हज़रत अल्लामा मुफ़्ती वकारुद्दीन रज़वी, कराची पाक्सितान
  7. पिरोफ़ैसर हज़रत मौलाना सय्यद ज़हीरुद्दीन ज़ैदी, मुस्लिम यूनि वर्सिटी
  8. हज़रत अल्लामा मौलाना गुलाम यासीन रज़वी पूरनवी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

आप की दीनी खिदमात

उलूमे दिनिया और असरि तालीमात हासिल करने के बाद आप ने सब से पहले “दारुल उलूम मज़हरे इस्लाम” में तदरीसी खिदमात अंजाम दीं, फिर आप हल्दोवानी उत्तराखंड! मदरसा “इशाअतुल हक” में तीन साल तक उलूमो फुनून के मोती बिखेरते रहे, और तालिबान उलूमे नबविया इन्हें अपने दामने इल्मो फन में समेटते रहे, 1958/ ईसवी में आप शहर नागपुर की अज़ीमुश्शान दरसगाह जामिया अरबिया इस्लामिया तशरीफ़ लाए, यहाँ के नाज़िमे आला बनाए गए, तीन साल तक इस उहदे पर फ़ाइज़ रहे, यहाँ की मजलिसे शूरा के आप रुक्न भी रहे, 1963/ ईसवी में सूबा छत्तीस गढ़ के शहर कांकेर! तशरीफ़ लाए, सरज़मीने कांकेर पर कदम रखते ही आप की ज़बाने फैज़ तर्जुमान से अचानक ये जुमला निकला के “अरे ये तो वही सरज़मीन है जिसे में ने ख्वाब में देखा था” इसी सरज़मीन को आप ने मसलके आला हज़रत की नशरो इशाअत के लिए मुन्तख़ब फ़रमाया और देखते ही देखते ही ये बंजर ज़मीन उलूमो फुनून और रूहानियत व इरफानियत के माहौल के हवाले से रश्के जिना! बन गई,

आप निहायत तकलींफें और मसाइब व आलम बर्दाश्त कर के बेइंतिहा इस्तिकामत के साथ यहाँ रूहानी व इरफ़ानी माहौल पैदा किया, आज भी ये खित्ता आप की मुख्लिसाना जिद्दो जेहद की मुँह बोलती तस्वीर है, छत्तीस गढ़ के बहुत से इलाकों और खित्तों में आप ने मसाजिद, मदारिस और दीनी इदारों को कायम फ़रमाया, केशकाल में मदरसा “फैज़ुल इस्लाम” रायपुर में मदरसा “इदराए शरीईया दारुल उलूम अनवारे मुस्तफा” कायम फ़रमाया, कांकेर में “दारुल उलूम अमीने शरीअत की बुनियाद डाली ।

आदातो अख़लाक़

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! मसाइले शरीईया पर गहरी निगाह रखते थे, फराइज़ो वाजिबात के साथ औरादो वज़ाइफ़, और सुनन व मुस्तहब्बात, पर सख्ती से आमिल थे, तक्वा शिआर ज़िन्दगी आप का निशाने इम्तियाज़ थी, खल्के खुदा को विरदो वज़ाइफ़ और मसाइले शरीईया के ज़रिए नफा पहुंचाते थे, कसरत के साथ हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! की हयाते तय्यबा के गोशों पर रौशनी डालते, लोगों को मसलके आला हज़रत पर गामज़न रहने की तलकीन फरमाते, असागिर व अकाबिर हर एक से निहायत ही मुन्कसिराना अंदाज़ और और खंदा पेशानी के साथ मुलाकात फरमाते, मदारिस के तलबा को बुज़ुर्गों के वाक़िआत सुनाकर मसलको मज़हब की खिदमत करने पर बे लोस और मुख्लिसाना अंदाज़ में उभारते, दूर दराज़ से आने वाले परेशान हाल लोगों को तावीज़ात व अमालियात के ज़रिए फाइदा व नफा पहुंचाते थे, अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! आलिमे दीन, मुफ़्ती मुहद्दिस, पीरे तरीकत के साथ साथ आप बेहतरीन हकीम भी थे, अल्लाह पाक ने आप के हाथ में शिफा बख्शी थी ।

अकद मस्नून (निकाह)

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का निकाह हज़रत मुफ़्ती अब्दुर रशीद फतेहपुरी रहमतुल्लाह अलैह! की दुख्तर से 7/ मार्च 1957/ ईसवी में हुआ, ये रिश्ता हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के हुक्म से हुआ, आप के सात बच्चे तवल्लुद हुए, जिन में से दो लड़के फौत हो गए, और दो लड़के, तीन लड़कियां बिफज़लिहि तआला मौजूद हैं,
(1) मौलाना जुनैद रज़ा खान उर्फ़ सलमान रज़वी
(2) मौलाना उबेद रज़ा खान उर्फ़ नोमानी ।

इजाज़तो खिलाफत

वालिद माजिद हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने, आप को कम उमर ही में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दस्ते हक परस्त पर बैअत करा दिया था, अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इजाज़त व खिलाफत और नुकूश व तावीज़ात की इजाज़त अता की, नीज़ वालिद माजिद रहमतुल्लाह अलैह! ने भी इजाज़त अता फ़रमाई ।

ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन

आप रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी ज़िन्दगी में 6/ मर्तबा हज्जे बैतुल्लाह और ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन की सआदत हासिल फ़रमाई ।

हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! ने राकिम (मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी) के नाम एक मकतूब में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुतअल्लिक़ ये चंद अल्फ़ाज़ तहरीर फरमाए:
सैंकड़ों खूबियां आप की ज़ाते मुक़द्दसा में पाई जाती थीं, और उन की फितरत व आदत में दाखिल थीं, जो खूबियां सब से ज़ियादा नुमाया नज़र आती हैं, बल्के आए दिन जिन का मुशाहिदा होता रहता था, वो थी उन की तवाज़ोह और इंकिसारी, मखलूके खुदा की खिदमत ग़ुज़ारी, और दुनिया से बे तअल्लुकी व बे नियाज़ी, के जिस का आज के उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम में फुक्दान नज़र आता है इल्ला माशा इल्ला, और यही वो पसंदीदा आदतें थीं, के जिन की वजह से उन्होंने ने सैंकड़ों नहीं, हज़ारों नहीं, बल्के लाखों दिलो को मूह (मुहब्बत, मदहोश) लिया था, ज़रा गौर फरमाइए के इल्म का वो कोहे गिरां, जिस के सामने वक़्त का बड़े सा बड़ा आलिम भी लब कुशाई से घबराता और उन के सामने ज़ानूए अदब कर ने को अपनी सब से बड़ी सआदत समझता हूँ, लेकिन कोई साबित नहीं कर सकता के हज़रत! के किसी भी कोल, फेल, तफ़व्वुक, बरतरी का कभी भी इज़हार हुआ हो, के जिस को थोड़ा सा भी इल्म हासिल हो जाता है वो गुरूरे इल्म में मुब्तला हो जाता है, “जो हम हैं वो दूसरा नहीं” हज़रत की सारी ज़िन्दगी खिदमते ख़ल्क़ में गुज़री, उन्होंने अपनी सेहतो आराम का ख़याल किए बगैर आखिर उमर तक मखलूके खुदा की खिदमत करते रहे ।

इन्तिक़ाले परमलाल

अमीने शरीअत हज़रत मुफ़्ती सिब्तैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल 26/ मुहर्रमुल हराम 1437/ हिजरी मुताबिक 9/ नवम्बर 2015/ ईसवी बरोज़ पीर 1, बजकर 45, मिंट पर हुआ, आप के दौलत कदे के सामने जगह खरीद कर मरक़द शरीफ की तामीर कराइ गई, काफी अरसा तक साहिबे फराश रहे, आप के साहबज़ादगान सालाना उर्स मुनअकिद करते हैं, आप से राकिम! की 1990/ ईसवी से देरीना मुरासिलत थी, आप जब भी आस्ताना आलिया रजविया पर हाज़री और अपनी हमशीरह (बहन) मुहतरमा सलीम फातिमा! (अहलिया मुहतरमा हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह!) से मुलाकात के लिए तशरीफ़ लाते तो राकिम के दफ्तर में चंद मिनटों के लिए ज़रूर रोकन अफ़रोज़ होते थे, फिर तहरीरी कामो को दरयाफ्त फरमाते, तकरीबन इन्तिकाल से एक माह क़ब्ल राकिम आप की इयादात के लिए हाज़िर हुआ तो फ़रमाया के तुम्हारी लिखी हुई किताब रात ही पढ़ी है, फिर तकिए के नीचे से किताब निकल कर दिखाई, दरअसल आप के वालिद माजिद हज़रत अल्लामा व मौलाना हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! की सवानेह पर मुश्तमिल ये किताब 1997/ ईसवी में लिखी थी, किताब पर आप ने कांकेर ज़िला बिस्तर सूबा छत्तीस गढ़ से तअस्सुरात लिख कर भेजे थे, राकिम पर आप की बेपनाह इनायतो शफकत थी।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • मौलाना हसनैन रज़ा खान बरेलवी हयात और खिदमात

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